25 जनवरी 2009

ऑस्कर से कोई फिल्म दीवार और अभिनेता अमिताभ बच्चन तो नहीं बन सकता-आलेख

भारत में अधिकतर लोगों को फिल्म देखने का शौक है और सभी की अपनी वय और समय के अनुसार पंसदीदा फिल्में और अभिनेता हैं। वैसे फिल्म शोले की अक्सर चर्चा होती है पर अमिताभ बच्चन अभिनीत फिल्म दीवार वाकई एतिहासिक फिल्म है। शोले में हाथ काटने की घटना दिखाने के कारण अनेक लोग उसे पसंद नहीं करते हैं क्योंकि उसके बाद देश में क्रूरता की घटनायें बढ़ीं हैं। कुल मिलाकर लोगों के लिये फिल्में मनोरंजन का एक सशक्त और प्रिय माध्यम हैं।
फिल्मों के लेकर अनेक पुरस्कार बंटते हैं जिनमें राष्ट्रीय पुरस्कार भी शामिल हैं। अनेक व्यवसायिक फिल्मकार उनकी यह कहकर आलोचना करते हैं कि उन पुरस्कारों के वितरण में आम दर्शक की पसंद का ध्यान नहीं रखा जाता है। यही कारण है कि वह कभी राष्ट्रीय पुरस्कारोंं के समानांतर वह अपने लिये अलग से पुरस्कार कार्यक्रम आयोजित कर उनका खूब प्रचार भी करते हैं। अब तो टीवी चैनलों पर भी उनका प्रचार होता है। हिंदी फिल्मकार इसलिये विदेशी पुरस्कार आस्कर लेने के लिये प्रयत्नशील रहते हैं और वहां अपनी फिल्मों का नामांकन होते ही यहां प्रचार भी शुरू कर देते हैं। वह इतना होता है कि जब पुरस्कार न मिलने पर भी उनको कोई अंतर नहीं पड़ता। वैसे आस्कर अवार्ड कुछ भारतीय फिल्मकारों को भी मिल चुका है पर उनकी फिल्में भी कोई इस देश में अधिक लोकप्रिय नहीं थीं। इसके बावजूद भारतीय फिल्मकार उसके पीछे लगे रहते हैं और कभी उसमें आम भारतीय दर्शक की उपेक्षा की चर्चा नहीं करते। हर साल आस्कर अवार्ड का समय पास आते ही यहां शोर मच जाता हैं। टीवी चैनल और अखबार उसमें नामांकित भारतीय फिल्मों की चर्चा करते हैं।

बहरहाल स्लमडाग मिलेनियर की चर्चा खूब हैं और उसके आस्कर मेंे ंनामांकित होने की चर्चा भी बहुत हैं। इस लेखक ने यह फिल्म नहीं देखी पर इसकी कहानी कुछ प्रचार माध्यमों में पढ़ी है उससे तो लगता है कि उसमें ं अमिताभ बच्चन की फिल्म दीवार और टीवी धारावाहिक ‘कौन बनेगा करोड़पति कार्यक्रम की छाया है। इसके अलावा अन्य फिल्मों के नामांकित होने की चर्चा है। शोर इतना है कि जहां देखो आस्कर का नाम आता है। इस बारे में हम तो इतना ही कहते हैं कि ‘आस्कर मिलने से कोई फिल्म दीवार और अभिनेता अमिताभ बच्चन तो नहीं बन सकता।’ याद रहे दीवार फिल्में में एक गरीब घर का लड़का अमीर बन गया और उसने अपने पिता के कातिलों से बदला लिया। यह फिल्म बहुत सफल रही और उससे एक्शन फिल्मों को दौर शुरु हुआ और तो शोले तो उसके बाद में आयी

जैसे बाजार और प्रचार के माध्यमों का निजीकरण हुआ है आस्कर अवार्ड के कार्यक्रम यहां भी दिखाये जाते हैं जबकि उनसे भारतीय दर्शक को कोई लेनादेना नहीं है। हां, अब पढ़ा लिख तबका कुछ अधिक हो गया है जिसका विदेशों से मोह है वही इसमें दिलचस्पी लेता है बाकी फिल्म देखने वाले तो हर वर्ग के दर्शक हैं और उनकी ऐसे पुरस्कारों में अधिक दिलचस्पी नहीं होती। इस देश में अमिताभ बच्चन एक ऐसा सजीव पात्र हैं जिस पर कोई लेखक कहानी भी नहीं लिख सकता। विदेशी तो बिल्कुल नहीं। उनको अगर कोई पुरस्कार फिल्मोंं में योगदान पर मिल भी जाये तो उसकी छबि बढ़ेगी न कि अमिताभ बच्चन की। उनकी युवावस्था का दौर भारतीय फिल्मों का स्वर्णिम काल है। बहरहाल आशा है कुछ दिनों में आस्कर का शोर थम जायेगा पर हिंदी फिल्मों का रथ तो हमेशा की तरह आगे बढ़ता ही रहेगा।
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2 टिप्‍पणियां:

adil farsi ने कहा…

मिलेनियम स्टार का दर्जा पा चुके अमिताभ क्या राज कपूर दिलीप कुमार से भी महान है... कभी नहीं

अक्षत विचार ने कहा…

Big B tusi sachmuch great ho ji

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