कि खरगोश क्या
शेर भी आ गया तो पकड़ लेंगे
मगर भेड़िया ही किला भेद जाता है
आदमी का शिकार चूहे के तरह कर जाता है
कभी उसके पीछे नहीं जाते शिकारी
दिखाने के लिए अपने किले जरूर घेर लेंगे
इंसानों का क्या
वह तो मनोरंजन के लिए ही देखेंगे और खेलेंगे
खाली मन लिए भटकते लोगों को
असल और नक़ल से वास्ता नहीं
शेर बकरी का हो
या चूहे बिल्ली का
या डंडा गिल्ली का
अपनी आँखें वीडियो गेम में ही पेलेंगे
जूता मारने का हो या गोली चलाने का दृश्य
हादसा हो या कामयाबी
सौदागर हर शय को बाज़ार में बेचेंगे
जज्बातों के मायने अब कोई नहीं है
इंसानों में अब जज्बा कहाँ
इसलिए सौदागरों से ही खरीदेंगे
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1 टिप्पणी:
क्या बात कह दी है आपने दीपक जी. बहुत खूब.
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