कई चेहरे
पर्दे के पीछे खड़े
आगे बुत है,
मनोरंजन
बना है नशा बुरा
सब धुत हैं।
लोगों की आंखें
रंग देख रही हैं
शर्म नहीं है,
जवान खून
पी रहा ठंडा विष
गर्म नहीं है।
बिका ईमान
नकली मुद्रा पर
सच टूटा है,
जो करे दावा
सत्य बोलने का
वही झूठा है।
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आगे बुत है,
मनोरंजन
बना है नशा बुरा
सब धुत हैं।
लोगों की आंखें
रंग देख रही हैं
शर्म नहीं है,
जवान खून
पी रहा ठंडा विष
गर्म नहीं है।
बिका ईमान
नकली मुद्रा पर
सच टूटा है,
जो करे दावा
सत्य बोलने का
वही झूठा है।
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लेखक और संपादक-दीपक "भारतदीप",ग्वालियर
writer aur editor-Deepak 'Bharatdeep' Gwalior
‘दीपक भारतदीप की हिन्दी-पत्रिका’ पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
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६,ईपत्रिका
७.जागरण पत्रिका
८.हिन्दी सरिता पत्रिका
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