पत्थर के टुकड़ों
हाड़मांस के पिंडों
और कागज की किताबों पर
लोग अपनी रखते है आस्था।
भ्रम के नाम पर बिक रहा धर्म
जिसका नहीं सच से वास्ता।
कई छोटे पहाड़ हिमालय बन जाते,
कई इंसान देवता बनकर सीना फुलाते,
अश्लील किताबों के शब्द बन जाते पवित्र,
इसलिये बिक रहा बाज़ार में
सुगंध के नाम पर निकली इत्र,
सुंदर तस्वीरों से सज गये शहर,
फिर भी घृणा बरसा रही कहर,
अंधेरों में भटकने के आदी इंसान
नहीं ढूंढते उजाले का रास्ता।
हाड़मांस के पिंडों
और कागज की किताबों पर
लोग अपनी रखते है आस्था।
भ्रम के नाम पर बिक रहा धर्म
जिसका नहीं सच से वास्ता।
कई छोटे पहाड़ हिमालय बन जाते,
कई इंसान देवता बनकर सीना फुलाते,
अश्लील किताबों के शब्द बन जाते पवित्र,
इसलिये बिक रहा बाज़ार में
सुगंध के नाम पर निकली इत्र,
सुंदर तस्वीरों से सज गये शहर,
फिर भी घृणा बरसा रही कहर,
अंधेरों में भटकने के आदी इंसान
नहीं ढूंढते उजाले का रास्ता।
लेखक और संपादक-दीपक "भारतदीप",ग्वालियर
poet, writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
poet, writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
writer aur editor-Deepak 'Bharatdeep' Gwalior
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