नाम के हैं सभी रिश्ते
कुछ लोग हक जताते
कुछ निबाहते हुए पिसते।
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किसी को सूखी रोटी की तलाश है
किसी को धी से चुपड़ी की आस है,
इंसान का पेट भर गया एक वक्त
फिर अगले वक्त की होती तलाश है।
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जो इंसान औलाद से
हथियारों की तरह खेलते है,
वही उनको दौलत की जंग में
बिना अक्ल के हथियार लिये ठेलते हैं।
कोई कोई बनता सिकंदर का बाप
कोई कोई बदनामी की सजा भी झेलते हैं।
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कुछ लोग हक जताते
कुछ निबाहते हुए पिसते।
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किसी को सूखी रोटी की तलाश है
किसी को धी से चुपड़ी की आस है,
इंसान का पेट भर गया एक वक्त
फिर अगले वक्त की होती तलाश है।
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जो इंसान औलाद से
हथियारों की तरह खेलते है,
वही उनको दौलत की जंग में
बिना अक्ल के हथियार लिये ठेलते हैं।
कोई कोई बनता सिकंदर का बाप
कोई कोई बदनामी की सजा भी झेलते हैं।
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लेखक और संपादक-दीपक "भारतदीप",ग्वालियर
poet, writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
writer aur editor-Deepak 'Bharatdeep' Gwalior
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