बचपन में एक गाना सुनते थे कि ‘ऐ, मेरे वतन के लोगों, जरा आंख में भर लो पानी, जो शहीद हुए उनकी याद करो कुर्बानीं।’ यह गाना सुनकर वास्तव में पूरी शरीर रोमांचित हो उठता था। आज भी जब यह गाना याद आता है तो उस रोमांच की याद आती है-आशय यह है कि अब पहले रोमांच नहीं होता।
आखिर ऐसा क्या हो गया कि अब लगता है कि उस समय यह जज़्बात पैदा करने वाले गीत, संगीत या फिल्में समाज में कोई जाग्रति या देशभक्ति के लिये नहीं बनी बल्कि उनका दोहन कर कमाई करना ही उद्देश्य था।
फिर क्रिकेट में देशभक्ति का जज़्बात जागा। जब देश जीतता तो दिल खुश होता और हारता तो मन बैठ जाता था। अब वह भी नहीं रहा। अब स्थिति यह है कि जिसे पूरा देश भारतीय क्रिकेट टीम यानि अपना प्रतिनिधि मानता है उसे अनेक अब एक भारतीय क्रिकेट नियंत्रण बोर्ड नामक एक क्लब की टीम ही मानते हैं जो व्यवसायिक आधार पर अपनी टीम बनाती है और आर्थित तंत्र के शिखर पुरुष उसके प्रायोजक मसीहा हैं। इसका कारण यह है कि अब देशों की सीमायें तोड़कर विदेशों से खिलाड़ी यहां बुलाकर देश के कुछ शहरों और प्रदेशों के नाम से क्लब स्तरीय टीमें बनायी जाती हैं। देश क्रिकेट पर पैसा खर्च कर रहा है, तो इस पर सट्टे खेलने और खिलाने वालों के पकड़े जाने की खबरे आती हैं जिसमें अरबों रुपये का दाव लगने की बात कही जाती है। आखिर यह पैसा भी तो इसी देश का ही है।
यह देखकर लगता है कि हम तो ठगे गये। अपना कीमती वक्त फोकट में इस बाजार और उसकी मुनादी करने वालों-संगठित प्रचार माध्यम-के इशारों पर क्रिकेट पर गंवाते रहे।
अब हो क्या रहा है। विश्व उदारीकरण के चलते बाजार देशभक्ति के भाव को खत्म कर वैश्विक जज़्बात बनाना चाहता है। भारतीय बाजार पर स्पष्टतः बाहरी नियंत्रण है। अगर पश्चिम में उसे पैसा सुरक्षित चाहिये तो मध्य एशिया में उसे भारत में ही अपने को मजबूत बनाने वाल संपर्क भी रखने हैं। अब बात करें पाकिस्तान की। पाकिस्तान एक देश नहीं बल्कि एक उपनिवेश है जिस पर पश्चिमी और मध्य एशियों के समृद्धशाली देशों का संयुक्त नियंत्रण है। स्थिति यह है कि जब देश के हालत बिगड़ते हैं तो उसकी सरकार अपनी सेना के साथ बैठक ही मध्य एशिया के देश में करती है। अगर किसी गोरे देश की टीम पाकिस्तान नहीं जाना चाहती तो वह उसका कोटा मध्य एशिया के देश में खेलकर पूरा करती है। यह क्रिकेट एक और दो नंबर के व्यवसायियों के लिये अरबों रुपये का खेल हो गया है और अरब देश तेल के अलावा इस पर भी अपनी पकड़ रखते हैं। मध्य एशिया इस समय अवैध, अपराधिक तथा दो नंबर के धंधों का केंद्र बिन्दू हैं अलबत्ता कथित रूप से अपने यहां धर्म के नाम पर कठोर कानून लागू करने का दावा करते हैं पर यह केवल दिखावा है। अलबत्ता समय समय पर आम आदमी को इसका निशाना बनाते हैं। अभी दुबई में अवैध कारोबार में लगे 17 भारतीयों को इसलिये फांसी की सजा सुनाई गयी है क्योंकि उन पर एक पाकिस्तानी की हत्या का आरोप है। इसको लेकर भारत में जो प्रतिक्रिया हुई है वह ढोंग के अलावा कुछ नहीं दिखती। दुबई को भारतीय बाजार से ही ताकत मिलती है। उसके भोंपू-संगठित प्रचार माध्यम-उनको बचाने के लिये पहल कर रहे हैं। अगर वाकई भारतीय अमीर और उनके प्रचारक इतने संवदेनशील हैं तो वह दुबई की सरकार पर सीधे दबाव क्यों नहीं डालते? पीड़ितों को कानूनी मदद के नाम वहां की अदालतों में पेश होने से कोई लाभ नहीं होगा। हद से हद आजीवन कारावास हो जायेगा। अगर भारतीय प्रचार तंत्र में ताकत है तो वह क्यों नहीं पूछता कि ‘आखिर तुम्हारे यहां यह अवैध धंधा चल कैसे रहा था, तुम तो बड़े धर्मज्ञ बनते हो।’
प्रसंगवश याद आया कि एक स्वर्गीय प्रगतिशील नाटककार की पत्नी भी वहां नाटक पेश करने गयी थी। उसमें वहां के धर्म की आलोचना शामिल थी। इसके फलस्वरूप उसे पकड़ लिया गया। पता नहीं उसके बाद क्या हुआ? उस समय यहां के लोगों ने कोई दबाव नहंी डाला। उस प्रगतिशील नाटककारा से सैद्धांतिक रूप से सहमति न भी हो पर उसके साथ हुए इस व्यवहार की निंदा की जाना चाहिये थी पर ऐसा नहीं हुआ।
एक बात तय है कि भारतीय धनाढ्य एक हो जायें तो यह मध्य एशिया के देश घुटनों के बल चलकर आयेंगे। कभी सुना है कि किसी अमेरिकी या ब्रिटेनी को को मध्य एशिया में पकड़ा गया है। इसके विपरीत यहां की आर्थिक, सामाजिक तथा प्रचार शक्तियां तो मध्य एशिया देशों से खौफ खाती दिखती हैं। स्थित यह है कि उनको प्रसन्न करने के लिये उनके पाकिस्तान नामक उपनिवेश से भी दोस्ताना दिखाने लगी हैं।
अभी हाल ही में भारत की एक महिला टेनिस खिलाड़ी और पाकिस्तान के बदनामशुदा क्रिकेट खिलाड़ी की शादी को लेकर जिस तरह भारतीय प्रचार माध्यमों ने निष्पक्षता दिखाने की कोशिश की वह इस बात का सबसे बड़ा प्रमाण बनने जा रहा है कि भारतीय बाज़ार और उसके प्रचार माध्यमों के लिये देशभक्ति तथा आतंकवाद एक बेचने वाला मुद्दा है और उनके प्रसारणों को देखकर कभी जज़्बात में नहीं बहना चाहिये। पाकिस्तानी दूल्हे के बारे में किसी भी एक चैनल ने यह नहीं कहा कि वह दुश्मन देश का वासी है।
उस पर प्रेम का बखान! अगर भारतीय दर्शन की बात करें तो उसमें प्रेम तो केवल अनश्वर परमात्मा से ही हो सकता है। उसके बाद भी अगर उर्दू शायरों के शारीरिक इश्क को भी माने तो वह भी पहला ही आखिरी होता है। किसी ने शादी तोड़ी तो किसी ने मंगनी-उसमें प्रेम दिखाते यह प्रचार माध्यम अपनी अज्ञानता ही दिखा रहे हैं। वैसे इस शादी होने की भूमिका में बाजार और प्रचार से जुड़े अप्रत्यक्ष प्रबंधकों की क्या भूमिका है यह तो बाद में पता चलेगा। उनकी संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता क्योंकि क्रिकेट और विज्ञापनों का मामला जुड़ा है। फिर मध्य एशिया में उनके रहने की बात है। इधर एक चित्रकार भी भारत ये पलायन कर मध्य एशिया में चला गया है। कभी कभी तो लगता है कि मध्य एशिया के देश अपने यहां प्रतिभायें पैदा नहीं कर पाने की खिसियाहट भारत से लेकर अपने यहां बसाने के लिये तो लालायित नहीं है-हालांकि यह एक मजाक वाली बात है ।
एक बात दिलचस्प यह है कि क्रिकेट खिलाड़ियों को आस्ट्रेलिया में ही प्रेमिका क्यों मिलती है? क्या वहां कोई ऐसा तत्व या स्थान मौजूद है जो क्रिकेट खिलाड़ियों को प्रेमिकायें और पत्नी दिलवाता है-संभव है अन्य क्षेत्रों से जुड़े लोगों को इच्छित जीवन साथी भी वहां मिलता हो। इसका पता लगाना चाहिये। एक भारतीय खिलाड़ी को भी वहीं प्रेमिका मिली थी जिससे उसकी शादी संभावित है। अपने देश के महान स्पिनर ने भी वहीं एक युवती से विवाह किया था। इसकी जानकारी इसलिये भी जरूरी है कि भारत में अनेक लड़के इच्छित रूप वाली लड़की पाने के लिये तरस रहे हैं इसलिये कुंवारे घूम रहे हैं। इधर कुछ लोग कह रहे हैं कि छोटे मोटे विषयों पर पढ़ने के लिये आस्ट्रेलिया जाने की क्या जरूरत है? ऐसे युवकों वहां इस बजाने जाने का अवसर मिल सकता है कि वहां सुयोग्य वधु पाने की कामना पूरी हो सकती है।
बहरहाल बाज़ार और उसके प्रचार माध्यमों का रवैया यह सिद्ध कर रहा है कि उनके देशभक्ति, समाज सेवा, धर्म और भाषा के संबंध में कोई स्पष्ट रवैया नहीं है और ऐसे में आम आदमी उनके अनुसार जरूर बहता रहे पर ज्ञानी लोग अपने हिसाब से मतलब ढूंढते रहेंगे। एक पाकिस्तानी दूल्हे को जिस तरह इस देश में मदद मिल रही है उससे आम लोगों में भी अनेक तरह के शक शुबहे उठेंगे। 26/11 को मुंबई में हुए हमलों में जिस तरह रेल्वे स्टेशन पर कत्लेआम किया गया उससे इस देश के लोगों का मन बहुत आहत हुआ। बाज़ार और उसके प्रचार माध्यम एक पाकिस्तानी दूल्हे पर जिस तरह फिदा हैं उससे नहीं लगता कि वह आम लोगों के जज़्बात समझ रहे हैं। कोई भारतीय लड़की किसी पाकिस्तानी से शादी करे, इसमें आपत्ति जैसा कुछ नहीं है पर जब ऐसी घटनायें हैं तब दोनों देशो में तनाव बढ़ेगा और इससे दोनों देशों के आम लोगों पर प्रभाव पड़ता है। अलबत्ता क्रिकेट और अन्य खेलों के विज्ञापन माडलों पर इसका कोई असर नहीं पड़ सकता क्योंकि उनको बाज़ार और प्रचार अपनी शक्ति से सहारा देता है। सीधे पाकिस्तान से नहीं तो मध्य एशिया के इधर से उधर यही बाज़ार करता है। पिछली बार जब पाकिस्तान से संबंध बिगड़े थे तब यही हुआ था। आम आदमी की ताकत नहीं थी पर अमीर लोग मध्य एशिया के रास्ते इधर से उधर आ जा रहे थे।
कहने का अभिप्राय यह है कि देशभक्ति जैसे भाव का इस बाज़ार और प्रचार तंत्र के लिये कोई तत्व नहीं है जब तक उससे उनका हित नहीं सधता हो।
------------कवि, लेखक और संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
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1 टिप्पणी:
बहुत बढिया भावप्रधान आलेख.
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