31 अगस्त 2008

जिसका ख्वाब भी नहीं आया-हिन्दी शायरी hindi shayri

तिनका तिनका कर बनाया घर
पर वह भी कभी दिल में न बस सका
ख्वाहिशें लिये भटकता शहर-दर-शहर
दोपहर की जलती धूप हो शाम की छाया

कभी चैन नसीब न हो सका
चाहत है पाना कागज के टुकड़ों की माया
देखना है सोने से बनी काया
एक लोहे और लकड़ी की चीज आती
तो दूसरे के लिये मन ललचाया
कहीं देखकर आंखें ललचाती सुंदर कामिनी की काया
तन्हाई में जब होता है मन
तब भी ढूंढता है कुछ नया
जिसका ख्वाब भी नहीं आया
खुले आकाश में कोई देखे
रात के झिलमिलाते सितारे
चंद्रमा की चमक देखे
जो होती सूरज के सहारे
आंखों से ओझल होते हुए भी
कर जाता हमारी रौशनी का इंतजाम
नहीं मांगने आता नाम
सदियों से वह यही करता आया
इसलिये देखकर हमेशा मुस्कराया

अनंत है कुछ पाने का मोह
जो अंधा बनाकर दौड़ाये जा रहा है
कहीं अंत नहीं आता इंसान की ख्वाहिशों का
जब तक है उसके पास काया
डूबते हुए भी नहीं छोड़ता माया
अपनों के इर्दगिर्द बनाये घेरे को दुनिया कहता
अस्ताचल में जाते हुए भी
जमाने से हमदर्दी नहीं होती
जब चमक रहा होता है तब भी
तंग दायरों मे रहते हुए मुरझा जाती उसकी काया
.......................................
दीपक भारतदीप

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17 अगस्त 2008

रहीम के दोहे:कटहल कभी राई के सामान छोटा नहीं दिखाई देता

बड़े पेट के भरन को, है रहीम देख बाढि
यातें हाथी हहरि कै, दया दांत द्वे काढि

कविवर रहीम कहते हैं कि जो आदमी बड़ा है वह अपना दुख अधिक दिन तक नहीं छिपा सकता क्योंकि उसकी संपन्नता लोगों ने देखी होती है जब उसके रहन सहन में गिरावट आ जाती है तब लोगों को उसके दुख का पता लग जाता है। हाथी के दो दांत इसलिये बाहर निकल आये क्योंकि वह अपनी भूख सहन नहीं कर पाया।

बड़े बड़ाई नहिं तजैं, लघु रहीम इतराइ
राइ करौंदा होत है, कटहर होत न राइ

कविवर रहीम कहते हैं कि बड़े आदमी कभी अपने मुख से स्वयं अपनी बड़ाई नहीं करते जबकि छोटे लोग अहंकार दिखाते है। करौंदा पहले राई की तरह छोटा दिखाई देता है परंतु कटहल कभी भी राई के समान छोटा नजर नहीं आता।

वर्तमान संदर्भ में व्याख्या-कहा जाता है कि धनाढ्य व्यक्ति इतना अहंकार नहीं दिखाता जितना नव धनाढ्य दिखाते हैं। होता यह है कि जो पहले से ही धनाढ्य हैं उनको स्वाभाविक रूप से समाज में सम्मान प्राप्त होता है जबकि नव धनाढ्य उससे वंचित होते हैं इसलिये वह अपना बखान कर अपनी प्रभुता का बखान करते हैं और अपनी संपत्ति को उपयोग इस तरह करते हैं जैसे कि किसी अन्य के पास न हो।

वैसे बड़ा आदमी तो उसी को ही माना जाता है कि जिसका आचरण समाज के हित श्रेयस्कर हो। इसके अलावा वह दूसरों की सहायता करता हो। लोग हृदय से उसी का सम्मान करते हैं जो उनके काम आता है पर धन, पद और बाहुबल से संपन्न लोगों को दिखावटी सम्मान भी मिल जाता है और वह उसे पाकर अहंकार में आ जाते हैं। आज तो सभी जगह यह हालत है कि धन और समाज के शिखर पर जो लोग बैठे हैं वह बौने चरित्र के हैं। वह इस योग्य नहीं है कि उस मायावी शिखर पर बैठें पर जब उस पर विराजमान होते हैं तो अपनी शक्ति का अहंकार उन्हें हो ही जाता है। जिन लोगों का चरित्र और व्यवसाय ईमानदारी का है वह कहीं भी पहुंच जायें उनको अहंकार नहीं आता क्योंकि उनको अपने गुणों के कारण वैसे भी सब जगह सम्मान मिलता है।
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13 अगस्त 2008

मोबाइल और इंटरनेट पर ही चल रहा है इश्का का काम-हास्य शायरी

इश्क में भी अब हो गया है इंकलाब
हसीनाएं ढूंढती है अपने लिए कोई
बड़ी नौकरी वाला साहब
छोटे काम वाले देखते रहते हैं
बस माशुका पाने का ख्वाब

वह दिन गये जब
बगीचों में आशिक और हसीना
चले जाते थे
अपने घर की छत पर ही
इशारों ही इशारों में प्यार जताते थे
अब तो मोबाइल और इंटरनेट चाट
पर ही चलता है इश्क का काम
कौन कहता है
इश्क और मुश्क छिपाये नहीं छिपते
मुश्क वाले तो वैसे हुए लापता
इश्क हवा में उडता है अदृश्य जनाब
जाकर कौन देख सकता है
जब करने वाले ही नहीं देख पाते
चालीस का छोकरा अटठारह की छोकरी को
फंसा लेता है अपने जाल में
किसी दूसरे की फोटो दिखाकर
सुनाता है माशुका को दूसरे से गीत लिखाकर
मोहब्बत तो बस नाम है
नाम दिल का है
सवाल तो बाजार से खरीदे उपहार और
होटल में खाने के बिल का है
बेमेल रिश्ते पर पहले माता पिता
होते थे बदनाम
अब तो लडकियां खुद ही फंस रही सरेआम
लड़कों को तो कुछ नहीं बिगड़ता
कई लड़कियों की हो गयी है जिंदगी खराब
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6 अगस्त 2008

जीवन के उतर-चढाव के साथ चलता आदमी-हिन्दी शायरी

जीवन के उतार चढाव के साथ
चलता हुआ आदमी
कभी बेबस तो कभी दबंग हो जाता
सब कुछ जानने का भ्रम
उसमें जब जा जाता तब
अपने आपसे दूर हो जाता आदमी

दुख पहाड़ लगते
सुख लगता सिंहासन
खुली आँखों से देखता जीवन
मन की उथल-पुथल के साथ
उठता-बैठता
पर जीवन का सच समझ नहीं पाता
जब अपने से हटा लेता अपनी नजर तब
अपने आप से दूर हो जाता आदमी

मेलों में तलाशता अमन
सर्वशक्तिमान के द्वार पर
ढूँढता दिल के लिए अमन
दौलत के ढेर पर
सवारी करता शौहरत के शेर पर
अपने इर्द-गिर्द ढूँढता वफादार
अपने विश्वास का महल खडा करता
उन लोगों के सहारे
जिनका कोई नहीं होता आधार तब
अपने आपसे दूर हो जाता आदमी

जमीन से ऊपर अपने को देखता
अपनी असलियत से मुहँ फेरता
लाचार के लिए जिसके मन में दर्द नहीं
किसी को धोखा देने में कोई हर्ज नहीं
अपने काम के लिए किसी भी
राह पर चलने को तैयार होता है तब
अपने आपसे दूर हो जाता आदमी

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2 अगस्त 2008

शब्द कभी अपनी अस्मिता नहीं खोते-हिंदी कविता

हर शब्द अपना अर्थ लेकर ही
जुबान से बाहर आता
जो मनभावन हो तो
वक्ता बनता श्रोताओं का चहेता
नहीं तो खलनायक कहलाता
संस्कृत हो या हिंदी
या हो अंग्रेजी
भाव से शब्द पहचाना जाता है
ताव से अभद्र हो जाता

बोलते तो सभी है
तोल कर बोलें ऐसे लोगों की कमी है
डंडा लेकर सिर पर खड़ा हो
दाम लेकर खरीदने पर अड़ा हो
ऐसे सभी लोग साहब शब्द से पुकारे जाते ं
पर जो मजदूरी मांगें
चाकरी कर हो जायें जिनकी लाचार टांगें
‘अबे’ कर बुलाये जाते हैं
वातानुकूलित कमरों में बैठे तो हो जायें ‘सर‘
बहाता है जो पसीना उसका नहीं किसी पर असर
साहब के कटू शब्द करते हैं शासन
जो मजदूर प्यार से बोले
बैठने को भी नहीं देते लोग उसे आसन
शब्द का मोल समझे जों
बोलने वाले की औकात की औकात देखकर
उनके समझ में सच्चा अर्थ कभी नहीं आता

शब्द फिर भी अपनी अस्मिता नहीं खोते
चाहे जहां लिखें और बोले जायें
अपने अर्थ के साथ ही आते हैं
जुबान से बोलने के बाद वापस नहीं आते
पर सुनने और पढ़ने वाले
उस समय चाहे जैसा समझें
समय के अनुसार उनके अर्थ सबके सामने आते
ओ! बिना सोचे समझे बोलने और समझने वालों
शब्द ही हैं यहां अमर
बोलने और लिखने वाले
सुनने और पढ़ने वाले मिट जाते
पर शब्द अपने सच्चे अर्थों के साथ
हमेशा हवाओं में लहराता
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