उसे पाने की चाह भला किसमें नहीं होती
पर कभी पूरी भी नहीं होती
शायरों ने लिखे उस पर ढेर सारे शेर
हर भाषा में उस पर लिखे गये शब्द ढेर
हसीनों की शक्ल को उससे तोला गया
उसकी तारीफ में एक से बढ़कर एक शब्द बोला गया
सच यह है चांद में
अपनी रोशनी नहीं होती
सूरज से उधार पर आयी चांदनी
रोशनी का कतरा कतरा उस पर बोती
मगर इस जहां में बिकता है ख्वाब
जो कभी पूरे न हों सपने
उनकी कीमत सबसे अधिक होती
सब भागते हैं हकीकत से
क्योंकि वह कभी कड़वी तो
कभी बहुत डरावनी होती
सूरज से आंख मिला सके
भला इतनी ताकत किस इंसान में होती
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2 टिप्पणियां:
बहुत बढिया कहा है।
सच यह है चांद में
अपनी रोशनी नहीं होती
सूरज से उधार पर आयी चांदनी
रोशनी का कतरा कतरा उस पर बोती
मगर इस जहां में बिकता है ख्वाब
बहुत बढिया!!
दीपक जी, बिलकुल सही कहा है कि किसमे है ताकत जो सूरज से आँख मिला सके.
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