बाजार अब केवल सड़क पर ही नहीं सजते
उनके बैंड तो अब घर घर बजते
विज्ञापन के युग का हुआ है यही असर
जेब में पैसा नहीं हो फिर भी
खरीददार तो कर्ज लेकर चीज लाने के लिये सजते
फिर तो आगे किश्तों की खाई है
उससे भला लोग कहां बचते
...........................
किश्तों में खरीदने के लिये
कर्ज भी मिलता है
सच है मर्ज भी किश्तों में
शरीर को मिलता है
उसके इलाज के लिय भी कर्ज मिलता है
जब तब इंसान के जिस्म में खून है
उसे पीने के लिये
मच्छर तो हर जगह है मौजूद
रोज की कहानियों कोई न कोई
हादसा दर्ज होता
पर कर्ज के मर्ज का इलाज कहीं नहीं मिलता
.......................................
उनके बैंड तो अब घर घर बजते
विज्ञापन के युग का हुआ है यही असर
जेब में पैसा नहीं हो फिर भी
खरीददार तो कर्ज लेकर चीज लाने के लिये सजते
फिर तो आगे किश्तों की खाई है
उससे भला लोग कहां बचते
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किश्तों में खरीदने के लिये
कर्ज भी मिलता है
सच है मर्ज भी किश्तों में
शरीर को मिलता है
उसके इलाज के लिय भी कर्ज मिलता है
जब तब इंसान के जिस्म में खून है
उसे पीने के लिये
मच्छर तो हर जगह है मौजूद
रोज की कहानियों कोई न कोई
हादसा दर्ज होता
पर कर्ज के मर्ज का इलाज कहीं नहीं मिलता
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