उन्होंने कई सवाल दाग दिये
उत्तर सुनने से पहले ही
मैदान छोड़कर वह भाग लिये
हमारे जज्बातों का मखौल उड़ाते हैं
जिन सवालों का जवाब देना हैं हमें
वह भी खुद ही दिये जाते हैं
दूसरे के दिल से खेलने वाले
क्या समझें प्यार का मतलब
क्या जाने उस शख्स के जज्बात
जो घूम रहा हो जमाने में
नये ख्यालों की रौशनी जलाने के लिये
अपने पसीने की ऊर्जा जुटाई है
नहीं फैलाये किसी के आगे अपने हाथ
उधार की आग के लिये
..................................
यह कविता/आलेख इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप की हिन्दी-पत्रिका’ पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द पत्रिका
2.दीपक भारतदीप का चिंतन
3.दीपक भारतदीप की शब्दयोग-पत्रिकालेखक संपादक-दीपक भारतदीप
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें