कई बस्तियां बसीं और उजड़ गईं
राजमहल खडे थे जहाँ
अब बकरियों के चरागाह हो गए
सर्वशक्तिमान अपनी कृपा के साथ
कहर का हथियार नहीं रखता अपने साथ
तो कौन मानता उसे
कई जगह उसका भी प्रवेश होता वर्जित
नाम लिया जाता
पर घुसने नहीं दिया जाता
नरक और स्वर्ग के दृश्य यहीं दिखते
फिर कौन ऊपर देख कर डरता
खडे रहते फ़रिश्ते नरक में
शैतानों के महल होते सब जगह
जो अब इतिहास के कूड़ेदान में शामिल हो गए
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चंद किताबों को पढ़कर
सबको वह सुनाते हैं
खुद चलते नहीं जिस रास्ते
वह दूसरे को बताते हैं
उपदेश देते हैं जो शांति और प्रेम का
पहले वह लोगों को लडाते हैं
फिर गुरु की भूमिका में आते हैं
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शब्द अर्थ समझें नहीं अभद्र बोलते हैं-दीपकबापूवाणी (shabd arth samajhen
nahin abhardra bolte hain-Deepakbapuwani)
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*एकांत में तस्वीरों से ही दिल बहलायें, भीड़ में तस्वीर जैसा इंसान कहां
पायें।*
*‘दीपकबापू’ जीवन की चाल टेढ़ी कभी सपाट, राह दुर्गम भाग्य जो सुगम पायें।।*
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5 वर्ष पहले
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