18 जून 2011

भक्ति और दौलत-हास्य कविता (bhakti aur daulat-hindi hasya kavita)

दादा ने कहा पोते से
"बड़ा होकर तू
अपने बाप की तरह नौकरी नहीं करना,
दूसरे की चाकरी में जाएगी ज़िंदगी वरना,
बन जाना कोई कारखानेदार,
कहलाएगा इज्जतदार,
इस तरह तेरे साथ
तेरे बाप के साथ मेरा भी
नाम रौशन   हो जाएगा।"

सुनकर पोता हंसा
"क्या बात करते है आप
उद्यमियों की क्या औकात
लोग कर रहें संतों और साधुओं का जाप,
अपने शायद सुना नहीं
उद्योपातियों से अधिक दौलत
अब साधू संतों के पास पायी जाती है,
दौलतमंदों को चोर मानती जनता
भक्ति के व्यापार में
सोने के शिखर पर चढ़े
कथित संतों की  छवि
समाज में ऊंची पाई जाती है,
मैं सोच रहा हूँ
आपसे कुछ ज्ञान प्राप्त करूँ,
फिर संत का वेश धरूँ,
पैसा भी होगा
प्रतिष्ठा भी होगी,
इससे आपका वंश
सदियों तक याद किया जाएगा।

लेखक और संपादक-दीपक "भारतदीप",ग्वालियर 
poet, writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior

writer aur editor-Deepak 'Bharatdeep' Gwalior



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