12 दिसंबर 2011

रविवार का दिन अध्यात्म के लिये महत्वपूर्ण-हिन्दी लेख (sanday for religionor adhyatma and music-hindi lekh and article

               इधर टीवी चैनलों ने अन्ना हजारे के एकदिवसीय अनशन को अपने पर्दे पर इस तरह सजा लिया था कि पूरे दिन कुछ नहीं दिखाना है तो मनोरंजन चैनलों ने पुराने कार्यक्रम दोबारा प्रसारित करने की तैयारी कर ली थी। तब हम एक सत्संग कार्यक्रम के लिये रवाना हो रहे थे। हमें पता था कि आज समाचार चैनलों पर सिवाय उसके कुछ दिखने वाला नहीं है। जहां तक मनोंरजन चैनलों की बात है तो वह सोमवार से शुक्रवार तक प्रसारित कार्यक्रमों का शनिवार तथा रविवार को पुनः प्रसारण करते हैं। ऐसे में रविवार और शनिवार टीवी चैनलों के कार्यकर्ताओं को अवकाश मिल जाता होगा पर आम दर्शक के लिये यह अमनोरंजक स्थिति होती है।
         सप्ताह में एक दिन किसी मंदिर या आश्रम में जाना अगले सप्ताह के लिये अपना मानसिक संतुलन बनाये रखने का एक अच्छा माध्यम बन सकता है बशर्ते कि उसकी अनुभूति करना भी आती हो। जिस तरह कहा जाता है कि पैसा कमाया जा सकता है पर सुख नहीं, उसी तरह आप चाहे मंदिर जायें या आश्रम जब तक आपके हृदय में अध्यात्म के प्रति गहरा रुझान नहीं है मन में उसका प्रभाव अनुभव नहीं कर सकते। जिनका अध्यात्म के प्रति झुकाव है वह आश्रमों या मंदिरों में जाकर मत्था टेकते हैं। वहां अगर भजन या प्रवचन सुनते हैं। इससे प्रतिदिन जो बोरियत से भरी दिनचर्या होती है, उससे विरक्त होकर जो सुख मिलता है वह केवल ज्ञानी ही जानते हैं। अज्ञानी लोग इससे ही तृप्त नहीं होते बल्कि वह मंदिरों, आश्रमों या देवस्थानों में कार्यरत महंतों, संतों तथा सेवकों की करीबी भी चाहते हैं। उनको लगता है कि इससे अधिक आत्मिक सुख मिलेगा। हमारा मानना है कि महंत, साधु, संत, या सेवकों का सानिध्य केवल मायावी व्यवहार है उसका अध्यात्म से कोई संबंध नहीं है।
        दानव को तो दूर से ही प्रणाम करना चाहिए पर देवता से भी दूरी रखना चाहिए। अग्नि देवता हैं, पूज्यनीय हैं पर हम उनका उपयोग अपनी वस्तुओं को पकाने के लिये करते हैं न कि उसमें घुसकर अपनी देह पकाते हैं। वायु देवता का सहज स्पर्श होता है पर हम उसे पकड़ते नहीं है। जल देवता है पर हम उसे पेट में डालते हैं न कि हाथ में पकड़कर प्यास बुझाते हैं। नहाते हैं तो फिर पौंछते हैं पानी का चिपका कर नहीं रखते। उसी तरह साधु, संतों, महंतों और सेवकों से भजन और प्रवचन सुनना चाहिए। उनके ज्ञान को धारण करने का प्रयास करें तो बहुत अच्छा, पर उनके निकट रहने का लोभ नहीं करना चाहिए। भजन, प्रवचन या सत्संग से आगे जाना भ्रष्टाचार को आमंत्रण देना है। तब हम भक्त से ग्राहक बन जाते हैं। ऐसे में अपने आपको दोहन के लिये प्रस्तुत करना अज्ञान का प्रमाण है।
            आश्रम से निकलकर हमारे मन में ख्याल आया कि आज मौसम अच्छा है तो कहां जायें? शहर में तानसेन समारोह चल रहा है। हमारे एक संगीतज्ञ मित्र ने हमसे कहा था कि शास्त्रीय संगीत में खूबी यह है कि अगर आप उसके जानकार नहीं है तो वह प्रारंभ में आपको प्रभावित नहीं करेगा पर जब धैर्य से सुनेंगे तो आपके अंदर वह ऐसा प्रभाव छोड़ेगा कि उसके मुरीद हो जायेंगे। तालाब के किनारे हमने वायलिन वादन सुना। आंखें बंदकर ध्यान से सुना। वाकई कुछ देर में अद्भुत आनंद देने लगा। ऐसा लगता था कि मस्तिष्क के अंदर कोई ब्रुश कचड़े की सफाई कर वहां सुंगध फैला रहा है। साजों से आ रही आवाज पूरी देह में एक उत्साह का संचार कर रही थीं। तब यह बात समझ में आयी कि संगीत की अपनी शक्ति है पर फिल्मों के गीतों को सुनते हुए हम लोगों की समझ कम हो गयी है। उसमें बेमतलब के शब्द लिखकर अनेक महान गीतकार हो गये हैं जबकि इसका सारा श्रेष्ठ संगीत को होना चाहिए।
         अभी महान कलाकार देवानंद का देहावसान हो गया। उनकी स्मृति में अनेक गाने टीवी पर देखने को मिले। अधिकतर किशोरकुमार की आवाज में थे। देवानंद साहब ने तो बस होंट भर हिलाये थे। महान गायक किशोरकुमार ने अनेक नायकों के अभिनय को अपनी आवाज से जीवंत बनाया। तय बात है कि अधिकतर फिल्में अपने गीतों की वजह से जानी गयी। उनमें संगीत की प्रधानता थी। अगर अकेले कोई गायक बिना साज के गाये तो आम आदमी जैसी चिल्लपों करते दिखता है।
         हाल ही में मशहुर हुए कोलिवरी डी गाने में क्या है? तमिल और अंग्रेजी के मिलेजुले शब्दों से भरे शब्दों को जो संगीत दिया गया है उसने उसे ऐसी प्रसिद्ध दिलाई कि उसने अनेक भाषाओं में डब किया जा रहा है। संगीत का प्रभाव ऐसा है कि हिन्दी धारावाहिकों में हर वाक्य के बाद संगीता बजता है। उसमें पात्रों के अभिनय और उनके संवादों को प्रभावी बनाने का यह प्रयास इस बात को दर्शाता है कि हमारे कथित निर्देशकों की क्षमतायें बहुत सीमित हैं।
         बहरहाल अध्यात्म और संगीत से रविवार बेहतर हो सकता है और उस समय हम अपनी सप्ताह भर की नियमित दिनचर्या से अलग होकर मन में नवीनता का आभास कर सकते हैं बहरहाल इस रविवार को बस इतना ही ।
लेखक और संपादक-दीपक "भारतदीप",ग्वालियर 
poet, writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior

writer aur editor-Deepak 'Bharatdeep' Gwalior

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