6 सितंबर 2008

आखिर महादानव क्यों बना रहे हो भई-हास्य व्यंग्य

वैसे तो पश्चिम के लोग पूर्व के लोगों की खूब मजाक उड़ाते हैं कि वह शैतान और सर्वशक्तिमान के स्वरूपों की काल्पनिक व्याख्याओं में ही खोऐ रहते हैं पर स्वयं तो सचमुच में शैतान बनाते हैं जो कहीं न कहीं विध्वंस पैदा करता है,अलबत्ता ऐसा कोई सर्वशक्तिमान नहीं बना सके जो जीवन की धारा को सतत प्रवाहित करता हो।

अभी कहीं उन्होंनें कोई महामशीन बनाई है जिससे वह ब्रह्माण्ड की रचना का रहस्य जान सकें। पश्चिम के कुछ वैज्ञनिकों ने इसे बनाया है तो कुछ कह रहे हैं कि अगर यह प्रयोग विफल रहा तो पूरी धरती नष्ट हों जायेगी। इसको कहीं अदालत में चुनौती भी दी गयी है। अब सवाल यह है कि आखिर उन्हें इस ब्रह्माण्छ के रहस्य जानने की जरूरत क्या पड़ी। आखिर वह शैतान फिर क्यों बुलाया लिया जिसे पूर्व के लोग रोज भगाने के लिये सर्वशक्तिमान को याद करते हैं।

भारतीय दर्शन को जानने वाला हर आदमी इस ब्रह्माण्ड का रहस्य जानता है। यह सब मिथ्या है-यहां हर आदमी बता देगा। दृष्टिगोचर विश्व तो माया का ऐसा रूप है जो समय के साथ बनता बिगड़ता है। कुछ है ही नहीं फिर उसका रहस्य क्या जानना। अरे, अगर यह पश्चिम के लोग अगर अंग्रेजी की बजाय हिंदी पढ़ते तो जान जाते कि ब्रह्माण्ड में कुछ है ही नहीं तो रहस्य किस बात का जान रहे हैं।
यह जगत सत्य और माया दो में ही व्याप्त है। जो माया नश्वर है वह बढ़ती जाती है और फिर उसका अस्तित्व समाप्त हो जाता है। वह फिर प्रकट होती है पर उसमें सत्य की सांसें होती हैं। सत्य का कोई स्वरूप है ही नहीं जिसे देखा जा सके।

भारतीय पुरातन ग्रथों में इसका वर्णन हैं उसके आधार पर यह कहा जा सकता है कि इस दुनिया के विस्तार में इस तरह की कहानी रही होगी। जिसे हम अपने शब्दों में इस तरह व्यक्त कर सकते हैं। सत्य कई बरसों तक पड़ा रहा। न हिला न डुला न चला बस उसे आभास था कि वह है। उसके पांच तत्व निष्क्रिय पड़े हुए थे-आकाश,जल,प्रथ्वी,अग्नि और वायु। यह छोटे कणों के रूप में पड़े हुए थे। सत्य को पता नहीं यह भ्रम हो गया कि वह स्वयं ही असत्य है सो परीक्षण करने के लिये इन तत्वों में प्रवेश कर गया। उसके प्रवेश करते ही इन तत्वों में प्राण आ गये और वह बृहद आकार लेने लगे। सत्य को भी इने गुण प्राप्त हुए। उसे आंख,कान,नाक तथा देह का आभास होने लगा। वह बाहर निकला पर यह सभी तत्व बृहद रूप लेते गये। सत्य को हैरानी हुई उसने ध्यान लगाया तो माया प्रकट हो गयी। उसने बताया कि उसके अंश इन तत्वों में रह गये हैं और वह अब इस सृष्टि का निर्माण करेंगे जहां वह विचरण करेगी। सत्य सोच में पड़ गया पर उसने यह सोचकर तसल्ली कर ली कि माया का कोई स्वरूप तो है नहीं उसके जो अंश इन तत्वों में रह गये हैं वह कभी न कभी उसके पास वापस आयेंगे।
माया मुस्करा रही थी तो सत्य ने पूछा-‘आखिर तुम में भी प्राण आ गये।
उसने कहा-‘मुझे बरसों से इसी बात की प्रतीक्षा थी कि कब तुम इन तत्वों में प्रवेश करो और मैं आकार लेकर इस संसार में विचरण करूं।’
सत्य ने कहा-‘तो क्या? यह तो मेरे अंश हैं। मैं चाहे इन्हें खींच लूंगा।’
माया ने कहा-‘पर जब तक मेरी शक्ति से बंधे हैं वह तुम्हारे पास नहीं आयेंगे पर जब उससे बाहर होंगे तो तुम्हारे पास आयेंगे।’
सत्य सोच में पड़ गया। उसने देखा कि धीरे धीरे अन्य जीव भी प्रकट होते जा रहे हैं। इनमें कई छटपटा रहे थे कि वह सत्य के अंश हैं और वहां से बिछड़ गये हैं तो कुछ इस बात से खुश थे कि वह अपनी इंद्रियों का पूरा आनंद उठा रहे हैं।’
कई जीव सत्य का स्मरण करते थे तो सत्य की उनकी दृष्टि जाती थी और जो नहीं करते उन पर भी उसका ध्यान था। इस तरह यह सृष्टि चल पड़ी। माया तो प्रकट थी पर उसमें शक्ति अपनी नहीं थी इसलिये वह रूप बदलती रही पर सत्य का स्वरूप नहीं है इसलिये वह स्थिर है।’ सत्य ने भी कोई हस्तक्षेप नहीं किया।

देवता और दानव दोनों ही इस संसार में विचरण करते हैं पर माया सभी को भाती है। जिन पर माया की अधिक कृपा हो जाती है वह बेकाबू हो जाते हैं और दानवत्व को प्राप्त होते हैं। पश्चिम के लोगों के पास अनाप शनाप धन है और इसलिये वह इस ब्रह््माण्ड का रहस्य जानने के लिये उतावले हैं और एक ऐसा दानव खड़ा कर रहे हैं जो अगर फैल गया तो इस धरती पर कोई देवता उसे बचाने वाला नहीं है।
रहस्य जानना है। अरे भाई, हमारे पौराणिक ग्रंथ ले जाओ सब सामने आयेगा। पश्चिम के वैज्ञानिक जीवन के लिये जो आधार आज बता रहे हैं उसे हमारे ग्रंथ पहले ही बता चुके हैं कि आकाश, प्रथ्वी,र्अिग्न,जल और वायु के संयोग से ही जीवन बन सकता है पर उसे पढ़ा ही नहीं अरबों डालर खर्च कर जो निष्कर्ष निकाला वहा हमारे विशेषज्ञ पहले ही निकाल चुके हैं। पेड़ पोधों में जीवन होता है यह कोई आज की खोज नहीं है बरसों पहले की है, पर पश्चिम के लोग ऐसी खोजों को बताकर अपना नाम कर लेते है। परमाणु बम बनाया तो उसका क्या नतीजा रहा। आजकल कई देश बना रहे हैं और पश्चिम के लोग उनको रेाकने का प्रयास कर रहे हैं। नये नये हथियार बनाते हैं और इधर शांति का प्रयास भी करते दिखते हैं।

बहरहला दानव को खड़ा कर वह जिस सत्य को ढूंढ रहे हैं वह तो अस्तित्व हीन है। वहां क्या है? हमसे पूछो। जहां तक दिख रहा है माया है और जहां दिखना बंद हो जाये समझ लो सत्य है। इसके लिये पूरी दुनियां का व्यर्थ ही खतरे में क्यों डालते हो।
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