वह चाहते हैं कि
हम सच के घोड़े पर सवारी करें,
स्वयं झूठ के महल में ऐश करते रहें,
जंग में मैदान में हम अपना खून बहायें
वह वातानुकूलित कक्ष में बैठकर
अपने पसीने से बचते रहें।
कहें दीपक बापू
जहान के दस्तूर अपने मतलब के लिये
बार बार बदल जाते है,
चतुर करें राज
सज्जन स्वार्थ की बलि चढ़ जाते हैं,
दौलत मंदों की हुकुमत रोज बढ़ती है,
ओहदेदारों की तकदीर हर कदम चढ़ती है,
इसलिये खास लोगों का फैसला है
आम इंसान हमेशा सस्ता रहे।
हम सच के घोड़े पर सवारी करें,
स्वयं झूठ के महल में ऐश करते रहें,
जंग में मैदान में हम अपना खून बहायें
वह वातानुकूलित कक्ष में बैठकर
अपने पसीने से बचते रहें।
कहें दीपक बापू
जहान के दस्तूर अपने मतलब के लिये
बार बार बदल जाते है,
चतुर करें राज
सज्जन स्वार्थ की बलि चढ़ जाते हैं,
दौलत मंदों की हुकुमत रोज बढ़ती है,
ओहदेदारों की तकदीर हर कदम चढ़ती है,
इसलिये खास लोगों का फैसला है
आम इंसान हमेशा सस्ता रहे।
लेखक और संपादक-दीपक "भारतदीप",ग्वालियर
poet, writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
writer aur editor-Deepak 'Bharatdeep' Gwalior
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