यह अच्छी बात है कि बाबा रामदेव ने अंततः संत समुदाय के कहने पर अनशन का त्याग दिया। वह देश में भारत स्वाभिमान यात्रा करते रहे हैं। उन्होंने इस दौरान अपने योग शिविरों का उपयोग भ्रष्टाचार तथा कालेधन के मुद्दे पर भाषण देने के लिये भी किया। हमारे जैसे योग साधकों के लिये बाबा रामदेव एक योग प्रचारक के कारण हमेशा ही दिलचस्पी का विषय रहे हैं। यह बात तो उनके आलोचक भी मानते हैं कि योग के प्रचार में उनका योगदान बहुत महत्वपूर्ण है। जब बाबा ने राजनीतिक दल बनाने की घोषणा की तो यकीनन उनको आधुनिक लोकतंत्र व्यवस्था में विरोधियो का सामना करने के लिये तैयार होना चाहिए था। ऐसा लगता है कि वह योग शिविरों में अपनी जयजयकार के ऐसे अभ्यस्त हो गये हैं कि उनको इस बात का अनुमान नहीं था कि अंततः लोकतांत्रिक व्यवस्था में विरोधियों का सामने होना न केवल स्वाभाविक वरन् आवश्यक भी है।
ऐसा लगता है कि स्वामी रामदेव ने भी राजनीति की तरफ कदम बिना किसी शास्त्र का अध्ययन किये ही बढ़ाया है। ऐसा ही दूसरे लोग भी कर रहे हैं अंततः कम से कम एक बात तय रही है कि राजनीतिक विषय पर वह आमजन जैसे ही हैं यह अलग बात है कि योग शिक्षा का अध्यात्म से जुड़े होने के कारण वह प्रसिद्धि हो गये और इसी कारण राजनीति उनके लिये सुविधाजनक हो गयी है। वह भले ही भारतीय अध्यात्म ग्रंथों की बात करते हैं पर लगता है कि कौटिल्य का अर्थशास्त्र तथा चाणक्य नीति का अध्ययन उन्होंने अभी नहीं किया है। इन महापुरुषों की रचनायें न केवल राजनीति बल्कि जीवन में सुचारु रूप से आगे बढ़ने का ऐसा संदेश देती हैं जिनकी सच्चाई उनको पढ़कर देखा जा सकता है। इनको पढ़कर सभी राजनेता बने यह जरूरी नहीं है पर जीवन में भी इनके मंत्रों का उपयोग कर सहज सफलता प्राप्त की जा सकती है। श्रीमद्भागवत गीता, पतंजलि योग साहित्य, कौटिल्य का अर्थशास्त्र और चाणक्य नीति ऐसी पावन रचनायें हैं जिनके अध्ययन से राजनीति ही नहीं वरन् जीवन के गूढ़ रहस्यों का भी पता चलता हैं।
बाबा रामदेव अभी अपने अध्यात्मिक ग्रंथों के ज्ञान से बहुत परे दिखते हैं। इन नौ दिनों में बाबा रामदेव के व्यक्त्तिव की पूरी गहराई का पता लग गया है। अभी तक योग तक ही सीमित होने के कारण वह देश के अनेक ऐसे योग साधकों और लेखकों के भी वह प्रिय रहे थे जो उनके शिष्य नहीं है। उस समय तक बाबा का व्यक्त्तिव उनके आभामंडल तथा लोगों के विश्वास के कारण ढंका हुआ था। अब इन नौ दिनों में बाबा रामदेव टीवी चैनलों और अखबारों में इतने छाये रहे हैं कि उनके वह समर्थक जो निष्पक्ष योग साधक और बुद्धिजीवी हैं उनके साथ जुड़े घटनाक्रमों के दौरान अन्य लोगों की क्रियाओं से अधिक स्वामी रामदेव पर अपना ध्यान केंद्रित किये हुए थे। बाबा रामदेव का चेहरा के हावभाव, हाथ पांव की क्रियायें और वाणी के स्वरों का अध्ययन वह लोग करते रहे जो उनके साथ प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से नहीं जुड़े हैं। इनमें से अनेक निराश भी हुए होंगे तो कुछ लोगों के चिंतन में बदलावा भी आया होगा।
इंटरनेट पर बाबा रामदेव को हमेशा ही बहुत समर्थन मिला मगर अब शायद इसकी संभावना नहीं लगती। ऐसे में इंटरनेट पर सक्रिय एक दो ऐसे ब्लाग लेखकों के पाठ याद आ रहे हैं जो बाबा की योग शिक्षा पर तमाम तरह की प्रतिकूल टिप्पणियां करते थे। उससे भी अधिक वह उनके बाज़ार और प्रचार के मुखौटे होने का आरोप भी लगाते थे। इतना ही नहीं उनकी योग शिक्षा के प्रमाणिक होने पर भी सवाल उठाते थे। कुछ लोग उनके विरुद्ध कड़ी टिप्पणियां लिखते तो कुछ उनको समझाते। कुछ तो उनको धमकाते भी थे। इसके अलावा कुछ लोग उनकी उपेक्षा भी करते थे कि वह तो उनकी आलोचना करने वाले ही ठहरे। इन नौ दिनों में उन ब्लाग लेखकों की आलोचना में दम दिखने लगा। अब यह अलग बात है कि उस समय बाबा की योग शिक्षा के बाज़ार और प्रचार से प्रायोजित होने की बात यह सोचकर छोड़ दी जाती थी कि आखिर कोई व्यक्ति तो है जो भारतीय योग विधा का प्रचार कर रहा है। अंग्रेजी पद्धति के इलाज की आलोचना करने वाले बाबा रामदेव को अपने हठ की वजह से आखिर उस अस्पताल में जाना पड़ा जहां उसी पद्धति के चिकित्सक थे। इसी पद्धति से उनके अंदर भोजन की कमी को पूरा किया गया। उनकी देह के अनेक नकारात्मक पक्ष सामने आये। ऐसे में जब भारतीय योग पद्धति पर सवाल उठे तो चिंता हुई पर टीवी चैनलों पर कुछ योगाचार्यों ने आकर उसका बचाव किया और तय बात है कि उनको बाबा रामदेव की योग शिक्षा पर सवाल उठाने ही थे। उन योगाचार्यों की बात से इसका आभास तो हो गया कि उन्होंने पतंजलि योग का न केवल अध्ययन किया बल्कि उनका अभ्यास भी अच्छा है। एक महिला योगाचार्य ने बताया कि भारतीय योग के अनुसार प्रयास रहित आसन और प्राणायाम होते हैं। सांस सहजता से ली और छोड़ी जाती है। आसन करते समय अपना ध्यान अंदर चक्रों पर केंद्रित किया जाता है। उछलकूद वाले आसन भारतीय योग का भाग नहीं है। बाबा की योग शिक्षा के दौरान आसन और प्राणायाम के कराते समय ध्यान को अनदेखा किया जाता है।
बाबा को कई बार अपने आसानों के दौरान हांफते हुए देखा जाता है जो कि नियमित अभ्यासरत योगाभ्यास करने वालों के लिये पीड़ादायक दृश्य होता हेै। हमने यह बात पहले भी लिखी थी कि जब बाबा के साथ जब एक योगाभ्यासी होता और बाबा आसन बोलते जाते थे और वह करता था तब ही तक सब ठीक था। बाद में पता लगा कि वह बाबा का गुरुभाई था जिसे उन्होंने हटा दिया। उस समय ऐसा लगा कि मतभेदों के कारण हटाया गया होगा पर अब लगता हैं कि बाबा अपने को एक सक्रिय सन्यासी साबित करने के लिये स्वयं ही योगासन करते दिखते हैं। वह आसन करने के बाद हांफते हुए बोलते हैं। यह योग साधना के विपरीत आचरण हैं। किसी भी तीव्रतर आसन करने के बाद शवासन या शिथिलासन करने का नियम है जिसका पालन वह नहीं करते। सच बात तो यह है कि वह योगासनों को व्यायाम की तरह बनाने में लगे हैं। टीवी चैनलों पर बाबा रामदेव की शिक्षा पर आलोचना करने वाले लोग योग साधना के अच्छे जानकार लगे इसलिये उनकी आलोचना को अनदेखा नहीं कर सकते।
वैसे तो बाबा के विरोधियों ने भी यह कामना की है कि वह जल्दी लोगों को योगासन सिखाना शुरु करने योग्य हो जायें पर जिन लोगों की भारतीय योग साधना में दिलचस्पी है वह यकीनन बाबा रामदेव की योग शिक्षा पर सवाल उठायेंगे। इसका कारण यह है कि भारतीय योग विधा को जितना बाबा रामदेव ने प्रसिद्ध किया उतने ही सवाल उन्होंने अपने अनशन के दौरान उस पर उठने भी दिये। बाबा अपने भ्रष्टाचार और कालेधन विरोधी अभियान को जारी रखें या नही यह अब एक शुद्ध रूप से राजनीतिक विषय हो गया है। सामयिक लेखकों के लिये यह विषय बहुत दिलचस्प हो सकता है पर भारतीय योग साधना के लिये प्रतिबद्ध योगाचार्यों और साधकों के लिये अब यह जरूरी होगा कि वह योगासन, प्राणायाम और ध्यान के प्रमाणिक प्रचार के लिये प्रयास करें। दूसरी बात यह भी सिद्ध हो गया है कि देशभर में जितने भी योग शिक्षा के प्रसिद्ध आचार्य हैं वह कहीं न कहीं बाज़ार और प्रचार के शिखर पुरुषों से प्रायोजित हैं। उनकी प्रतिबद्धतायें प्रत्यक्ष रूप से भारतीय अध्यात्मिक प्रचार के लिये भले ही दिखती हों पर वास्तव में अपने उन प्रायोजकों के संकेतों पर ही काम करते हैं जिनका व्यवसाय भारतीय अध्यात्म में वर्णित वस्तुओं के निर्माण से है। त्वरित गति से पैसे, प्रतिष्ठा और पद-यथा महंत, स्वामी, बाबा, बापू,और आचार्य- के शिखर पर बैठने के लिये वह धर्मग्रंथों से कुछ श्लोक उठा लेते हैं और उसी आधार पर वह अपने धार्मिक अभियान पर चल पड़ते हैं जो कालांतर में पता लगता है कि किसी धनस्वामी के उत्पादों के-यथा दवा, चाय, च्यवनप्राश, शहद, पत्रिका, सौदर्य प्रसाधन तथा भोज्य पदार्थ- प्रचार के लिये था।
हालांकि निराश होने वाली बात नहीं है। भारतीय योग संस्थान जैसे अनेक संगठन हमारे देश में हैं जो न केवल प्रमाणिक रूप से पतंजलि योग सूत्र के आठों अंगों का ज्ञान देने और अभ्यास कराने का काम निष्काम भाव से कर रहे हैं। अनेक योगाचार्य और शिक्षक भी निरंतर इस काम को जारी रखे हुए हैं। हम बाबा रामदेव के शीघ्र स्वास्थ्य लाभ की कामना करते हैं। एक सामान्य मौलिक स्वतंत्र लेखक तथा योग साधक होने के नाते हम तो यही चाहते हैं कि बाबा अपना योग शिक्षण अभियान जारी रखें। साथ ही यह भी बता दें कि योग शिक्ष से इतर उनकी गतिविधियों में उनके योगाभ्यास का अगर सकारात्मक परिणाम नहीं दिखता लोग उनकी योगशिक्षा में भी दोष ढूंढने लगेंगे जो अब तक नहीं हुआ था।
लेखक और संपादक-दीपक "भारतदीप",ग्वालियर
poet, writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
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writer aur editor-Deepak 'Bharatdeep' Gwalior
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