न वार्यपि प्रयचछत्तु बैडालव्रतिके द्विजे
न बकव्रतिके विप्रे नावेदविदि धर्मवित्
धार्मिक वृत्ति के लोगों को चाहिए कि वह दूसरों को मूर्ख बनाकर लूटने वाले व्यक्ति या साघू का भेष धरकर ढोंग और पाखंड रचाने वाले तथा ब्रहम् ज्ञान से रहित व्यक्ति को पानी तक न पिलायें।
यथा प्लवेनौपलेन निमज्जत्युदके तरन्
तथा निमज्जतोऽधस्तादज्ञो दातृप्रतीच्छकौ
जिस तरह पानी में पत्थर की नाव पर सवार व्यक्ति नाव के साथ ही पानी में डूब जाता है वैसे ही दान लेने वाली कुपात्र और मूर्ख तथा उसे दान देने वाला दोनों ही नरक में जाते हैं।
वर्तमान संदर्भ में व्याख्या-भारतीय अध्यात्म में दान की महिमा बहुत है पर इस आड़ में ढोंगी साधु और संतों ने आम लोगों को मूर्ख बनाकर लूटने का जो सिलसिला शुरू किया तो वह सदियों के बाद आज भी जारी है। हालांकि आज लोग पहले के मुकाबले अधिक शिक्षित हैं पर इसके बावजूद धर्म के नाम ढोंगी लोगों का दान देकर उनके भरण-भोषण कर अनजाने में पाप के भागी बन रहे हैं। कहने को तो कई लोग कहते हैं कि हमें क्या मतलब? हम तो शुद्ध मन से दान कर रहे है और हमारी नीयत तो साफ है।’
हमारे अध्यात्म के मनीषी मनु कहते हैं कि सुपात्र को दिया गया दान फलता है और कुपात्र को दिया गया दान पाप का भागी बना देता है। अगर हमने शुद्ध हृदय से दान दिया है और लेने वाला मूर्ख और दुष्ट है तो उसके द्वारा किया गया दुरुपयोग हमें भी पाप का भागी बना देता है अतः ऐसे दान से तो न करना अच्छा। अतः दान देते समय लेने वाले की पात्रता का भी विचार करना चाहिए।
मनु स्मृति:ढोंगी आदमी को पानी भी न पिलायें
राम का नाम लेते हुए महलों में कदम जमा लिये-दीपक बापू कहिन (ram nam japte
mahalon mein kadam jama dtla-DeepakBapukahin)
-
*जिसमें थक जायें वह भक्ति नहीं है*
*आंसुओं में कोई शक्ति नहीं है।*
*कहें दीपकबापू मन के वीर वह*
*जिनमें कोई आसक्ति नहीं है।*
*---*
*सड़क पर चलकर नहीं देखते...
6 वर्ष पहले
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें