भारत आजाद देश
पर अर्थव्यवस्था गुलाम है,
कांपता है अमेरिका का डॉलर
बिगड़ता अपने रुपये का काम है,
जिनके हाथों में है दौलत की ताकत
उनकी आंखें ताक रहीं न्यूयार्क की तरफ
वाशिंगटन का बसा
उनके दिल में नाम है।
कहें दीपक बापू
अपनी आजादी अब भ्रम लगती है
जब धरती देती अन्न सोने की तरह,
आकाश बिखेरता जल मोती की तरह,
फिर भी गरीब और भूख मिटी नहीं
लॉस एंजिल्स के पर्दे पर
ऑस्कर लेकर भी पिटी नहीं,
भर गयी तिजोरियां
गरीबों की मदद करने वालों की
रुपया चेहरा बदलकर डॉलर हो गया,
रोटी से भरे पेट है जिनके
उनके हाथ में ही रहते व्हिस्की के जाम हैं,
सिगरेट के धूंए सरीखी हो गयी है
उनकी देशभक्ति,
देह यहां
पर बाहर बसी आसक्ति,
जुबान पर भारत का नाम
दिल की उड़ती दुआऐं बहती उस तरफ
जहां अमेरिका का नाम है।
पर अर्थव्यवस्था गुलाम है,
कांपता है अमेरिका का डॉलर
बिगड़ता अपने रुपये का काम है,
जिनके हाथों में है दौलत की ताकत
उनकी आंखें ताक रहीं न्यूयार्क की तरफ
वाशिंगटन का बसा
उनके दिल में नाम है।
कहें दीपक बापू
अपनी आजादी अब भ्रम लगती है
जब धरती देती अन्न सोने की तरह,
आकाश बिखेरता जल मोती की तरह,
फिर भी गरीब और भूख मिटी नहीं
लॉस एंजिल्स के पर्दे पर
ऑस्कर लेकर भी पिटी नहीं,
भर गयी तिजोरियां
गरीबों की मदद करने वालों की
रुपया चेहरा बदलकर डॉलर हो गया,
रोटी से भरे पेट है जिनके
उनके हाथ में ही रहते व्हिस्की के जाम हैं,
सिगरेट के धूंए सरीखी हो गयी है
उनकी देशभक्ति,
देह यहां
पर बाहर बसी आसक्ति,
जुबान पर भारत का नाम
दिल की उड़ती दुआऐं बहती उस तरफ
जहां अमेरिका का नाम है।
लेखक और संपादक-दीपक "भारतदीप",ग्वालियर
poet, writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
writer aur editor-Deepak 'Bharatdeep' Gwalior
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