18 नवंबर 2016

अपने घाव कभी दिखाये नहीं-हिन्दी कविता (apne Ghave kaBhi dikhay nahin-Hindi Kavita)

किसी ने सही कहा है-हिन्दी कविता
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अपनी जिंदगी में
जीने का अंदाज
हमारा अलग रहा है।

ज़माना चला जिसके पीछे
हमने बनाई दूरी उससे
तानों को बहुत सहा है।

कहें दीपकबापू पर्यटन में
दिल बहलाकर देखा
अपने घाव कभी दिखाये नहीं
परायों के दर्द को भी
सहलाकर देखा
पाया यही कि
मन चंगा कठौती में गंगा
कवि रैदास ने सही कहा है।
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गरीबों का मसीहा-हिन्दी व्यंग्य कविता
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अपने कपड़े उतरने का
जिनको सता रहा है
वही निर्वस्त्रों का
डर बता रहा है।

कहें दीपकबापू भ्रम में
मत रहना यारों
अमीरों का दलाल है वह
गरीबों का मसीहा होने का
दावा जो जता रहा है।
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