हैरानी है इस बात पर कि
समलैंगिकों के मेल पर लोग
आजादी का जश्न मनाते हैं,
मगर किसी स्त्री पुरुष के मिलन पर
मचाते हैं शोर
उनके नामों की कर पहचान,
पूछतें हैं रिश्ते का नाम,
सभ्यता को बिखरता जताते हैं।
कहें दीपक बापू
आधुनिक सभ्यता के प्रवर्तक
पता नहीं कौन हैं,
सब इस पर मौन हैं,
जो समलैंगिकों में देखते हैं
जमाने का बदलाव,
बिना रिश्ते के स्त्री पुरुष के मिलन
पर आता है उनको ताव,
मालुम नहीं शायद उनको
रिश्ते तो बनाये हैं इंसानों ने,
पर नर मादा का मेल होगा
तय किया है प्रकृति के पैमानों ने,
फिर जवानी के जोश में हुए हादसों पर
चिल्लाते हुए लोग, क्यों बुढ़ाये जाते हैं।
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योगी कभी भोग नहीं करेंगे
किसने यह सिखाया है,
जो न जाने योग,
वही पाले बैठे हैं मन के रोग,
खुद चले न जो कभी एक कदम रास्ता
वही जमाने को दिखाया है।
जानते नहीं कि
भटक जाये योगी,
बन जाता है महाभोगी,
पकड़े जाते हैं जब ऐसे योगी
तब मचाते हैं वही लोग शोर
जिन्होंने शिष्य के रूप में अपना नाम लिखाया है।
कवि, लेखक और संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
http://anant-shabd.blogspot.com
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*एकांत में तस्वीरों से ही दिल बहलायें, भीड़ में तस्वीर जैसा इंसान कहां
पायें।*
*‘दीपकबापू’ जीवन की चाल टेढ़ी कभी सपाट, राह दुर्गम भाग्य जो सुगम पायें।।*
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5 वर्ष पहले
1 टिप्पणी:
सत्य वचन.
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