अपनी सोच पर इतना न इतराओ
कि उसको कोई हिलाने लगे,
किसी पर न उछालो कीचड़ कि
छींटे तुम्हारे चेहरे पर भी आकर गिरें
फिर तुमको कोई आईना दिखाने लगे।
हवा के झौंके हैं सभी यहां
तुम भी बह जाओगे,
कोई नया कहेगा,
तुम पुराने हो जाओगे,
नई सांसों की ताजगी के साथ जीना सीखो
नहीं तो हो सकता है कि
कोई अपनी ताजगी से
तुम्हें बासी बताने लगे।
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कवि, लेखक और संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
http://anant-shabd.blogspot.com
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*एकांत में तस्वीरों से ही दिल बहलायें, भीड़ में तस्वीर जैसा इंसान कहां
पायें।*
*‘दीपकबापू’ जीवन की चाल टेढ़ी कभी सपाट, राह दुर्गम भाग्य जो सुगम पायें।।*
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5 वर्ष पहले
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