आजाद तो पंछी हैं
चाहे जहां उड़ जाते हैं,
इंसान का मन उड़ता है
पर लाचार देह में पंख कहां
जुड़ पाते हैं।
कहें दीपक बापू
औकात से ज्यादा
कामयाबी पाने की ख्वाहिश
मतलबपरस्ती के साथ जीने की आदत
सपना इज्जतदार कहलाने का
हर आदमी इंसान गुलाम अपने दिल का
जुबां से उगलते लफ्ज जहर की तरह
प्यारे बोल का अब गुड़ कहां पाते हैं।
चाहे जहां उड़ जाते हैं,
इंसान का मन उड़ता है
पर लाचार देह में पंख कहां
जुड़ पाते हैं।
कहें दीपक बापू
औकात से ज्यादा
कामयाबी पाने की ख्वाहिश
मतलबपरस्ती के साथ जीने की आदत
सपना इज्जतदार कहलाने का
हर आदमी इंसान गुलाम अपने दिल का
जुबां से उगलते लफ्ज जहर की तरह
प्यारे बोल का अब गुड़ कहां पाते हैं।
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लेखक एवं कवि- दीपक राज कुकरेजा,‘‘भारतदीप’’, ग्वालियर
लेखक और संपादक-दीपक "भारतदीप",ग्वालियर
poet, writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
writer aur editor-Deepak 'Bharatdeep' Gwalior
‘दीपक भारतदीप की हिन्दी-पत्रिका’ पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
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1.दीपक भारतदीप की शब्द पत्रिका
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3.दीपक भारतदीप की शब्दयोग-पत्रिका
४.दीपकबापू कहिन
५,हिन्दी पत्रिका
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७.जागरण पत्रिका
८.हिन्दी सरिता पत्रिका
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1 टिप्पणी:
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शनिवार 15 अगस्त 2015 को लिंक की जाएगी ....
http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
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