दौलत के ढेर पर बैठे हैं जो लोग
शौहरत भी उनके पास है,
मतलबपरस्तों ने पा लिये बड़े ओहदे
दरियादिली दिखाने की उनसे बेकार आस है,
चर्चे आम है कातिलों के,
प्यार के सौदागर बादशाह बने दिलों के,
मजे के दीवाने जमाने की चाहत है
गंगा उल्टी तरफ बहती नजर आये।
कहें दीपक बापू
ख्वाबों को हकीकत में लाना आसान नहीं,
सपनों की सच में कोई शान नहीं,
कसूरवार किसे कहें
सभी बेकसूरी के दावे करते नजर आये।
धोखे का सौदा
दुकानदार और ग्राहक दोनों को ललचाये।
शौहरत भी उनके पास है,
मतलबपरस्तों ने पा लिये बड़े ओहदे
दरियादिली दिखाने की उनसे बेकार आस है,
चर्चे आम है कातिलों के,
प्यार के सौदागर बादशाह बने दिलों के,
मजे के दीवाने जमाने की चाहत है
गंगा उल्टी तरफ बहती नजर आये।
कहें दीपक बापू
ख्वाबों को हकीकत में लाना आसान नहीं,
सपनों की सच में कोई शान नहीं,
कसूरवार किसे कहें
सभी बेकसूरी के दावे करते नजर आये।
धोखे का सौदा
दुकानदार और ग्राहक दोनों को ललचाये।
---------------------------------------------
लेखक एवं कवि- दीपक राज कुकरेजा,‘‘भारतदीप’’, ग्वालियर
लेखक एवं कवि- दीपक राज कुकरेजा,‘‘भारतदीप’’, ग्वालियर
लेखक और संपादक-दीपक "भारतदीप",ग्वालियर
poet, writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
writer aur editor-Deepak 'Bharatdeep' Gwalior
‘दीपक भारतदीप की हिन्दी-पत्रिका’ पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द पत्रिका
2.दीपक भारतदीप का चिंतन
3.दीपक भारतदीप की शब्दयोग-पत्रिका
४.दीपकबापू कहिन
५,हिन्दी पत्रिका
६,ईपत्रिका
७.जागरण पत्रिका
८.हिन्दी सरिता पत्रिका
अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द पत्रिका
2.दीपक भारतदीप का चिंतन
3.दीपक भारतदीप की शब्दयोग-पत्रिका
४.दीपकबापू कहिन
५,हिन्दी पत्रिका
६,ईपत्रिका
७.जागरण पत्रिका
८.हिन्दी सरिता पत्रिका
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें