27 जुलाई 2010

हमराह-हिन्दी शायरी (hamrah-hindi shayri

दोस्ती जैसा कोई रिश्ता नहीं,
मिल सकती है बस वफा यहीं।
तुम प्यार भरी बातें यूं ही करते रहो
हम सबूत ढूंढने नहीं जायेंगे कहीं।
कभी मौके पर खरे उतरो या मुंह फेर लो
कभी मतलब तुममें फंसाकर आजमायेंगे नहीं।
देखा है वक्त बदल देता है इंसानों को
तुम बदलोंगे तो कभी शिकायत करेंगे नहीं।
दोस्त के पराये होने पर क्या रोयेंगे
जब दगा भी किसी का सगा हुआ नहीं।
बेवफाईयां भी हमारी जिंदगी डुबो नहीं सकीं
वफा कर गये अनजाने लोग, जो मिले न थे कहीं।
कभी उठे आकाश में, कभी गिरे जमीन पर
चले अपने आसरे, मिले या न हमराह कहीं।

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कवि, लेखक और संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
http://anant-shabd.blogspot.com

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