10 मार्च 2010

हंसी हो स्यापा-हिन्दी व्यंग्य कविता (hansi aur gum-hindi satire poem)

खुशी हो या ग़म
हंसी हो या स्यापा
अब बाजार में बिकता है,
कब क्या करना है
प्रचार में इशारा दिखता है।
कभी दिल को गुदगुदाना,
कभी आंखों में आंसु लाना,
सौदागरों का करना है जज़्बातों का सौदा
उनको नहीं मतलब इस बात से कि
किसका बसेगा
या किसका उजड़ेगा घरौंदा,
कलम का गुलाम
उनके पांव तले
उनकी उंगलियों के इशारे पर
हर पल की कहानी लिखता है।

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कवि, लेखक और संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
http://anant-shabd.blogspot.com

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