‘‘यार, क्या तुम्हारे घर में ळाह सास बहु का
रोज होता है झगड़ा
हमारे यहां तो रोज का है लफड़ा
पहले जब सास बहु पर आते थे
सामाजिक धारावाहिक
तब भी जमकर होता गाली गलौच के साथ घमासान
अब आने लगा है कामेडी धारावाहिक
तो भी मजाक ही मजाक में तानेबाजी से
मच जाती है जोरदार जंग
मेरा और पिताजी का मन होता है इससे तंग
इतने सारे टीवी चैनल
बने गये हैं हमारे घर के लिये लफड़ा’’
दूसरे सज्जन ने कहा-
‘‘नहीं मेरे यहां ऐसी समस्या नहीं आती
दोनों के कमरे में अलग अलग टीवी है
पर वह अपनी पसंद के कार्यक्रम भी
भी भला दोनों कब देख पाती
मेरी बेटी अपनी मां से लड़कर
सारा दिन कार्टून फिल्म देखती
बेटा उधम मचाकर मेरी मां से
रिमोट छीनकर देखता है फिल्म
सास बहु दिन भर बच्चों से
जूझते हुए थक जाती
बच्चों की झाड़ फूंक न करूं
इसलिये मुझे भी नहीं बताती
पर कभी कभी दो नये टीवी
घर में लाने की मांग जरूर उठाती
मेरे पिताजी कहते हैं मुझसे
कभी ऐसी गलती नहीं करना
नये टीवी आये घर में तो
अपने गले का फंदा बन जायेगा
इन दोनों सास बहू का लफड़ा’'
.................................
यह कविता/आलेख इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप की हिन्दी-पत्रिका’ पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द पत्रिका
2.दीपक भारतदीप का चिंतन
3.दीपक भारतदीप की शब्दयोग-पत्रिकालेखक संपादक-दीपक भारतदीप
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें