26 जनवरी 2013

विचार नहीं विवाद से प्रसिद्ध होता जयपुर का साहित्य सम्मेलन-हिन्दी लेख (vichar nahin vivad se prasiddh hota jaypur ka sahitya sammelan-hindi lekh or article)

        जयपुर में कोई साहित्य सम्मेलन हो रहा है।  यह सम्मेलन पिछली बार भी हुआ था।  आमतौर से हमारे देश में साहित्य सम्मेलन हुआ ही करते हैं।  ऐसे साहित्य सम्मेलन हिन्दी साहित्यकारों की ही देन हैं।  ऐसा लगता है कि साहित्य और कवि सम्मेलन की  पंरपरा हिन्दी भाषा से पनपी है। एक तरह से यह विश्व को हिन्दी भाषी साहित्यकारों और कवियों की ऐसी देन है जिस पर अन्य भाषा के लोग भी चलना चाहेंगे।  हमने हिन्दी के अलावा किसी अन्य भाषा के कवि सम्मेलन या साहित्यकार सम्मेलन नहीं सुने हैं इसलिये ऐसा लिख रहे हैं।  हालांकि हिन्दी भाषा में भी वही साहित्यकार माने जाते हैं,  जिनकी किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं या फिर समाचार पत्र पत्रिका  वगैरह में काम करते हैं।  जो लोग कभी कभार प्रकाशित होते हैं फिल्म में काम करने वाला ऐसे  अतिरिक्त कलाकार की तरह माना जाता है जिसे कहीं बुलाया नहीं जाता। 
       इधर इंटरनेट पर ब्लॉग आ गया है तो हमें अपने बीस ब्लॉग पत्रिका की तरह लगते हैं।  प्रत्येक ब्लॉग में इतनी रचनायें है कि वह एक किताब ही बन गयी है।  यह अलग बात है कि किसी प्रकाशक के अधीन नहीं है। हम जैसे स्वांत लेखक के लिये जहां यह अच्छी बात है वहीं प्रशंसक पाठकों को यह जानकर निराशा भी होती है कि हमारी एक साहित्यकार के रूप में कोई छवि नहीं है।  हम यहां अपने लिये कोई मान्यता नहीं मांग रहे हैं हम तो हिन्दी के कथित कर्णधारों को स्पष्ट बता रहे हैं कि अब इंटरनेट की वजह से अपनी सोच में बदलाव लायें।   हमें न मानो पर ब्लॉग लेखकों को साहित्यकार की तरह समझो।  उन्हें साहित्यकार सम्मेलनों में बुलाओ वरना तुम्हारे साहित्यकार सम्मेलन उपस्थित दर्शक और श्रोताओं के सामने पुरातनपंथी कार्यक्रम लगते हैं।  इंटरनेट पर स्वयं लिखने वाले लोगों को जब आम लोगों के सामने खड़ा करोगे तभी तुम्हारे कार्यक्रमों की छवि बनेगी।
     जयपुर के जिस सम्मेलन की बात हम कर रहे हैं उसमें किसी ब्लॉग साहित्यकार का नाम न देखकर ऐसा लगता है जैसे कि यह कोई भूले बिसरे साहित्यकारों की आपसी उठक बैठक है।  दूसरी बात यह भी पता नहीं चलती कि इस सम्मेलन की प्रमुख भाषा क्या है?  शायद अंग्रेजी  है तभी इंटरनेट के हिन्दी ब्लॉग इस पर कुछ नहीं लिख रहे।  प्रचार माध्यम भी इसकी खबर तभी देते हैं जब वहां से कोई विवादास्पद विषय उठकर सामने आता है।  जहां तक हम समझ पाये हैं वह यह कि यह कुंठित   उलटपंथी साहित्यकारों का सम्मेलन है।  पिछली बार इसमें सलमान रुशदी को बुलाकर विवाद खड़ा किया गया।  इस बार एक  बंगाली साहित्यकारा ने नक्सलादियों के सपने देखने के हक पर बयान देकर सनसनी खेज खबर बनायी तो अब एक महानुभाव ने भ्रष्टाचार में कुछ खास वर्गों के लोगों को जिम्मेदार बताकर बवाल खड़ा कर दिया।  एक महारथी ने तो भारतीय धर्मों को ही कटघरे में खड़ा किया।   ऐसे अजीबोगरीब बयान देखकर लगता नहीं कि ऐसे साहित्यकार कोई विचारवान भी हैं।
           इससे हमें साफ लग रहा है कि पश्चिम बंगाल से अब परायापन अनुभव कर रहे कुछ बुद्धिमान लोगों ने अपना ठिकाना अब जयपुर बना लिया है।   दावा तो यह हो रहा है कि महान साहित्यकारों को वहां बुलाया गया है पर उनके विचार कहीं भी उसका प्रमाण नहीं देते।  आजादी के बाद धनपतियों, पदवानों और प्रचार प्रबंधकों की कृपा से अनेक लिपिकीय नुमा लोग भी प्रतिष्ठित साहित्यकार कहलाने लगे हैं। लिपिकीयनुमा हमने इसलिये कहा क्योंकि किसी कहानी को  जस का तस उठाकर कागज पर रख देना या फुरसत हो तो  उपन्यास ही लिख डालना हमें सहज लगता है।  निष्कर्ष प्रस्तुत करना या कोई संदेश डालने की कला वाला ही हमें लेखक लगता है।
       दूसरी बात हमें यह लगती है कि अगर हम कोई रचना करते हैं तो इस बात का ध्यान रखें कि जो कहें वह अपना मौलिक हो। दूसरे के संदेशों का संवाहक बनने वाला लेखक एक तरह से लिपिक ही होता है। हम अपनी सोच को स्पष्ट रूप से रखें न कि अपने शब्द दूसरे की सोच में खोट निकालने पर खर्च करें।   इतना ही नहीं जिस विषय पर लिखें उसके बारे में हमारी स्वयं की राय स्पष्ट होना चाहिये।  अपने विषय के मूलतत्वों को समझे बिना अपनी राय नहीं रखी जा सकती।  जिन उलटपंथियों ने इस साहित्यकार सम्मेलन में भाग लिया है वह स्पष्ट रूप से भारतीय अध्यात्म के विरोधी हैं।  खासतौर से मनुस्मृति के बारे में उनकी राय अत्यंत नकारात्मक है।  उनका मानना है कि मनुस्मृति निम्न वर्ग और नारियों की विरोधी है।  हम उनकी बात थोड़ी के देर के लिये मान भी लेते हैं पर इससे क्या समूची मनुस्मृति को विस्मृत किया जाये?  उसमें भ्रष्टाचार, धर्म के नाम पर पाखंड और नारियों के प्रति अनाचार की जो निंदा की गयी उस पर यह लोग कभी ध्यान क्यों नहीं देते?
        जयपुर में साहित्य सम्मेलन हो रहा है पर उत्तर भारत में उसको कोई महत्व नहीं दे रहा। यह इस आयोजन का नकारात्मक पक्ष है।  एक आम लेखक के रूप में हम जैसे लेखक अगर इस साहित्य सम्मेलन में अरुचि दिखा रहे हैं तो कहीं न कहीं इसके पीछे आयोजन की पृष्ठभूमि और क्रियाकलाप ही हैं।  आखिरी बात यह है कि भारतीय समाज को समझने के लिये लंबी चौड़ी बहस की आवश्यकता नहीं है।  केवल सांसरिक विषयों की बात करेंगे तो यहां कई कहानियां मिलेंगी। इन कहानियों के पात्रों के चरित्र पर बहस करने से कोई निष्कर्ष नहीं निकलता।  भारतीय समाज को वही समझ सकता है जो यहां के अध्यात्म को जानता है।  देश में गरीबी है पर सारे गरीब भीख नहीं मांगते।  स्त्रियों से अन्याय होता है पर सभी सरेआम रोने नहीं आती।  अमीर अनाचार करते हैं पर सभी क्रूरतम नहीं होते।  भारत में जब तक साहित्य अध्यात्म के पक्ष से नहीं जुड़ेगा तब जनप्रिय नहीं बन पायेगा। ऐसे में जयपुर जैसे साहित्यकार सम्मेलन में भाग ले रहे साहित्यकार  विदेशी विचाराधाराओं से  प्रतिबद्धता के कारण कोई अनोखी  बात नहीं कह पाते।  यही कारण है कि   अपनी किसी सकारात्मक पहल करने की नाकामी के चलते  विवादों की वजह से सम्मेलन को प्रचार दिलाने का एक सोचा समझा प्रयास करते हैं।  बाद में माफी मांगें य मुकरें यह अलग बात है।  यह सोचा समझा रवैया अपनाना साहित्यकार की छवि के प्रतिकूल है।
लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poet-Deepak raj kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
लेखक और संपादक-दीपक "भारतदीप",ग्वालियर
poet, writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
‘दीपक भारतदीप की हिन्दी-पत्रिका’ पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द पत्रिका
2.दीपक भारतदीप का चिंतन
3.दीपक भारतदीप की शब्दयोग-पत्रिका

४.दीपकबापू कहिन
५,हिन्दी पत्रिका
६,ईपत्रिका
७.जागरण पत्रिका

18 जनवरी 2013

फेसबुक टु ठेसबुक-हिन्दी व्यंग्य (facebook to thesbook-hindi vyangya or hindi satire)

        कम से कम आधुनिक तकनीकी से जुड़ने का सौभाग्य हमें मिला इसके लिये परमात्मा का धन्यवाद अवश्य अर्जित करना चाहिए। अंतर्जाल इंटरनेट अनेक बार गजब का अनुभव कराता है।  सभी अनुभवों की चर्चा करना तो संभव नहीं है पर फेसबुक के माध्यम से ऐसे लोगों को तलाशना अच्छा लगता है जिन्हें हमने बिसारा या उन्होंने ही याद करना छोड़ दिया है।  हम जैसे लेखकों के लिये फेसबुक केवल चंद मित्रों और प्रशंसकों से जुड़े होने का एक माध्यम भर है जबकि ब्लॉग पर लिखने के पर  ही असली आनंद मिलता है। यह ब्लॉग एक तरह से अपनी पत्रिका लगती है।  यहां लिखकर स्वयंभू लेखक, कवि और संपादक होने की अनुभूति होती है। यह आत्ममुग्धता की स्थिति है पर लिखने के लिये प्रेरणा मिलती है तो वह बुरी भी नहीं है।  शुरुआत में फेसबुक से जुड़ना ज्यादा महत्वपूर्ण नहीं लगा।  अलबत्ता ब्लॉग मित्रों को देखकर अपना खाता बना लिया।  जान पहचान की बालक बालिकाओं ने अपनी फेसबुकीय रुचि के बारे में बताया फिर भी अधिक दिलचस्पी नहीं जागी।  एक बार दूसरे शहर गये तो वहां एक बालक ने लेपटॉप पर अपने फेसबुक से हमारा खाता जोड़ दिया।  तय बात है कि उसके संपर्क के अनेक लोगों में हमारी दिलचस्पी भी थी।  इनमें लेखक कोई नहीं है पर फेसबुक पर सक्रिय होने के लिये उसकी कोई आवश्यकता भी नहीं होती। इधर से उधर फोटो उठाकर अपने यहां लगाने के लिये बस एक बटन दबाना है।  लोग अपनी मनपसंद की सामग्री इसी तरह लगाकर खेल रहे हैं।  अपने फोटो एल्बम लगाकर एक दूसरे को प्रोत्साहित करते हैं।
    ऐसे में भूले बिसरे लोगों को ढूंढने का प्रयास करना हम जैसे लेखकों के लिये दिलचस्प होता है।  यह दिलचस्पी तब आनंददायक होती है जब आप ऐसे लोगों का खाता ढूंढ लेते हैं जिनके साथ कभी आपने अपने खूबसूरत पल गुजारे पर अब हालातों ने आपसे अलग कर दिया।  आम आदमी की याद्दाश्त कमजोर होती है इसलिये समय, हालत और स्वार्थों की पूर्ति के स्त्रोत बदलते ही वह अपनी आंखों में प्रिय लगने वाले चेहरों को भी बदल देता है।  कर्ण को प्रिय लगने वाले स्वर भी बदल जाते हैं।  लेखक होता तो आम आदमी है पर वह अपनी याद्दाश्त नहीं खोता।  दौर बदलने के साथ वह अपनी यादों को जिंदा रखता है।  यह उसकी स्वाभाविक प्रवृत्ति होती है।  वरना वह नित नयी रचनायें नहंी कर सकता।
              फेसबुक में हमने ऐसे अनेक खाते ढूंढे हैं जिनके स्वामी हमसे दूर हो गये। जब मिलते हैं तो तपाक से मिलते हैं।  नहीं मिलते तो पता नहीं उनको याद भी आती कि नहीं।  एक प्रियजन का खाता ढूंढ रहे थे पर उसने बनाया ही नहीं था।  तीन चार साल में तीन मुलाकतें हुई। आखिरी मुलाकात छह महीने पहले हुई थी।  वह पढ़े लिखे हैं  फेसबुक खाता कभी खोलेंगे यह सोचना मूर्खता थी। एक संभावना थी कि उनके परिवार के नयी पीढ़ी के सदस्य उन्हें इस काम के लिये प्रेरित कर सकते हैं।  हमने महीना भर पहले  एक दो बार ऐसे ही प्रयास किया कि शायद उनका खाता बन गया हो। कल अचानक फिर ख्याल आया तो उनका खाता फोटो सहित दिख गया।  हम कभी उनकी फोटो तो कभी उनकी गोदी में बैठी छह महीने की पोती की तरफ देखते थे।  उनके पूरे परिवार के सदस्यों के फेसबुक खाते देख लिये।  उनके फेसबुक से होते हुए हमने कई ऐसे करीबी लोगों के खाते भी देखे जिनको जानते हैं पर कोई औपचारिक संपर्क नहीं है।
       पहले विचार किया कि उनका फेसबुक मित्र बनने का संदेश भेजा जाये पर फिर लगा कि उनकी गतिविधियों पर हम नज़र रखे हुए हैं इससे वह खुलकर दूसरों से सपंर्क रखते समय प्रभावित हो सकते हैं।  सबसे बड़ी बात यह कि हम उनके फेसबुक पर उनके फोटो के साथ ही प्रोफाईल पर उनके मन का अध्ययन कर रहे थे।  पहली बार लगा कि फेसबुक एक तरह से वाईस स्टोरेज भी है।   हमने पहले भी कुछ ऐसे करीबी लोगों की फेसबुक देखी थी पर उस समय ऐसी बातें दिमाग में नहीं आयी अब  आने लगी थी।  सभी का फेसबुक कुछ बोल रहा था।  चेहरे की मुस्काने रहस्य छिपाती लग रही थीं।  वैसे भी हम नहीं चाहते कि हम किसी के व्यक्तिगत जीवन में हस्तक्षेप करें पर फेसबुक की मूक भाषा अगर कुछ कहती है तो उसे अनदेखा करना हमारे लिये संभव भी नहीं है।  फोटो एल्बम क्या कह रहे हैं?  जो नाम बार बार जुबान पर है वह फेसबुक पर क्यों नहीं है?  जिसका नाम दिल में होने का दावा है वह फेस कहीं करीब क्यों नहीं दिखाई देता?
              एक बात तय रही कि एक लेखक होने के नाते हम ब्लॉग का महत्व कभी कर ही नहीं सकते पर ऐसा भी लगने लगा है कि फेसबुक पर कुछ कहानियां हमारा इंतजार कर रही हैं। यहा कहानियां अंततः ब्लॉगों की शोभा बढ़ायेंगी।  यही कारण है कि फेसबुक पर उन लोगों को दूर ही रखना होगा क्योकि अंततः ब्लॉगों से रचनायें वहीं आयेंगी और वह हमारे नायक नायिकाऐं इसका हिस्सा होंगी।  फेस टु फेस यानि सामना होने पर फेसबुक की बात ही क्या इंटरनेट से अनजान होने का दावा भी प्रस्तुत करना होगा।  आखिरी बात फेसबुक पर जो संपर्क रखते हैं उनका प्रिय होना प्रमाणित है पर जो रोज नहीं मिलते पर उनमें से किसी के सामने खाताधारक अगर यह दावा करता है कि वह उसका प्रिय है तो प्रमाण स्वरूप उसका फेसबुक का पता जरूर मांगना चाहिये  यह देखने के लिये उसके एल्बम में कहीं स्वयं का फोटो है कि नहीं। यह अलग बात है कि जब दावा करने पर अपना फोटो न दिखे तो यह फेसबुक ठेसबुक भी बन सकती है।
लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poet-Deepak raj kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
लेखक और संपादक-दीपक "भारतदीप",ग्वालियर
poet, writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
‘दीपक भारतदीप की हिन्दी-पत्रिका’ पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द पत्रिका
2.दीपक भारतदीप का चिंतन
3.दीपक भारतदीप की शब्दयोग-पत्रिका

४.दीपकबापू कहिन
५,हिन्दी पत्रिका
६,ईपत्रिका
७.जागरण पत्रिका

5 जनवरी 2013

मददगार लगाते मदद का नारा-हिन्दी कविता(mdadgaar lagate madad ke nare-hindi kavita or hindi poem)


लड़खड़ाये थे हमारे कदम
इसलिये रास्ते में गिरे पड़े थे
बेहोशी की हालत में
कौन सुध लेता
होश में चिल्लाये
तब भी आते जाते लोगों ने
कर दिया अनसुना
मानो उनकी आंखों और कानों पर
बड़े ताले जड़े थे।
कहें दीपक बापू
मर गये हैं ज़माने के जज़्बात,
अपनी जिंदगी बचाने के लिये
जहां लोग रख देते दूसरों के सीने पर लात,
सड़क पर दरिंदों के हमले पर क्या रोऐं
वहां फरिश्तों के वेश में दिखे लोग
बेजान बुतों की तरह खड़े थे।
मददगार बनना था जिनको
हमारे घावों पर हमदर्दी जताने के साथ
मदद का नारा लगाते हुए
इसी ज़माने के लोग अड़े थे।

----------------------------------------- 
लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poet-Deepak raj kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
लेखक और संपादक-दीपक "भारतदीप",ग्वालियर
poet, writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
‘दीपक भारतदीप की हिन्दी-पत्रिका’ पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द पत्रिका
2.दीपक भारतदीप का चिंतन
3.दीपक भारतदीप की शब्दयोग-पत्रिका

४.दीपकबापू कहिन
५,हिन्दी पत्रिका
६,ईपत्रिका
७.जागरण पत्रिका

समस्त ब्लॉग/पत्रिका का संकलन यहाँ पढ़ें-

पाठकों ने सतत अपनी टिप्पणियों में यह बात लिखी है कि आपके अनेक पत्रिका/ब्लॉग हैं, इसलिए आपका नया पाठ ढूँढने में कठिनाई होती है. उनकी परेशानी को दृष्टिगत रखते हुए इस लेखक द्वारा अपने समस्त ब्लॉग/पत्रिकाओं का एक निजी संग्रहक बनाया गया है हिंद केसरी पत्रिका. अत: नियमित पाठक चाहें तो इस ब्लॉग संग्रहक का पता नोट कर लें. यहाँ नए पाठ वाला ब्लॉग सबसे ऊपर दिखाई देगा. इसके अलावा समस्त ब्लॉग/पत्रिका यहाँ एक साथ दिखाई देंगी.
दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका


हिंदी मित्र पत्रिका

यह ब्लाग/पत्रिका हिंदी मित्र पत्रिका अनेक ब्लाग का संकलक/संग्रहक है। जिन पाठकों को एक साथ अनेक विषयों पर पढ़ने की इच्छा है, वह यहां क्लिक करें। इसके अलावा जिन मित्रों को अपने ब्लाग यहां दिखाने हैं वह अपने ब्लाग यहां जोड़ सकते हैं। लेखक संपादक दीपक भारतदीप, ग्वालियर

संबद्ध विशिष्ट पत्रिकायें

लोकप्रिय पत्रिकाएँ

वर्डप्रेस की संबद्ध अन्य पत्रिकायें