30 जुलाई 2008

सर्वशक्तिमान ने कोई कानून नहीं बनाया -हिन्दी शायरी


किसी भूखे को रोटी खिलाने का
उनकी किताबों में कोई इलाज नहीं
ढेर सारे कसूरों की सजाएं है
कसूरवार की मजबूरी समझने का
कोई कहीं रिवाज नहीं
जमाने को सिखाते हैं तमाम तरीके
जन्नत में जाने के
अपनी हकीकतो से दूर
ख्वाबों में जाने के
सर्वशक्तिमान ने कोई कानून नहीं बनाया
फिर भी उसके नाम पर सुनाते हैं
चंद किताबें पढ़कर फैसले
इंसान की भूख को पढ़ने का
कहीं कोई मिजाज नहीं
सभी को मोहब्बत का पैगाम देते हैं
पर जिस्म की भूख पर है खामोश
क्योंकि उस पर किसी का बस नहीं
अरे, ऊपर वाले का नाम लेकर
दुनियो को उसके दस्तूर पर चलाने वालों
उससे पूछ का बताओ
भूखा अगर रोटी की चोरी करे
तो उसकी सजा क्यों होना चाहिए
अगर वह इंसान के पेट में भूख नहीं बनाता तो
मान लेते उसका होगा वजूद
इस धरती पर भी कहीं

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शांति लाने का दावा

बारूद के ढेर चारों और लगाकर
हर समस्या के इलाज के लिए
नये-नयी चीजें बनाकर
आदमी में लालच का भूत जगाकर
वह करते हैं दुनिया में शांति लाने का दावा

बंद कमरों में मिलते अपने देश की
कुर्सियों पर सजे बुत
चर्चाओं के दौर चलते
प्रस्ताव पारित होते बहुत
पर जंग का कारवाँ भी
चल रहा है फिर भी हर जगह
होती कुछ और
बताते और कुछ वजह
जब सब चीज बिकाऊ है
तो कैसे मिल सकता है
कहीं से मुफ्त में शांति का वादा
बहाने तो बहुत मिल जाते हैं
पर कुछ लोग का व्यवसाय ही है
देना अशांति को बढावा

एक दुकान से खरीदेंगे शांति
दूसरा अपनी बेचने के लिए
जोर-जोर से चिल्लाएगा
फैलेगी फिर अशांति
जब फूल अब मुफ्त नहीं मिलते
तो बंदूक और गोली कैसे
उनके हाथ आते हैं
जहाँ से चूहा भी नहीं निकल सकता आजादी से
वहाँ कोहराम मचाकर
वह कैसे निकल जाते हैं
विकास के लिए बहता दौलत का दरिया
कुछ बूँदें वहाँ भी पहुंचा देता है
जहाँ कहीं शांति का ठेकेदार
कुछ समेट लेता है
जानते सब हैं पर
दुनिया को देते हैं भुलावा
न दें तो कैसे करेंगे शांति लाने का दावा
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29 जुलाई 2008

पहरेदारी अपने घर की किसे सौपे-हिन्दी शायरी


लुट जाने का खतरा अब
गैरो से नहीं सताता
अपनों को ही यह काम
अच्छी तरह करना आता

पहरेदारी अपने घर की किसे सौपे
यकीन किसी पर नहीं आता
जहां भी देखा है लुटते हुए लोगों को
अपनों का हाथ नजर आता
कई बाग उजड़ गये हैं
माली अब फूल नहीं लगाता
इंतजार रहता है उसे
कोई आकर लगा जाये पेड़ तो
वह उसे बेच आये बाजार में
इस तरह अपना घर सजाता
नाम के लिये करते हैं मोहब्बत
बेईमानी से उनकी है सोहबत
जमाने के भलाई का लगाते जो लोग नारा
लूट में उनको ही मजा आता
कहें भारतदीप
मन में है उथलपुथल तो
अमन कहां से आयेगा यहां
जिनके हाथ में बागडोर होती चमन की
किसी और से क्या खतरा होगा
वही उसका दुश्मन हो जाता
..................................

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28 जुलाई 2008

मशहूर होने से भी भला क्या फायदा-व्यंग्य

लिखना मैंने इसलिये नहीं शुरू किया कि मुझे मशहूर होना है। मुझे अपने मशहूर होने की चिंता कभी नहीं सताती क्योंकि लगता है कि लोग अपनी पूरी ऊर्जा इसी प्रयास में नष्ट करते हैं कि वह प्रसिद्ध व्यक्ति बने और समाज में उनकी चर्चा चारों और लोग करें। मैं उनके करतबों पर ही लिखता रहता हूं पर किसी का नाम लिये बगैर अपनी बात कह जाता हूं कि अगर वह पढ़े भी तो उसे लगे कि किसी अन्य व्यक्ति के लिये लिखा होगा।

उस दिन पांच लोग कहीं आपस में मिले। इसमें मैं और मेरे ब्लाग/पत्रिका पढ़ने वाला एक मित्र भी था। तीन अन्य भी उसके परिचित थे। तीनों अपनी अपनी डींगे हांक रहे थे।
‘अरे, मैं किसी से नहीं डरता मेरी पहुंच दूर तक है।’
‘अरे, इस इलाके में मुझे सब जानते हैं। अपना ही राज्य है।’
‘मैं जहां रहता हूं, वहां सब लोग मेरी इज्जत करते हैं। एक मैं ही वहां इज्जतदार हूं।’
वैसे मेरा मित्र भी कम नहीं है, पर उसे मालुम है कि मैं हाल ही उसकी बात को पकड़ कर लिख कर व्यंग्य लिखने का काम कर सकता हूं। इसलिए कुछ देर तो चुप रहा फिर उसने मुझे ही वहां उलझाने के लिये अपना पासा फैंका और बोला-‘तुम मेरे इस मित्र को जानते हो। कई पत्र-पत्रिकाओं में इसके लेख और व्यंग्य छप चुके हैं। आजकल इंटरनेट पर लिखते हुए अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर नाम कमा रहा है पर देखों अपनी प्रशंसा स्वयं नहीं करता।’
मैंने मित्र की तरफ देखा और फिर कहा-‘‘अरे, यार तुम भी क्या बात लेकर बैठ गये। हमें भला कौन जानता है? लिखते हम भी हैं और फिल्मों के हीरो भी लिख रहे हैं पर भला कोई उनके मुकाबले हमें कौन पढ़ता है। तुम्हें और कोई नहीं मिला कि हमारा मजाक उड़ाने लगे।’
उनमें से एक सज्जन बोले-‘‘आप कौनसे अखबार में लिखते हैं?‘
मैने कहा-‘अरे, यह तो ऐसे ही बना रहा है। पहले कुछ कम प्रसिद्ध पत्र-पत्रिकाओं के लिखा था। अंतर्जाल पर ब्लाग लिख रहे हैं पर कौन पढ़ता है वहां पर। अब तो फिल्मी हीरो हीरोइन के ब्लाग बनते जायेंगे। लोग उनको पढेंगें कि हमें। यह मुझे मित्र कह रहा है इससे पूछो कितनी बार इसने मेरा ब्लाग खोला है?’

दूसरे सज्जन ने कहा-‘अगर आप लिखते हैं तो जरूर मशहूर हो जायेंगे। फिल्मी हीरो हीरोइन गासिपों के अलावा क्या लिखेंगे। वैसे भी उनका लिखा अखबार में आ जाता है। आप लिखते रहें तो एक दिन मशहूर हो जायेंगें।
बहरहाल मैंने अपनी बौद्धिक शक्ति का उपयोग करते हुए वहां बातचीत का विषय बदल दिया। वहां से निकलते ही मैंने मित्र से कहा-‘दिलवा दिया शाप! उसने क्या कह दिया कि मशहूर हो जाओगे।

मेरा मित्र बोला-‘यार, फिर तो वाकई चिंता की बात है तुम्हारे ब्लाग पर मैंने अभी तक तीन टिप्पणियां लिखीं हैं तो हमें भी तो मशहूर हो जायेंगे। वैसे मशहूर होना तो अच्छी बात है।’
मैंने उससे कहा-‘मशहूर होकर लिखा नहीं जाता। आदमी इसी फिक्र में कई बातें इसलिए नहीं लिख पाता कि अब तो मशहूर हो गया हूं कहीं ऐसा न हो कि लोग इससे नाराज न हो जायें। मशहूर होने का बोझ ढोना कई लोगों के लिए मुश्किल काम है और उनमें हम एक है।
मित्र ने कहा-‘फिर तुम लिखते क्यों हो? मशहूर होने के लिए ही न!
मैंने कहा-‘‘मशहूर नहीं हूं इसलिये लिख रहा हूं। जमकर लिख रहा हूं। मशहूर होने के बाद तो यही सोचकर बैठा रहूंगा कि लिखूं क्या?’

मित्र ने आखिर मुझसे पूछा-‘आखिर मशहूर होना होता कैसे है?’
मैंने भी प्रति प्रश्न किया-‘कैसे होता है?’
मित्र ने कहा-‘‘मैं क्या जानूं? तुम लेखक हो तुम्हीं बताओ।’
मैने कहा-‘मशहूर होने की बात तो तुमने उठाई थी। मुझे लगा कि होगी कोई अच्छी बात है।’
मित्र बोला-‘अच्छा तुम अब मुझ पर ही व्यंग्य करने लगे। मैं इसलिये वहां चुप था कि कहीं तुम मेरी बातों से व्यंग्य सामग्री न ढूंढ लो और अब यही कारिस्तानी यहीं करने लगे। मेरी टिप्पणियां वहां से हटा देना। मुझे ऐसे व्यक्ति के साथ मशहूर नहीं होना जिसे मालुम ही न हो कि वह होता क्या है?’

मशहूर होने के लिये लोग जाने क्या क्या पापड़ बेलते हैं? तमाम तरह की उल्टी सीधी हरकतें करते हैं। उलूलजुलूल लिखते है। लिखने में सबसे बड़ा मजा यह है कि आप किसी आदमी के सामने नहीं होते और इसलिये कोई आपको पहचान नहीं पाता। पिछली राखी की बात है मैं एक रेस्टरां में चाय पी रहा था। उसी दिन एक अखबार में मोबाइल पर लिख मेरा एक व्यंग्य छपा था और दो आदमी उसे पढ़कर हंस रहे थे। एक ने कहा-‘‘देखो यार, मोबाइल पर उसने क्या लिखा है?
दूसरा उसे पढ़ते हुए हंस रहा था। उसे नहीं मालुम कि उसको लिखने वाला लेखक उसे मात्र पांच फुट की दूरी पर बैठा है। बाद में मैंने जब अपने मित्र को जब यह घटना बताई तो वह कहने लगा कि-‘तुमने उनको बताया क्यों नहीं कि तुम उसके लेखक हो।
‘अगर वह कह देते कि क्या बकवाद लिखी है तो मैं क्या करता?‘मैने कहा-‘‘इतना ही ठीक है कि मुझे पढ़ रहे थे। अपने आपको मशहूर करने के प्रयास में कभी कभी उल्टा सीधा भी सुनना पड़ता है। इससे बेहतर है अपने लेख भले ही मशहूर हों, थोड़ा बहुत नाम भी हो जाये पर हमें अपना यह चेहरा मशहूर नहीं कराना।’

मशहूर होने को मतलब है कि अपने ऐसे विरोधी पैदा करना जो छींटाकशी के लिये तैयार बैठे रहते हैं और आप अपने मित्रों से हमेशा सतर्कता की आशा नहीं कर सकते जो सोचते हैं कि यह तो मशहूर आदमी है अपना बचाव स्वयं कर लेगा। वैसे चुपचाप लिखते रहने से ही इतनी आनंद की अनुभूति होती है कि लगता है कि मशहूर हुए तो मिलने वाले बहुत आयेंगे। कई तरह के फोन सुनने पड़ेंगे। तब भला क्या खाक लिख पायेंगे। ऐसे ही ठीक है कि कोई हमें चेहरे से जानता नहीं है। अधिक मशहूर होना मतलब अपनी शांति भंग करना भी होता है।

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