6 अप्रैल 2013

ढहती इमारत लिखती इबारत-हिन्दी लेख (dhahate imarat likhte ibarat-hindi lekh or article)

   मुंबई की एक इमारत ढह गयी।  उसमें अनेक लोग हताहत हुए। आठ मंजिल वाली उस इमारत के ढहने से लोगों का इतनी बड़ी संख्या में हताहत होना हैरान करने वाला है। इस बारे में अनेक जानकारियां प्रचार माध्यमों में देखने को मिली।
     वह इमारत बिना मंजूरी के बनी थी।
     जमीन वन संपदा का भाग थी।
     निवासियों को मकान मुफ्त में इसलिये दिये गये ताकि कभी राज्य की वक्र दृष्टि पड़े तो रिहायशी कहकर उसके कदमों को रोका जा सके। मतलब बेघरों को वस्तु की तरह उपयोग में लाया गया।
    उसमें घटिया लोहा उपयोग में लाया गया।  बुनियाद की लंबाई कम रखी गयी थी।
     इस तरह की अनेक बातें सामने आ रही हैं।  आंकलन करने पर यह समझ में आ रहा है कि उसे जल्दबाजी में लोगों के भले की बजाय जमीन अपने हिस्से में लाने के प्रयास में बनाया गया। अनुमान तो यही किया जा सकता है कि   पहले रिहायशी बनाकर बाद में उसे नियमित कराकर फिर वहीं दूसरी बड़ी इमारत बनाकर अधिक धन बनाने की कोई योजना रही होगी। शायद यही कारण है कि सस्ता ढांचा बनाकर पहले उसमें मजबूर लोग रखे गये।  उन्हें जमीन हथियाने के लिये हथियार बनाया गया।  कुछ लोगों का कहना है कि भारत मनुष्य श्रम निर्यात करने वाला देश है। भारत में मनुष्य श्रम सस्ता तथा सहज सुलभ है। दूसरी बात यह कि यहां गरीबों की संख्या ज्यादा ही है। यही कारण है कि गरीबों के कल्याण का विषय  अत्यंत लोकप्रिय है।  लोग रोटी के लिये मजबूर हैं।  रोटी पाने की लाचारी मन मस्तिष्क कुंद कर देती है। यही कारण है कि गरीबों के कल्याण करने का नारा कहीं भी दिया जाये तो भीड़ खिंची चली आती है।  एक नारा देता है तो भीड़ उसके पास रोटी की तलाश में आ जाती है। वहां खड़े खड़े थक जाती है तो दूसरा नारा लगाता है। फिर वहां चली जाती है।  रोटी के बाद छत पाने की लाचारी भी कम नहीं है। वस्त्र पाना भी कम मजबूरी नहीं है।  ऐसे में अगर कोई मुफ्त रोटी, मकान और कपड़े का नारा दे तो फिर उसके पास लोगों का हुजूम आ ही जाता है।  मनुष्य ही मनुष्य को वस्तु और विषय बनाकर उपयोग करता है।  सीधी बात कहें तो जिसके पास माया है वह मनुष्य है जिसके पास नहीं है वह वस्तु या विषय ही हो सकता है।  वह मायापतियों के लिये क्रय विक्रय की वस्तु या चर्चा का विषय होता है।
          ढहने से पहले वह इमारत उस दृश्य पटल का भाग थी जो हमारे कथित विकास का समग्र रूप है।  जब भारत के विकास की तस्वीर दिखाई जाती है तो अनेक बड़ी इमारतों के दृश्य ही सामने आते हैं।  कोई नहीं देखता कि इन इमारतों में समूचित सामग्री लगायी गयी या नहीं। वह अनुमति प्राप्त है या अवैध!  अनेक बड़े शहर महाबड़े शहर हो गये।  छोटे शहर बड़े हो गये। सभी जगह इमारतों का जंगल बन गया है।  बहुमंजिला इमारतें विकास की ऊंचाई का प्रमाण है। हम यह नहीं कहते कि सारी बहुमंजिला इमारतों में बुरी सामग्री लगी है। न ही यह कहते कि सभी अवैध हैं। सवाल यह है कि यह सब देखने वाला कौन है?  हम उस इमारत को विकास का वास्तविक रूप माने तो देश के भविष्य की भयानक तस्वीर सामने आ रही है।  वह इमारत ढही तो लोग मर गये पर विकास के कथित रूप वाला ढांचा कहंी ढहा तो फिर क्या होगा?  मनुष्य अंततः मनुष्य है।  उसे पशु पक्षियों की तरह समझा जाये या श्रम की वस्तु माना जाये पर उसके आचरण का बहुत महत्व है। यह आचरण भी तब तक ठीक जब तक उसका आर्थिक स्तर ठीक है पर अगर वह बिगड़ा तो उसका मन विषाक्त हो सकता है। तब अपराधो ंका ग्राफ कितना ऊपर जायेग, यह अलग से चिंत्तन का विषय है।   मनुष्य की देह खत्म हो जाये तो ठीक है पर अगर उस देह में मौजूद मन अगर मर गया तो वह हिंसक हो उठता है।  मरे मन वाले मनुष्य और पागल हिंसक पशु में कोई अंतर नहीं रहता।
        तीन माह में बनी इमारत का गिरना केवल उस स्थान की चर्चा का विषय नहीं हो सकता।  प्रचार माध्यम बता रहे हैं कि ऐसे कई स्थान है। यह सारे स्थान हमारे विकास की तस्वीर का हिस्सा हैं।  ऐसे में यह विचार तो उठता ही है कि आखिर हमारे इस विकास का नैतिक आधार कितना मजबूत है? उसमें मनुष्य मन से पैदा कौनसी सामग्री लग रही है? उसके मजबूत होने की कितनी संभावना है?
   आखिरी बात यह कि भौतिक विकास अकेला कुछ नहीं होता। जब तक मनुष्य का अध्यात्मिक विकास न हो वह इस संसार में मजबूती से नहीं रह सकता।  विकास की इमारत की मजबूती का रूप उसके बाहरी आकर्षण से नहीं वरन् आंतरिक ढांचे से है जो किसी को दिखाई नहीं देता पर उसे संभाले रहता है।  उस इमारत के गिरने से हताहत लोगों के दिखाये गये दृश्य अत्यंत डरावने थे।  दिल में इतना दर्द पैदा होता है कि सहानुभूति के लिये शब्द ढंूढना कठिन हो जाता है। एक चार वर्षीय लड़की की आंखों में इतनी धूल थी कि वह उसे खोल नहीं पा रही थी।  तब भगवान से प्रार्थना करने का अलावा चारा भी क्या हो सकता था कि वह उसे जल्दी ठीक करे।  बहरहाल ढहती इमारत बिखरे की विकास की इबारत लिख गयी।     
लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poet-Deepak raj kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
लेखक और संपादक-दीपक "भारतदीप",ग्वालियर
poet, writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
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