24 मार्च 2010

उतने ही देखो सपने-हिन्दी शायरी (utne hi dekho sapne-hindi shayri)

इतना तेज मत दौड़ो कि
खुद ही हांफने लगें।
हवस और ख्वाबों की भूख कभी नहीं मिटती,
दौलतमंदों की चालें कभी नहीं पिटती,
अपनी औकात पहचानकर
खुली आंखों से उतने ही देखो सपने
जो पूरे होते लगें।
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बाजार में सजे हैं ढेर सारे ख्वाब
पैसे से ही खरीदे जायेंगे।
एक के साथ एक मुफ्त के दावे
हर शय के दाम में ही छिपे पायेंगे।
एक बार जेब से पैसा निकला
तब ख्वाब हकीकत बनेंगे
शयों के कबाड़ हो जाने पर
दर्द दुगुना बढ़ायेंगे।

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कवि, लेखक और संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
http://anant-shabd.blogspot.com

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