28 जून 2015

क्रिकेट को व्यापार माने तो फिर गलत कुछ नहीं-हिन्दी चिंत्तन लेख(cricket is trade-hindi thought article)

                              क्रिकेट के व्यापार से जुड़े लोग इसमें खेलप्रेमियों में पहले राष्ट्रप्रेम का दोहन  करते थे। दो देशों की टीमों को तयशुदा परिणाम मैच में लड़ाकर-इसे खिलाकर कहना गलत होगा-कमाई करते थे। अब क्षेत्रीय प्रेम भी भुनाने लगे हैं। छह या आठ क्लब स्तरीय टीमें उतारकर बड़े शहर में खेलप्रेमियों में उन्माद पैदा करते हैं-हम जैसे लोग अपने प्रदेश या शहर का नाम न होने से इस प्रतियोगिता का प्रसारण देखने ही नहीं है।  यह अलग बात है कि जिन शहरों या प्रदेश के लोगों का इस प्रतियोगिता से सरोकार नहीं है वहां के लोग भी इसे देखते हैं।  कहा जाता है कि सट्टेबाज इन मैचों में पर्दे के पीछे अपना व्यवसायिक कौशन तथा प्रबंध भी दिखाते है जिससे यह क्लब स्तरीय प्रतियोगिता भी प्रचार माध्यमों के सहयोग से राष्ट्रीय स्तर पर लोकप्रिय हो गयी है।
                              आज तक इस प्रतियोगिता का आर्थिक ढांचा हमारी समझ में नहीं आया। इस क्लब स्तरीय प्रतियोगिता में खिलाड़ियों को अंतर्राष्ट्रीय मैचों से अधिक कमाई होती है। इतनी कि अनेक खिलाड़ी भारी मन से देशभक्ति के नाम पर अंतर्राष्ट्रीय मैचों में जाना चाहते हैं। क्लब स्तरीय के व्यय देखकर नहीं लगता कि केवल दर्शकों की टिकटों की राशि से यह खेल चल रहा हो।  प्रसारण से प्रचार माध्यम विज्ञापनों के कारण भुंगतान करते होंगे पर फिर भी इससे खेल व्यय की भरपाई हो जाये यह लगता नहीं है।  इससे भी आश्चर्यजनक बात यह कि प्रतियोगिता में टीम की स्वामी संस्थायें स्वयं को घाटे में बताती हैं। तब अनेक प्रकार के संदेह स्वाभाविक रूप से उठते हैं कि यह सब चल कैसे रहा हैऐसे में इसके पीछे सट्टेबाजी का शक होता है तो कोई बड़ी बात नहीं।  सट्टेबाजी एक पाप कर्म है पर यह अपराध माना जाये कि नहीं इस पर अलग बहस हो सकती है। कुछ लोगों मानना है कि सट्टेबाज, जुआरी और व्यसनी अपनी हानि स्वयं करते हैं इसलिये उन्हें दूसरी सजा देना ठीक नहीं है।  कुछ लोग  कहते हैं कि राज्य का काम है कि वह इसे रोके।
                              पहली विचारधारा के समर्थन में हमारा कहना तो यह है कि क्रिकेट खेलने वाले, खिलाने वाले और सिखाने वाले यह मान लें कि वह इसका व्यापार कर रहे हैं।  वह ज्यादा पैसे मिलेगा तो हारेंगे, जीतेंगे या फिर नहीं खेलेंगे-यह उनकी मर्जी है। व्यापार में वस्तु या सेवा बेचने वाले पर आप यह आरोप नहीं लगा सकते कि एक कम दाम में दे रहा है तो दूसरा ज्यादा दाम मांग रहा है। कोई अपनी वस्तु या सेवा  किसी को मुफ्त में भी दे तो हमें क्या? क्रिकेट के व्यापारी यह मानने को तैयार नहीं होते। वह कभी खेल के विकास तो कभी भावना की शुचिता की बात करते हैं।  इसी पाखंड के कारण उनके कर्म विवादास्पद हो जाते हैं। वैसे भारतीय जनमानस यह जान चुका है कि इन क्रिकेट मैचों के बहाने उसे मूर्ख बनाया जा रहा है। अलबत्ता जिनके पास फालतू का पैसा या समय है उनके पास बर्बाद करने की प्रवृत्ति होती है जो क्रिकेट को खेल को व्यापार की तरह चला रही है। हमारा तो यह भी मानना है कि इससे सरकार को राजस्व अर्जित करने का भी प्रयास करना चाहिये ठीक उसी तरह जैसे अन्य मनोरंजन व्यवसायों के किया जाता है।
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दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 

23 जून 2015

समझदारी का नुस्खा-हिन्दी कविता(samajhdari ka nuskha-hindi poem)

आप संभलो
जग संभला समझो
आप जागो
जग जागा समझो।

कहें दीपक बापू आप सोये
जग सो रहा है
आप रोये
जग रो रहा है
आप खो गये
जग खो जायेगा
यह कभी न समझो।
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दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 

16 जून 2015

नायक और भीड़-हिन्दी कविता(nayak aur bheed-hindi poem)

कमीज पर लगे
दाग मिटाने के लिये
 रोज नया रंग लगाते हैं।

चरित्र पर लगे
दाग छिपाने के लिये
चाल का ढंग बदल आते हैं।

कहें दीपक बापू अपनी आदत से
लाचार होते चालाक लोग
हालातों के हिसाब से
कभी दिखाते स्वयं को नायक
कभी आम इंसान के रूप में
भीड़ के संग बदल जाते हैं।
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दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 

12 जून 2015

हम सब एक हैं-हिन्दी कविता(ham sab ek hain-hindi kavita)

देश में महंगाई
बढ़ती जा रही है
बढ़ने दो।

सफेदपोश के अपराध
बढ़ते जा रहे हैं
बढ़ने दो।

कहें दीपक बापू कोई चारा नहीं
सिवाय इस मुगालते में रहने के
कि हम सब एक हैं
शतरंज की बिसात है समाज सेवा
मान लो भलाई का नारा
लगाने वालों की नीयत नेक है
प्यादों को फर्जी बनने के
रास्ते पर बढ़ने दो।
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दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 

7 जून 2015

जीभ की गुलामी-हिन्दी हास्य कविता(jeebh ki gulami-hindi comedy poem)

फंदेबाज बोलाबासी खाने पर
पर देश में बवाल मचा है,
यहां गरीब ज्यादा हैं या भूखे
यह सवाल बचा है,
हर प्रकार का अन्न यहां
फिर भी भुखमरी है,
सोने के भंडारों के बीच
गरीबी भरी है,
इन विरोधाभासों पर
कुछ हमें समझाओ।’’

सुनकर हंसे दीपक बापू
‘‘प्रकृत्ति की कृपा तो
अपने देश पर बहुत हुई,
अटकी रही फिर भी
लोभ पर सुई,
दो हजार साल तक
इस देश की गुलामी का
कुछ लोगों को भ्रम है,
सच यह है कि
जीभ के स्वाद
और दिमाग में भरी लालच के
जाल में फंसे होने का यह क्रम है,
अरे क्या मुगलों ने राज किया,
क्या अंग्रेजों ने काज किया,
मैगी ने जीभ पकड़कर,
पेप्सी और कोला ने
गला जकड़कर,
भारत के मानस पर
बंधन डाल दिया,
स्वदेशी चीज लगती पराई
विदेशी बन जाती पिया,
फंदेबाज हम तुम्हें क्या
समझा सकते,
इस पर हम अपनी राय
नहीं रखते,
तुमने खाया बासी खाना
गटका शीतल पेय
विरोधाभास में जीने की
कला तुम्हीं हमें बताओ।’’
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दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 

2 जून 2015

गर्मी में बादल छाना आशंका कि आशा-लघु हिन्दी व्यंग्य(garmi mein badal aashanka ki aasha-hindi short satire article)

    ‘आज दिल्ली में बादल छाये रहने की आशंका है’-यह वाक  एक हिन्दी समाचार टीवी चैनल पर उद्घोषक है। जिन लोगों ने अपनी शिक्षा हिन्दी माध्यम से प्राप्त की है उनके लिये अक्सर इन समाचार टीवी चैनलों पर  आशा, आशंका और संभावना जैसे शब्द दर्शक की गंभीर बुद्धि में चल रही गेयता के दौर में अवरोध पैदा करते हैं।
   इस समय दिल्ली में गर्मी पड़ रही है। अगर बादल छायेंगे तो तापमान कम होगा-यानि वहां के नागरिकों के लिये यह खबर इस आशा के कारण उत्साहवर्द्धक हो सकती है कि वह अपने दैनिक जीवन की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये बाहर निकल सकतेे हैं। यहां हिन्दी भाषा का शब्द संभावनाका उपयोग देश में रहने वाले अन्य क्षेत्र के लोगों के लिये निरपेक्ष भाव प्रदर्शन में हो सकता है।  गर्मी में बादलों का छाना की आशंका नहीं हो सकती। हां, अगर सर्दी हो तो यह आशंका बन जाती है पर तब भी संभावना शब्द ही उपयोग किया जाना चाहिये।
     हिन्दी की यह खूबी है कि वह जैसी लिखी जाती है वैसी बोली जाती है। हिन्दी पाठकों और दर्शकों में भी एक खूबी होती है कि वह बोलचाल में भले ही वह दूसरी भाषाओं के शब्द स्वीकार करते हैं पर जहां वह पठन पाठन, श्रवण अथवा अध्ययन के लिये तत्पर होते हैं तब शुद्ध हिन्दी उनके लिये अधिक गेय होती है। इस बात को हिन्दी के व्यवसायिक प्रकाशन नहीं जानते यही कारण है कि आज भी अंग्रेजी के संस्थानों से स्तरहीन माने जाते हैं। ऐसा लगता है कि हिन्दी समाचार चैनल वाले अपने यहां नियुक्त कर्मचारियों की भाषाई योग्यता से अधिक किन्ही अन्य योग्यताओं पर दृष्टिपात करते हैं।
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दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
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संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 

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