2 मार्च 2008

याददाश्त के यह हाल हैं- हिन्दी शायरी

पहले तोड़कर फिर जोड़ने की बात
पहले रुलाकर फिर हँसाने की बात
अपनी नाकामियों को छिपाने के
लिए रोज नया मोर्चा खोलने की बात
बौना चरित्र, खोखला ख्याल और
खोटी नीयत से समाज में बदलाव की बात
बरसों से चल रही है यहाँ
कहने वालों को लोग सिर उठा लेते हैं
सौंप देते अपने दिल के ताज
फिर भी चल रही है बात पर बात
लोगों की याददाश्त कमजोर होती है
सुना था
पर यहाँ तो लापता है वह
सुनने से पहले ही लोग भूल जाते बात
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किसी को यादों में बसाएं
ऐसा साथी मिलता नहीं
किसी के वादों पर भरोसा करें
ऐसा यार अब मिलता नहीं
भूलने की आदत अच्छी लगती है
अब यादों से डरने की कोई बात नहीं
वफाएं तो मिलती कहाँ
बेवफाई का दर्द दिल मी बसता नहीं

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