कभी पाँव ऊंचा पर
तो कभी खाई में
जीवन का सफर है
चलता जा रहा हूँ अपने रास्ते
वक्त नहीं गंवाता जगहंसाई में
कहने को लोग कुछ भी कहेंगे
करो या न हंसो वह हँसेंगे
घोडे को गधा और और सियार को शेर समझेंगे
चलता जा रहा हूँ
किसी को सुनने में नहीं दिलचस्पी
सब जगह लोगों का मन लगता है
छोड़ किसी की भलाई में
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शब्द अर्थ समझें नहीं अभद्र बोलते हैं-दीपकबापूवाणी (shabd arth samajhen
nahin abhardra bolte hain-Deepakbapuwani)
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*एकांत में तस्वीरों से ही दिल बहलायें, भीड़ में तस्वीर जैसा इंसान कहां
पायें।*
*‘दीपकबापू’ जीवन की चाल टेढ़ी कभी सपाट, राह दुर्गम भाग्य जो सुगम पायें।।*
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5 वर्ष पहले
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