लाया फंदेबाज कई तस्वीरें
और दिखाते हुए बोला
‘‘दीपक बापू, तुम ही एक दोस्त हो
जिससे हम कुछ कह पाते हैं
पर जबसे किया है ब्लाग तुमने शुरू
हमारे लिये हो गये गुरू
भले ही अमल नहीं करते
पर तुंमसे ज्ञान बहुत पाते हैं
हम चाहते है चलो इस शहर में घूम आयें
तो कुछ बदलाव पायें
देखो यह फोटो
उस शहर में कितना बड़ा होटल है
और यह देखो कितना सुदर पार्क है
वहां एक चमकदार शापिंग माल भी
अब तुम अपने ध्यान लगाने के लिये
किसी जगह का पता मत पूछ लेना
क्योंकि इसका मुझे पता नहीं
और भी बहुत सारी इमारतें देखने लायक हैं
साथ चलो तो घूमकर आ जायें
फोटो देखकर खुश हुए
फिर मूंह बनाकर बोले-
‘‘घूम आयेंगे
कल शवासन में इन जगहों पर
ही जाकर घूम आयेंगे
फिर तुम्हें भी बतलायेंगे
कुछ समझा करो यार
शापिंग माल पर पैसे खर्च करो
तो खूब माल आ जायेगा
टिकिट के पैसे हों तो
वाटर पार्क में भी मजा आयेगा
जो होटल दिखा रहे हो
वह तो हमें बाहर से ही दिख पायेगा
हम देखते हैं इस मायावी दुनियां को
जिसका चेहरा हमेशा चमकता नजर आता है
पर इसके पीछे जो सच छिपा है
वह हमें सब जगह नजर आता है
कहीं पैसे के जोर पर
तो कहीं तलवार के सहारे
इसका रंग और निखर जाता है
सच का इस मायावी चेहरे से कोई नहीं नाता
तुम कहते हो कि
हमारे ध्यान के लिये
किसी सर्वशक्तिमान के दर का पता नहीं
पर हमें तो बस उसका ही आसरा होता
जब हमारा तन और मन थक जाता है
इन फोटो से जब ऊबता है मन
इष्टदेव की प्रतिमा को देखकर ही
प्रफुल्लित हो पाता है
तुम अपने परिवार को लेकर घूम आओ
हम चमकती हुई दुनियां की तस्वीरो के
पीछे छिपे कठोर सत्य से पीछा
छुड़ाकर जायें तो कहां जायें
अपनी कविता लिखकर ही खुश हैं
शब्दों भंडार के तरकस से निकलें तो
अपने निशाने पर जायें
कुछ समझें लोग तो कुछ समझ न पायें
……………………………………………..
शब्द अर्थ समझें नहीं अभद्र बोलते हैं-दीपकबापूवाणी (shabd arth samajhen
nahin abhardra bolte hain-Deepakbapuwani)
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*एकांत में तस्वीरों से ही दिल बहलायें, भीड़ में तस्वीर जैसा इंसान कहां
पायें।*
*‘दीपकबापू’ जीवन की चाल टेढ़ी कभी सपाट, राह दुर्गम भाग्य जो सुगम पायें।।*
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5 वर्ष पहले
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