पानी के बुलबुलों की तरह बहता आदमी
हर पल सुख की तलाश करता जाता
कई पल ऐसे भी आते हैं
जो मन को गुदगुदाते हैं
फिर समय की धारा में
वह भी बह जाते हैं
खुशी के चिराग जलते कुछ पल
पर फिर अंधेर आ ही जाते हैं
सुखानुभूति कोई ऐसी शय नहीं
जिसे आदमी अपनी जेब में रखकर
निरंतर चलता जाये
पर दिल में ख्यालों की जमीन पर
उम्मीदों के पेड़ उग आते हैं
जिन पर सुख के पल फूल की तरह
पहले खिलते
फिर मुरझा जाते हैं
आदमी कितना भी चाहे
उसके हाथ में हमेशा कुछ नहीं
बना रह पाता
समय कभी शय बदलता तो
कभी उसका इस्तेमाल बेकार कर जाता
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2 टिप्पणियां:
समय कभी शय बदलता तो
कभी उसका इस्तेमाल बेकार कर जाता
sahi baat insaan waqt ki kathputali hi hai bahut sundar
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