बाज़ार में नीलाम हो जायें
वही लोग आजकल कहलाते ‘बड़’े है,
डरते है जो बिकने से या काबिल नहीं बिकने के
वह छोटे इंसानों की पंक्ति में राशन लेने खड़े हैं।
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अब इस धरती पर
भगवान अवतार नहीं लेते,
जिसकी नीलाम बोली ऊंची लगायें सौदागर
लोग उसे ही भगवान मान लेते।
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अब कोई जंग नहीं लड़ना,
सच में किसी का भला न करना।
अब भगवान कहलाने के लिये
हाथ पांवों की अदाऐं सरे आम दिखाना,
जहां बाज़ार के सौदागर करें इशारा
वही उनकी दौलत का बनाना ठिकाना,
बाकी कम सौदागरों के दलाल करेंगे,
चमकायेंगे तुम्हारा नाम, कहीं खाते भरेंगे,
तुम बस, बुत की तरह, बाज़ार के भगवान बनना।
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कवि, लेखक और संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियरवही लोग आजकल कहलाते ‘बड़’े है,
डरते है जो बिकने से या काबिल नहीं बिकने के
वह छोटे इंसानों की पंक्ति में राशन लेने खड़े हैं।
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अब इस धरती पर
भगवान अवतार नहीं लेते,
जिसकी नीलाम बोली ऊंची लगायें सौदागर
लोग उसे ही भगवान मान लेते।
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अब कोई जंग नहीं लड़ना,
सच में किसी का भला न करना।
अब भगवान कहलाने के लिये
हाथ पांवों की अदाऐं सरे आम दिखाना,
जहां बाज़ार के सौदागर करें इशारा
वही उनकी दौलत का बनाना ठिकाना,
बाकी कम सौदागरों के दलाल करेंगे,
चमकायेंगे तुम्हारा नाम, कहीं खाते भरेंगे,
तुम बस, बुत की तरह, बाज़ार के भगवान बनना।
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3 टिप्पणियां:
pehle chhand ne to dil jeet liya....
बहुत अच्छा व्यंग्य है..
अब इस धरती पर
भगवान अवतार नहीं लेते,
जिसकी नीलाम बोली ऊंची लगायें सौदागर
लोग उसे ही भगवान मान लेते।
सटीक व्यंग...बहुत बढ़िया
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