जोगिया रंग ओढ़कर जोगी नहीं हो जाते,
नीयत का साफ होना जरूरी है,
सच्चे संत कभी भोगी नहीं हो पाते।
हाथ में किताब है धर्म की,
नहीं जानते जीवन रहस्य के मर्म की,
धरती की गर्म हवा से विचलित हो जाते,
दौलत की ख्वाहिश वाले कभी निरोगी नहीं हो पाते।
भीड़ जुटा ली अपने चाहने वालों
धर्म का कर रहे सरे राह सौदा,
सर्वशक्तिमान की भक्ति का बनाते रोज नया मसौदा,
एक कंकड़ भी उछल कर सामने आ जाये
तो आकाश से गिरे परिंदे की तरह घबड़ाते।
हमदर्दी बटोरने के लिये रचते नित नये नाटक
ज़माने से खोया विश्वास पाने के लिये
कभी कभी भक्ति के शिकारी
खुद शिकार बनने दिखते
फिर हमदर्दी के लिये हाथ फैलाते।
------------
साहुकार हो गये लापता
अब संत ही हो गये व्यापारी,
माया की जंग में होती ही है मारामारी।
कहीं कंकर पत्थर उछलते
कहीं चलते अस्त्र शस्त्र
आस्था पर संकट क्या आयेगा
वह तो है बिचारी।
--------------
कवि, लेखक और संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
http://anant-shabd.blogspot.com
-----------------------------
‘दीपक भारतदीप की हिन्दी-पत्रिका’ पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द पत्रिका
2.दीपक भारतदीप का चिंतन
3.दीपक भारतदीप की शब्दयोग-पत्रिका
राम का नाम लेते हुए महलों में कदम जमा लिये-दीपक बापू कहिन (ram nam japte
mahalon mein kadam jama dtla-DeepakBapukahin)
-
*जिसमें थक जायें वह भक्ति नहीं है*
*आंसुओं में कोई शक्ति नहीं है।*
*कहें दीपकबापू मन के वीर वह*
*जिनमें कोई आसक्ति नहीं है।*
*---*
*सड़क पर चलकर नहीं देखते...
6 वर्ष पहले
1 टिप्पणी:
waah sundar saamyik rachna
एक टिप्पणी भेजें