26 अक्तूबर 2014

बाप की ताकत पर सवाल-हिन्दी व्यंग्य कविता(baap ki taqat par sawal-hindi satire poem)



बात का बतंगड जब होता
लोग बाप की ताकत पर
ताना देने लग जाते हैं।

स्वयं के परिवार से किसी ने
  चराई न हो बकरी
दूसरे के बाप पर शेर के
 शिकार का सवाल उठाते हैं।

कहें दीपक बापू जुबान से
जब नहीं बोलते  संभलकर
तब बुद्धि खोटी हो जाती है,
शब्द की मार छोटी हो जाती है,
इतिहास गवाह है
बाप ने जिंदगी की जंग
लड़ते हुए गुजारी हो
बेटे ज़माने की छाती पर
मूंग दलते हुए आकाश तक
पहुंच जाते हैं।
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दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 

21 अक्तूबर 2014

आधुनिक समाज सेवक-हिन्दी कविता(adhunik samaj sewak-hindi poem)



अपने मुख से
बड़े बड़े शब्द बोलने वाले
हर कदम पर मिलते हैं वीर।

अपने आसन से उठते तो
पांव कांपते हैं,
इशारे के लिये उठाते हाथ
उनके फेफड़े कांपते हैं,

बोलते तो चीखते लगते
भाषा में नहीं होते
उनके तरकश में व्याकरण के तीर।

कहें दीपक बापू आधुनिक रथो पर
सवार है हजारों समाज सेवक
त्याग के दावे करते,
गरीब को  न मिल जाये
पूरी रोटी
इस ख्याल से भी डरते,
हंसते हैं मन ही मन
दूसरे को दर्द पर
बाहर दिखावा करते जैसे हों गंभीर।
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दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 

9 अक्तूबर 2014

वफा से दिवालिया समाज-हिन्दी कविता(vafa se diwaliya samaj-hindi kavita)



मस्तिष्क में विचार से अलग
लोग अपनी जुबान से
दूसरी बात बोलते हैं।

अपनी काली नीयत पर
सफेद पर्दा डालकर
स्वयं को ही देते धोखा
दूसरे के अंदर का जहर
यूं ही तोलते हैं।

कहें दीपक बापू वफा से
दिवालिया हो गया समाज,
स्वार्थियों के सिर पर
डाल रहा ताज,
अपनी कमजोरियों से
टूटे हैं लोग,
छिपा रहे
तन और मन के रोग,
तसल्ली होती उनको
जब दूसरे के गम पर
उसके राज खोलते हैं।
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दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 

3 अक्तूबर 2014

शोर में शब्द खो जाते हैं-हिन्दी कविता(shor mein shabd kho jaate hain-hid\ndi poem)




पेड़ों को धूप आंधी
और वर्षा में डटे रहना
कौन सिखाता है।

रास्ते में भटकते हुए
पशुओं को घर का मार्ग
कौन दिखाता है।

कहें दीपक बापू सबसे ज्यादा
बुद्धि इंसानों में मानी जाती है,
फिर भी पेशेवर बुद्धिमानों की
उपदेशों की किताबें
बंदूक की तरह
अपने शिष्यों पर तानी जाती हैं,
भीड़ लगती है धर्म के मेलों में,
खो जाती चाट के ठेलों में,
सच यह है कि शोर में शब्द
अर्थ खो देते
मौन ही वह कला है
जो भाव हृदय में टिकाता है।
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दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 

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