सुबह से शाम तक भटके शहर में
कोई दोस्त न मिला,
मिले जो लोग
उनको अपना कहना मुश्किल था
जिनसे कर आये थे वह वफ़ा का वादा
कर रहे थे हमारे सामने उनकी गिला।
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दोस्त बहुत हैं
मगर दोस्ती का मतलब समझ में न आया,
भीड़ में अजनबी भी अपना कहने लगे
पर जब सहारे के लिए ताका इधर उधर
अपने को अकेला पाया।
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