28 अगस्त 2011

अन्ना हजारे (अण्णा हज़ारे) का अनशन समाप्त होना स्वागतयोग्य-हिन्दी लेख (end of anna hazare fast and agitation-hindi lekh or article)

                 महाराष्ट्र के समाज सेवी अन्ना हजारे आज पूरे देश के जनमानस में ‘महानायक’ बन गये हैं। वजह साफ है कि देश में जन समस्यायें विकराल रूप ले चुकी हैं और इससे उपजा असंतोष उनके आंदोलन के लिये ऊर्जा का काम कर रहा है। पहले अप्रैल में उन्होंने अनशन किया और फिर अगस्त माह में उन्होंने अपने अनशन की घटना को दोहराया। जब अप्रेल   में उन्होंने अनशन आश्वासन समाप्त किया तब उनका मजाक उड़ाया गया था कि वह तो केवल प्रायोजित आंदोलन चला रहे हैं। अब की बार उन्होंने 12 दिन तक अनशन किया। इस अनशन से भारत ही नहीं बल्कि विश्व जनमानस पर पड़े प्रभावों का अध्ययन अभी किया जाना है क्योंकि इस प्रचार विदेशों तक हुआ है। फिर जिन लक्ष्यों को लेकर यह अनशन किया गया उनके पूरे होने की स्थिति अभी दूर दिखाई देती है मगर देश के चिंतकों के लिये इस समय उनकी उपेक्षा करना ही ठीक है। अन्ना हजारे के अनशन आंदोलित पूरे देश के लोगों ने उसकी समाप्ति पर विजयोन्माद का प्रदर्शन किया पर महानायक ने कहा‘‘यह जीत अभी अधूरी है और अभी मैंने अनशन स्थगित किया है समाप्त नहीं।’ इस बयान से एक बात तो समझ में आती है कि अन्ना साहेब में राजनीतिक चातुर्य कूट कूटकर भरा है।
              अन्ना साहेब के बारह दिनों तक चले अनशन में तमाम उतार चढ़ाव आये और अगर उनका उसे छोड़ना ही सफलता माना जाये तो कोई बुरी बात नहीं है। साथ ही लक्ष्य से संबंधित परिणामों पर दृष्टिपात न करना भी ठीक है। पूरे देश का जनमानस ही नहीं जनप्रतिनिधियों के मन में जो भारी तनाव इस दौरान दिखा वह चौंकाने वाला था। इसका कारण यह था कि हिन्दी प्रचार माध्यम निरंतर इससे जुड़े छोटे से छोटे से घटनाक्रम का प्रचार क्रिकेट मैच की तरह कर रहे थे गोया कि देश में अन्य कोई खबर नहीं हो।
            अगर हम तकनीकी दृष्टि से बात करें तो अन्ना साहेब के प्रस्तावित जनलोकपाल ने अभी एक इंच कदम ही बढ़ाया होगा पर अन्ना साहेब की गिरते स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से यह भारी सफलता है। हम तत्काल इस आंदोलन के परिणामों पर विचार कर सकते हैं पर ऐसे में हमारा चिंत्तन इसके दूरगामी प्रभावों को देख नहीं पायेगा।  इस आंदोलन के लेकर अनेक विवाद हैं पर यह तो इसके विरोधी भी स्वीकारते हैं कि इसके प्रभावों का अनदेखा करना ठीक नहीं है।
         प्रधानमंत्री श्रीमनमोहन सिंह की चिट्ठी मिलने के बाद श्री अन्ना साहेब न अनशन तोड़ा। अपने पत्र में प्रधानमंत्री श्री मनमोहन सिंह ने यह अच्छी बात कही है कि ‘संसद ने अपनी इच्छा व्यक्त कर दी है जो कि देश के लोगों की भी है।’’
           उनकी इस बात में कोई संदेह नहीं है और इस विषय पर संसद के शनिवार को अवकाश के दिन विशेष सत्र में सांसदों ने जिस तरह सोच समझ के साथ ही दलगत राजनीति से ऊपर उठकर अपने विचार जिस तरह दिये वह इसका प्रमाण भी है। संभव है विशेषाधिकार के कारण कुछ सांसदों के मन में अहंकार का भाव रहता हो पर कल सभी के चेहरे और वाणी से यही भाव दिखाई देता कि किस भी भी तरह इस 74 वर्षीय व्यक्ति का अनशन टूट जाये जो कि इस देश के जनमानस का ही भाव है। सच बात तो यह है कि इस बहस में आंदोलन से जुड़े संबंधित सभी तत्वों का सार दिखाई देता है। यही कारण है कि प्रचार माध्यमों के सहारे इस आंदोलन की सफलता की बात कही गयी। अनेक सांसदों ने इस आंदोलन के उन देशी विदेशी पूंजीपतियों से प्रायोजित होने की बात भी कही जो भारत की संसदीय प्रणाली पर नियंत्रण करना चाहते हैं। इसके बावजूद सभी ने श्री अन्ना हजारे के प्रति न केवल सभी ने सहानुभूति दिखाई बल्कि उनके चरित्र की महानता को स्वीकार भी किया। देश के जनमानस का अब ध्यान करना होगा यह बात कमोबेश सभी सांसदों  ने स्वीकार की और इस आंदोलन के अच्छे परिणाम के रूप में इसे माना जा सकता है।
           देश के जिन रणनीतिकारों ने इस विषय पर संसद का विशेष सत्र आयोजित करने की योजना बनाई हो वह बधाई के पात्र हैं क्योंकि श्री अन्ना साहेब की वजह से देश के युवा वर्ग ने उसे देखा और यकीनन उसकी लोकतांत्रिक व्यवस्था में रुचि बढ़ेगी। देश के संासदों में अनेक ऐसे हैं जिन्होंने इस बात को अनुभव किया कि अन्ना साहेब की देश में एक महानायक की छवि है और उन पर आक्षेप करने का मतलब होगा देश की आंदोलित युवा पीढ़ी के दिमाग में अपने लिये खराब विचार करना इसलिये शब्दों के चयन में सभी ने गंभीरता दिखाई। बहरहाल कुछ सांसदों ने प्रचार माध्यमों पर आंदोलन को अनावश्यक प्रचार का आरोप लगाया पर उन्हें यह भी याद रखना होगा इसी विषय पर हुए विशेष सत्र के बहाने उन्होंने पूरे देश को संबोधित करने का अवसर पाया जिसे इन्हीं प्रचार माध्यमों ने अपने समाचारों में स्थान दिया। यह अलग बात है कि इस दौरान उनके विज्ञापन भी अपना काम करते रहे। वैसे तो संसद की कार्यवाही चलती रहेगी पर इस तरह पूरे राष्ट्र को संबोधित करने का अवसर सांसदों के पास बहुत समय बाद आया। उनको इस बात पर भी प्रसन्न होने चाहिए कि अभी तक प्रत्यक्ष रूप से राष्ट्र को संबोधित न करने के कारण जनप्रतिनिधियों पर देश के जनमानस की उपेक्षा का आरोप लगता है वह इस अवसर के कारण धुल गया क्योंकि उन्होंने देश की इच्छा को ही व्यक्त किया।
         हम जैसे आम लेखकों के पास इंटरनेट और प्रचार माध्यम ही है जिसके माध्यम से विचारणीय सामग्री मिलती है यह अलग बात है कि उसे छांटना पड़ता है। होता यह है कि समाचार पत्र और टीवी चैनल अपनी रोचकता का स्तर बनाये रखने के लिये किसी एक घटना में बहुत सारे पैंच बना देते हैं और फिर अलग अलग प्रस्तुति करने लगते हैं। सामग्री में दोहराव होता है और जब पाठकों और दर्शकों के अधिक जुड़ने की संभावना होती है तो उनके विज्ञापन भी बढ़ जाते हैं। समस्त प्रचार माध्यम धनपतियों के हाथ में और यही कारण है कि अन्ना साहेब के आंदोलन के प्रायोजन की शंका अनेक बुद्धिमान लोगों के दिमाग में आती है। इसमें कुछ अंश सच हो सकता है पर एक बात यह है अन्ना साहेब एक सशक्त चरित्र के स्वामी हैं।
             आखिरी बात यह है कि भोगी कितना भी बड़ा पद पा जाये वह बड़ा नहीं कहा जा सकता। बड़ा तो त्यागी ही कहलायेगा। यह नहीं भूलना चाहिए कि अन्ना साहेब ने अन्न का त्याग किया था। पूरे 12 दिन तक अन्न का त्याग करना आसान काम नहीं है। हम जैसे लोग तो कुछ ही घंटों में वायु विकार का शिकार हो जाते हैं। अन्ना साहेब ने एक ऐसे भारत की कल्पना लोगों के सामने प्रस्तुत की है जो अभी स्वप्न ही लगता है पर सबसे बड़ी बात वह अभी अपने प्रयास जारी रखने की बात भी कह रहे हैं। मुश्किल यह है कि वह अनशन शुरु कर देते हैं तब आदमी का हृदय कांपने लगता है। यही कारण है कि उनका अनशन टूटना भी ही लोगों में विजयोन्माद पैदा कर रहा है। उन्होंने जिस तरह आज की युवा पीढ़ी को वैचारिक रूप से सशक्त बनाया उसकी प्रशंसा तो की ही जाना चाहिए जो कि अंततः हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था के वाहक हैं।
लेखक और संपादक-दीपक "भारतदीप",ग्वालियर 
poet, writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior

writer aur editor-Deepak 'Bharatdeep' Gwalior

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