5 दिसंबर 2008

जंग के लिए मित्रों का जमावडा जरूरी -आलेख

1971 का भारत पाक युद्ध जिन लोगों ने देखा है वह यह बता सकते हैं कि उसमें इस देश ने क्या पाया और खोया? सच तो यह है कि वहां से इस देश के हालत बिगड़े तो फिर कभी संभले ही नहीं। भारतीय अर्थव्यवस्था में महंगाई और बेरोजगारी का दौर शुरू हुआ तो वह आज तक थमा ही नहीं है।

कुछ लोगों को लगता है कि देश का प्रबुद्ध वर्ग केवल बहस कर ही अपना काम चलाता है पर इसका कारण यह है कि 1971 के युद्ध की विजय का उन्माद जब थम गया तब उसके बाद जो हालत इस देश में हुए उसकी कल्पना नहीं की जा सकती। सच तो यह है कि युद्ध के बाद इस देश के आम और खास दोनों प्रकार कम आदमियों में नैतिक चरित्र का गिरावट का ही प्रमाण मिला। उस सयम अमेरिका सहित अनेक देशों ने भारत पर प्रतिबंध लगाये थे जिससे देश में खाद्य सामग्री के साथ ही मिट्टी के तेल का संकट भी शुरू हो गया था। उस समय बाजार में सामान्य ढंग से उपलब्ध गेहूं, चावल, शक्कर,डालडा घी, मिट्टी का तेल, लक्स और लाईफबाय साबुन बाजार से गायब हो गये और उनको राशन की दुकानों पर बेचा जाने लगा। वैसे उस समय कालाबाजार का दौर शुरू हो गया पर आम आदमी की अधीरता का परिचय दे रहा था। लोगों ने मिट्टी के तेल के कनस्तर भरकर घर में रख लिये जैसे कि एक दिन फिर वह मिलने वाला ही न हो। लाईफबाय और लक्स साबुन को वह लोग भी राशन से लेने लगे जो उसका उपयोग नहीं करते थे। उनको भी यह डर लगने लगा कि कहीं अन्य साबुन मिलना भी बाजार में बंद न हो जाये। जिन लोगों को अपने काम से फुरसत नहीं थी वह अपने बच्चों को इस काम में लगाने लगे। लोग उस समय आवश्यकता से अधिक संग्रह कर रहे थे गोया कि बाजार में प्रलय हो जायेगी। आशय यह है कि फिलहाल तो लोग युद्ध की बात कर रहे हैं पर क्या वह उसके समाप्त होने पर अपने भविष्य को लेकर धीरज रख पायेंगे?

युद्ध के बाद बंग्लादेश की सहायता के लिये कर लगाया गया जो बहुत समय तक चला। अनेक चीजों में वह कर लगा था पर पता नहीं वह सभी सरकारी खजाने में जमा हुआ कि नहीं। आज के अनेक प्रबुद्ध लोगों ने यह दृश्य देखे हैं और इसलिये ही वह दोनों देशों के बीच बृहत युद्ध के विचार को खारिज करते हैं। अंतर्जाल पर अनेक ब्लाग लेखकों ने देश के खास वर्ग के लोगों के नैतिक चरित्र पर उंगली उठायी है पर उनको यहां के आम आदमी का चरित्र भी देखना चाहिये। 1971 का युद्ध जब तक चला खूब उन्माद था। लोग रातभर जागकर अपनी गलियों,मोहल्लों में पहरा देते थे कि कहीं दुश्मन का जासूस न आ जाये। जैसे ही युद्ध समाप्त हुआ सभी लोगे अपने स्वार्थ पूर्ति को लेकर अधीर हो गये और उसके बाद भारतीय अर्थव्यव्स्था में गरीब और अमीर के बीच का भेद बढ़ता ही गया और कालांतर में वह इतना विकराल रूप ले बैठा जिसे आज भी देश भुगत रहा है।
1971 में भारत ने जिस बंग्लादेश को आजाद कराया वह भी कोई पाकिस्तान से कम खतरनाक नहीं है। उसके यहां आतंकवादियों के अनेक शिविर है पर वह उनसे इंकार करता है। पूर्वांचल में चल रहा आतंक केवल उसी के सहारे चल रहा है और इस पर भी वह भारत को आंखें दिखाता है। सच बात तो यह है कि 1971 का विजय अपने आप में एक भ्रम साबित हुई है। ऐसे मेें 37 वर्ष बाद किसी ऐसे दूसरे युद्ध को बिना सोचे प्रारंभ करने का प्रबुद्ध लोग विरोध कर रहे हैं तो उनकी बात भी विचारणीय है पर इसका मतलब यह नहीं है कि कोई सीमित कार्यवाही नहीं की जानी चाहिये।

इसके लिये पाकिस्तान की अंदरूनी स्थिति का फायदा उठाना कोई मुश्किल काम नहीं है। पाकिस्तान में पंजाब प्रांत के प्रभाव का उसके तीन अन्य प्रांतों-सिंध, बलूचिस्तान और सीमा प्रांत में जमकर विरोध होता है। देखा जाये तो पाकिस्तान ने मजहब पर आधारित आतंकवाद को अपने देश में पनाह देकर अपने देश को एक ही किया यह अलग बात है कि अब यह आतंकी अपना खेल उसके इन्हीं क्षेत्रों में दिखाने लगे। आज भी पाकिस्तान का संविधान उसके एक बहुत बड़े भूभाग पर नहीं चलता। ऐसे ही भूभाग पर उसने विदेशी आतंकियों को स्थापित किया है जिनकी वजह से वहां के लोग उसके नियंत्रण में है।
अफगानिस्तान पर सोवियत संध के कब्जे के बाद जब अमेरिका ने उसके खिलाफ युद्ध शुरू किया तो बलूचिस्तान और सीमा प्रात में आतंकवादियों के अड्डे बनाये। सोवियत संघ के वहां से हटने के बाद अमेरिका ने भी उन आतंकियों से मूंह फेर दिया पर उन्होंने इसका बदला उसके यहां वर्डट्रेड सेंटर ध्वस्त कर लिया। उसके बाद अमेरिका ने आतंकवादियों के विरुद्ध जंग छेड़ ली और किसी न किसी स्तर पर भारत ने उसका समर्थन दिया।

अब अमेरिका के समर्थन की भारत को दरकरार है। सच तो यह है कि वह इस समय विश्व का सर्वाधिक संपन्न और शक्तिशाली राष्ट्र है पर वह भारत विरोधी आतंकियों के प्रति उसका रवैया उतना सख्त नहीं है। अब अगर वह भारत को समर्थन देकर आतंकियों के शिविरों को तहस नहस करने के लिये समर्थन देता है तभी कोई सीमित सैन्य कार्यवाही की जा सकती है। उसके बिना ऐसा करने पर बृहद युद्ध छिड़ जाने की आशंका भी बलवती हो सकती है। अब जो कूटनीतिक गतिविधियां विश्व के परिदृश्य पर उभर रही हैं उससे यह कहना आसान नहीं है कि भारत कोई सीमित कार्यवाही भी कर सकेगा। अमेरिका अगर यह मान लेता है कि भारत विरोधी आतंकी उसके भी दुश्मन है तो ठीक है। इसके विपरीत अगर वह अमेरिका को यह समझाने में सफल हो जाते हैं कि वह उसके विरोधी नहीं हैं तो शायद वह वैसा समर्थन नहीं दे। वैसे अमेरिका ने अभी पूरी तरह अपने पते नहीं खोले हैं पर इतना तय है कि वह पाकिस्तान के प्रति अभी झुका हुआ है पर उसे अब भारत के प्रति भी अपना समर्थन व्यक्त करना होगा क्योंकि यह तो वह भी मानता है आतंकवाद के विरुद्ध संघर्ष में भारत का उसे सहयोग मिलता रहा है। 1971 में भारत की विजय पर उसी ने ही प्रतिबंध लगाकर पानी फेरा था यह इस देश का प्रबुद्ध वर्ग जानता हैं। यह तब की बात है कि जब वह इतना शक्तिशाली नहीं था।
मगर यह सभी अनुमान है। आगे कैसा समय आने वाला है यह कहना कठिन है। अपने जन्म के बाद भारी मंदी से जूझ रहे अमेरिका को कई तरह से भारत की आवश्यकता है। ऐसे में यह भी संभव है कि वह कोई ऐसी योजना बना रहा हो जिससे कि सांप भी मर जाये और लाठी भी न टूटे। पाकिस्तान पर उसकी पकड़ स्पष्ट है और इसके बावजूद अगर वहां भारत विरोधी आतंकी मौजूद हैं तो शक के घेर में वह स्वयं भी आ जाता है। कुल मिलाकर मामला यह है कि भारत को विश्व के सभी देशों को साथ लेकर कोई कार्यवाही करनी होगी क्योंकि अकेले तो अमेरिका भी अभी आंतकवाद के विरुद्ध विजय प्राप्त नहीं कर सका है। किसी युद्ध में विजय अनिश्चित होती है इसलिये काफी विचार कर ही उसे शुरु करना चाहिये। युद्ध से पहले अपने मित्रों का जमावड़ा बड़ी संख्या में करना चाहिये ताकि समय आने पर वह मदद कर सकें।
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1 टिप्पणी:

नीरज मुसाफ़िर ने कहा…

दीपक जी, अगर युद्ध होता है तो इसके परिणाम तो खतरनाक होंगे ही, अच्छा होगा अगर विश्व समुदाय मिलकर पाकिस्तान पर राजनैतिक और आर्थिक प्रतिबन्ध लगा दें.

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