आज कुछ होली के अवसर पर जब कुछ ब्लोग देखे तो कुछ दुख और पछतावा हुआ की आखिर लोग कुछ ऊंचा और अलग क्यों नहीं सोचते. वही घिसे-पिटे डायलाग, व्यंग्य और विचार जो बरसों से सुन रहे हैं. वही क्रिकेट और फिल्म पर मजाक क्या कोई और नहीं सूझता.
वैसे अगर देखा जाये तो ब्लोगर पूरे वर्ष होली मनाते रहे हैं. कई बार जब चौपालों का भ्रमण करता हूँ तो हास्य का भाव अधिक दिखाई देता है. अगर आप कभी कभी भडास ब्लोग और उस पर लिखने वालों की तेवर को देखें तो घबडा जायेंगे कि पता नहीं अब क्या बवाल मचने वाला है पर थोडी देर बाद सब कुछ सामान्य. भड़ास के लोग नहीं जानते कि अगर वह अभद्र शब्द न भी लिखे तो भी उनके लिखे में ऐसा प्रभाव है कि लोग हंस भी सकते हैं और रो भी सकते हैं.
हुआ यूं कि भड़ास के मोडरेटर पर हमले की खबर उनके ब्लोग पर थी.मुझे भी बहुत चिंता हुई. ब्लोग पर धारावाहिक रूप से इसका प्रसारण हो रहा था. कुछ कमेन्ट लिखने वाले विचलित थे और हमलावर को कोस रहे थे. मोहल्ला वाले ने इस हमले की घोर निंदा की और लिख दिया कि उनके साथी अब उस ब्लोगर की मदद करें.
मगर अब देखिये एक भडासिया उखड गया'कौन साथी? क्या आप हमारे साथी नहीं है. आप यह कहिये हम-हम सब साथी-अब उसकी इस टिप्पणी ने मेरे अन्दर यह संशय पैदा किया कि क्या यह कोई प्रचार है या इसमे कोई दम है.
फिर एक और पोस्ट और उस पर मोहल्ला ब्लोग वाले ने कमेन्ट में लिखा गया कि संतोष का विषय है कि लहुलाहान वाली स्थिति नही हैं. हमें में तसल्ली हुई पर आगे कमेन्ट देखा तो हैरान हो गए. एक भडासिए ने रोष जताया कि मोहल्ले वाले तो हमारा दुश्मन खुद ही कहलवाना चाहते हैं. हम क्या झूठ बोल रहे हैं कि हमारे साथी पर हमला हुआ है और वह बुरी तरह घायल है. इसका मतलब यह है कि मोहल्ले वालों की इसमें कोई कारिस्तानी है और इनके खिलाफ भी रिपोर्ट होनी चाहिए.
अब भडास के मोडरेटर पर हमले का विषय दूसरे नंबर पर था और मोहल्ले वाले के प्रतिक्रिया उनके गुस्से का विषय थी. हम आखिर कर क्या रहे थे दरअसल हम भडास के मोडरेटर की उस ब्लोग पर ठीक ठाक होने और पिक्चर पर जाने की घोषणा देखकर हैरान थे और उससे ऐसा लग रहा था कि उस पर हमला हुआ था. हम फिर पहले की पोस्टों को देखने लगे. हम शाम को देख रहे थे और उनका क्रम देखा तो समझने में देर नहीं लगी कि इन्होने आज खूब हिट्स लिए होंगे. उस दिन कम से कम दस बार तो हमने उनके ब्लोग को देखा होगा.हम सोच रहे थे कि इतना जबरदस्त भावपूर्ण लिखने वालों के लिखने की ताकत निश्चित बहुत होगी. एक बार हम यह भी भूल गए कि मोडरेटर के ठीक होने की जानकारी अब उस ब्लोग कि सबसे पहले पोस्ट थी.उनके लिखे का ऐसा प्रभाव है कि मैं अभी भी लिख रहा कि वह एक जबर्दास कामेडी थी. अगर नहीं थी तो फिर भड़ास वालों ने उस प्रसंग को आगे क्यों नहीं बढाया?
वह सच लिखते हैं या केवल कल्पना प्रस्तुत करते हैं पर यह वह जाने पर यह एक वास्तविकता है कि वह अन्य ब्लागरों को पठनीय सामग्री देते हैं ताकि उनके अन्दर दिलचस्पी बनी रहे. हमला दिल्ले में हुआ खबर मुंबई डे गयी. मुंबई वाले ने दिल्ली में किसी ब्लोगर को फोन कर मदद मांगी. कमेन्ट पर कमेन्ट लिखने वाले वही चार-पांच लोग. बहुत भावपूर्ण कमेन्ट. ऐसा लगता था कि कोई ब्लोग पर लिखा गया धारावाहिक हो. होली पर मुझे उनके कई घटनाएं याद आ रहीं है पर आज बस इतना ही.
शब्द अर्थ समझें नहीं अभद्र बोलते हैं-दीपकबापूवाणी (shabd arth samajhen
nahin abhardra bolte hain-Deepakbapuwani)
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*एकांत में तस्वीरों से ही दिल बहलायें, भीड़ में तस्वीर जैसा इंसान कहां
पायें।*
*‘दीपकबापू’ जीवन की चाल टेढ़ी कभी सपाट, राह दुर्गम भाग्य जो सुगम पायें।।*
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5 वर्ष पहले
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