18 नवंबर 2016

अपने घाव कभी दिखाये नहीं-हिन्दी कविता (apne Ghave kaBhi dikhay nahin-Hindi Kavita)

किसी ने सही कहा है-हिन्दी कविता
-------------
अपनी जिंदगी में
जीने का अंदाज
हमारा अलग रहा है।

ज़माना चला जिसके पीछे
हमने बनाई दूरी उससे
तानों को बहुत सहा है।

कहें दीपकबापू पर्यटन में
दिल बहलाकर देखा
अपने घाव कभी दिखाये नहीं
परायों के दर्द को भी
सहलाकर देखा
पाया यही कि
मन चंगा कठौती में गंगा
कवि रैदास ने सही कहा है।
-------------
गरीबों का मसीहा-हिन्दी व्यंग्य कविता
--------
अपने कपड़े उतरने का
जिनको सता रहा है
वही निर्वस्त्रों का
डर बता रहा है।

कहें दीपकबापू भ्रम में
मत रहना यारों
अमीरों का दलाल है वह
गरीबों का मसीहा होने का
दावा जो जता रहा है।
----

29 अक्तूबर 2016

पाकिस्तान के साथ संक्षिप्त युद्ध लंबे समय तक चल सकता है-हिन्दी लेख (Mini War Can till Lenthi Time with Pakistan-Hindi Article


                                     भारत पाकिस्तान सीमा पर चल रहा तनाव लंबा चलने वाला है।  जिस पाकिस्तान का अस्तित्व सत्तर वर्ष से बना हुआ है वह चार पांच दिन में खत्म करना खतरे से खाली भी नहीं है। हमारे यहां एक नेता ने कहा ‘पड़ौसी बदले नहीं जाते। इसका प्रतिवाद तक किसी ने नहीं किया था कि पड़ोसी का मकान खरीद लें तो फिर उसका पड़ौसी खरीददार का पड़ौसी हो जाता है-मतलब पड़ौसी भी बदले जाते हैं।  अब इसका इस्तेमाल अनेक विद्वान भी करने लगे हैं। ऐसा लगता है कि पड़ौसी न बदलने की बात कहने वाले अपने देश को की आर्थिक ताकत को नहीं समझ रहे। अगर पाकिस्तान का पतन हुआ तो हमारे पड़ौसी अफगानितस्तान और ईरान हो जायेंगे।
                पाकिस्तान का निर्माण दो कौमे तो दो राष्ट्र के सिद्धांत पर आधारित है। इा  विचाराधारा का विकास आजादी के बहुत पहले ही हो गया था। विभाजन हुआ पर इस विचाराधारा के पोषक अब भी  भारत में बहुत हैं जो देश के सदियों पुराने निरपेक्ष संस्कृति का दावा तो करते हैं पर पाकिस्तान जो कभी हमारा हिस्सा था यह भूल जाने का नाटक करते हैं-क्योंकि अगर  उन्हें पाकिस्तान की हिन्दूओं के प्रति सहिष्णुता देखने और उस पर बोलने में डर लगता है।  वह अंग्रेजों की खींची गयी लकीर में भारत दर्शन करते हैं और भ्रमित करते हैं।  जैसा कि समाचारों से पता चला है कि पाकिस्तान भारत में ही अनेक बुद्धिजीवियों का प्रायोजन करता है।  हम देखते भी रहे हैं कि कहींे न कहीं पाकिस्तान के शुभचिंत्तक यहां कम नहीं है-जो कभी कभी धमकाते हैं कि यह भारत भी खंड खंड हो सकता है। हम उनको बता देते हैं कि जिस समय 1947 में राष्ट्र बंटा तब भारत की अपनी सेना नहीं थी।  अब भारत दुनियां का एक ताकतवर देश है।  जब तक भारत के रणनीतिकार पाकपरस्तों को लोकतंत्र के नाम पर झेल रहे हैं।  जब सहनशीलता से बाहर हो जायेगा तो वह अन्य उपचार भी कर सकते हैं। अब कोई इंग्लैंड की महारानी या उस समय के सत्तालोलूप नेताओं का समय नहीं है जो देश के टुकड़े कर देगा।  अधिक छोडि़ये कश्मीर का एक इंच जमीन कोई नहीं ले सकता। सब देश लड़ने आ जायें तब भी नहीं-ऐसा तो अब होने से भी रहा।
        इधर हम देख रहे हैं कि कुछ चैनल वाले शहीदों पर विलाप करते हुए लगातार  यह पूछ रहे हैं कि इसका बदला कब लिया जायेगा।  उनका प्रसारण मजाक लगता है।  शहीदों पर बहस करते हैं पर हर मिनट विज्ञापन के लिये अवरोध भी लाते हैं।  अपनी व्यवसायिक लाचारी को वह देशभक्ति तथा जनभावना की आड़ में छिपाने की उनकी चालाकी सभी को दिख रही है। जहां तक पाकिस्तान से निपटने का प्रश्न है। हमारा अनुमान है कि अभी यह संक्षिप्त युद्ध चलता रहेगा।  ईरान और इराक के बीच दस वर्ष तक युद्ध चला था।  अतः ऐसे युद्धों की समय सीमा नहीं होती।  अलबत्ता यह सीमित युद्ध जब तक चलेगा तब तक प्रचार माध्यमों में मुख्य समाचारों में रहेगा। इससे अनेक प्रतिष्ठित लोगों को यह परेशानी आयेगी कि अभी तक जो प्रचार माध्यम उनके हल्के बयानों को भारी महत्व देते हैं वह नहीं हो पायेगा।  इसी बीच भारतीय रणनीतिकार पाक पर विजय या उसके विभाजन से पूर्व यहां उस विचारधारा का प्रवाह भी अवरुद्ध करना चाहेंगेे जिससे आगे कोई खतरा नहीं रहे। हम देख भी रहे हैं कि एक एक कर पाकिस्तान समर्थक उसी तरह सामने आ रहे हैं जैसे राजा जन्मेजय के यज्ञ मेें सांप भस्म होने आ रहे थे। यह देखना दिलचस्प भी है।  हमारा मानना है कि यह निरपेक्ष विचारधारा के नाम पर जो नाटक चलता आया है उसके भारम में खत्म होते ही पाकिस्तान खत्म हो जायेगा। 
-------
                    दीपावली को देशभक्ति के भाव से जोड़कर रोचक बनाने का प्रयास शायद इसलिये हो रहा है क्योंकि पारिवारिक, सामाजिक तथ आर्थिक दबावों के कारण जनसमुदाय उत्साह से नहीं मना रहा है। मतलब हमें विदेश में अपनी प्रतिष्ठा बढ़ाने के साथ ही आंतरिक राज्य प्रबंध पर भी ध्यान देना होगा जिसमें आर्थिक नीतियां भी शामिल हैं।  क्या दिलचस्प नहंी है एक सड़क पर लगे टोलटेक्स को न्यायालय समाप्त करता है तो प्रचार माध्यम उसे जनता के लिये दिवाली का तोहफा बताते हैं।  यह तोहफा तो सरकारी की तरफ से आना चाहिये था।
मौसम के बदलने, खेतों में आग लगाने तथा दिपावली पर शहरों में सामूहिक रूप से साफ सफाई की वजह से वैसे भी सभी जगह पर्यावरण प्रदूषण बढ़ता है। ऐसे में पटाखों को ही जिम्मेदार मानना क्या ठीक है? जबकि अनेक वाहन तो वैसे भी प्रदूषण फैलाते रहते हैं।

24 अक्तूबर 2016

हमारे अध्यात्मिक दर्शन के अनुसार पुत्रमोह के सामने भातृप्रेम कभी नहीं टिक सकता-हिन्दी संपादकीय(Putramoh ke samne bhatraprem kabhi Tik nahin sakta-

अगर भारतीय मीडिया के बुद्धिमानों ने प्राचीन ग्रंथ पढे़ होते तो समझ जाते कि भातृमोह में कोई अंधा नहीं होता-धृतराष्ट्र अंधे थे पर पुत्रमोह ने उनकी बुद्धि भी छीन ली। वैसे भी मोह का दूसरा नाम पुत्र ही होता है। यह मोह ज्ञानी से ज्ञानी आदमी में रहता है-वेदव्यास जैसे ऋषि में इससे नहीं बच पाये तो सामान्य जन से अपेक्षा या आशंका दोनों ही व्यर्थ ह।ै यह मोह तो देह के साथ ही जाता है। इस पर पुत्र इकलौता हो तो यह सोचना भी नहीं चाहिये कि पिता उस पर भातृमोह में वक्र दृष्टि डालेगा। मीडिया एक दिन नहीं बरसों लगा रहे उसे कोई ऐसा उदाहरण नहीं मिलेगा जहां किसी ने पुत्र मोह त्यागकर भ्राता के हित साधे हों। मनृस्मृति में तो कहा गया है कि ‘बड़ा पुत्र अयोग्य भी हो तो उसका सम्मान करना चाहिये।’
आज के लोकतांत्रिक युग में तो अनेक ऐसे महारथी हैं जो जनता में अपनी लोकप्रियता स्थापित करने के साथ अपने पुत्र के लिये भी भविष्य का मार्ग बनाते हैं। ऐसे में किसी ने अपने सामने ही पुत्र को स्थापित कर दिया है और भातृ मोह में उसे उखाड़ देगा-ऐसी सोच आजकल के कच्ची बुद्धि के मीडिया कर्मियों की ही हो सकती है। तरस उस भ्राता पर भी आता है तो ऐसी अपेक्षा अपने बड़े भाई से पुत्रमोह के त्याग के रूप में करे।
-
नोट-इसका उत्तरप्रदेश के ‘गृहक्लेशनाटक’ से कोई संबंध नहीं है। यह सार्वभौमिक सत्य है जिसकी खोज अपने अध्यात्मिक ग्रंथों से की है। हम यह हमेशा दावा भी करते हैें कि हिन्दू धार्मिक ग्रंथ ज्ञान और विज्ञान के सत्य इस सीमा तक खोज चुके हैं कि अब इस धरती पर कोई दूसरा रहस्या उजागर करने लायक रहा ही नहीं है। पंथनिरपेक्ष नहीं मानेंगे पर यह सत्य उनके साथ लगा ही है। बात समाजवाद की करेंगे और उसकी आड़ में अपने परिवार का भविष्य चमकायेंगे।

8 अक्तूबर 2016

किसी ने सही कहा है-हिन्दी कविता (Kisi Ne sahi kaha hai-HindiPoem)


अपनी जिंदगी में
जीने का अंदाज
हमारा अलग रहा है।

ज़माना चला जिसके पीछे
हमने बनाई दूरी उससे
तानों को बहुत सहा है।

कहें दीपकबापू पर्यटन में
दिल बहलाकर देखा
अपने घाव कभी दिखाये नहीं
परायों के दर्द को भी
सहलाकर देखा
पाया यही कि
मन चंगा कठौती में गंगा
कवि रैदास ने सही कहा है।
-------------
दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’
ग्वालियर मध्यप्रदेश फोन न-89889475264

25 सितंबर 2016

वाणी से जब कालिख निकले सूरत भी कौए जैसी हो जाती -दीपकबापूवाणी (Wani se jab kalikh nikle-DeepakBapuwani(


बेदर्दी तो हमने अपने साथ की थी जो उनका साथ निभाया।
बेदर्दोंमें अपना दिल हमेशा जज़्बातों से खाली ही दिखाया।।
--------------------
सहायकों का जमघट लगा है, फिर भी कमजोर ही ठगा है।
फुर्सत के दोस्त बहुत बन जाते पर नहीं कोई उनमें सगा है।।
--------------------
उत्साह से भरें प्रातः की शीतल हवा, मन ढले रात के अंधेरे में।
जोगी आनंद ले साधना से, रोगी भटके दर दर दवा के फेरे में।
---------
प्रेम के रिश्ते तोड़ने में कभी नुस्खे आजमाये नहीं जाते।
दिल में तड़प की गुंजायश होती, भाव जमाये नहीं जाते।।
---------------
मौजूद नहीं धरती पर उस जन्नत के ख्वाब सभी देख रहे हैं।
पीर दरबार में देते हाजिरी कातिल खंजर पर मत्था टेके रहे हैं।।
-----------------------
पत्थरों पर नाम खुदवाकर अमर होने की ख्वाहिश बढ़ जाती है।
पैसे से कमअक्लों पर अक्लमंद दिखनें की ख्वाहिश बढ़ जाती है।
----------------
जमीन पर अन्न बिछा सोने जैसा फिर भी आदमी चाहे आकाश का तारा।
रोटी से पेट भरकर नहीं संतोष, दिल हीरे जवाहरात की चाहत का मारा।।
---------------
अपना मन बहलाने के लिये दर दर भटक रहे हैं।
दाम खर्च करते हुए भी बोरियत में अटक रहे हैं।
अपने सपनों का बोझ पराये कंधे पर हमेशा टिकाते हैं।
नाकामी पर रोयें कामयाबी पर अपनी ताकत दिखाते हैं।
-----------------
हर जगह लगते भलाई के मेले, फिर भी परेशान लोग रहें अकेले।
‘दीपकबापू’ जज़्बात बन गये सौदा, दाम चुकाकर चाहे जितना खेले।।
---
महल से बाहर कदम नहीं रखते, लोगों के दर्द में कम ज्यादा का भेद करते।
प्रहरियों से सजे किले में जिनकी जिंदगी, वह ज़माने की बेबसी पर खेद करते।
-----------------
भरोसा उठा गया सभी का, नहीं देखता कोई अपनी नीयत खाली।
करते अपने मतलब से काम, चाहें बजाये ज़माना मुंफ्त में ताली।।
-----------------
बहके इंसान बरसाते सदा मुंह से शब्दों की आग।
सभी  बन गये पाखंडी त्यागी मन में छिपाये राग।
--------------
पद और पैसा लेकर प्रवचन करते, समाज सुधारने का वचन भरते।
‘दीपकबापू’ पायें अपना पेशा पवित्र, पाप का बोझ दूसरे पर धरते।।
---------------
वाणी से जब कालिख निकले सूरत भी कौए जैसी हो जाती है।
दुर्भावना जब आये हृदय में चाल भी बदचलन हो ही जाती है।
--------------
चालाकी से चले चार दिन काम, जब पोल खुले होते नाकाम।
‘दीपकबापू’ धोखे के सौदागर, वसूल कर लेते वादे के भी दाम।
-----------
खुली आंख फिर भी सच्चाई से लोग मुंह फेर लेते हैं।
देखते आदर्श का सपना जागें तो आंखें फेर लेते हैं।।
------------
अपने बड़े अपराध पर भी चालाक लोग पुण्य का पर्दा डालते।
इज्जतदार बहादुर दिखते डर के मारे घर पर पहरेदार पालते।
------------

19 सितंबर 2016

पाकिस्तान धार्मिक दांव खेल रहा है (Pakistan Playing Religion Cards-Hindi Editorial on UriAttack)

                       भारत का समझदार से समझदार राष्ट्रवादी यह मानने से कतराता है कि पाकिस्तान सऊदीअरब का उपनिवेश है जो हमारे यहां हिन्दू धर्म का वर्चस्व समाप्त करना चाहता है। वह कभी मित्र हो ही नहीं सकता। मूल बात यह है कि हम चाहें या न चाहें वह ‘हिन्दू’ शब्द को भारत से समाप्त करना चाहता है और हमें यही नाम धारण कर उसे मिटाना होगा।
------------
                अगर उससे मिटाना है तो वणिक लाभ का त्याग करना होगा।  हमारा तो यह मानना है कि उससे अमेरिका या सऊदी अरब भले ही मदद देते हों पर हमारे देश का ही काला पैसा वहां पहुंचकर पाकिस्तान के कर्णधारों की जेबे भर रहा है अतःवह बेफिक्र हैे। वह परमाणु संपन्न होने का आत्मविश्वास दिखाता है जबकि वास्तव में उसे भारत के कालेधंधों का नियंत्रक अपने यहां होने के कारण आंखें दिखाता है जिसे भारतीय कर्णधार दबी जुबान में अपने यहां भेजने की याचना करते हैं या कभी कभी अमेरिका या संयुक्त राष्ट्रसंघ में उसका नाम काली सूची में होने का दंभ भरते है।
----------------
                ‘जरा याद करो कुर्बानी’ ब्रेक के बाद! तब तक इस दर्द भरे वातावरण में जलवा पर ठुमके वाले गाने सुने क्या?
लक्ष्यहीन प्रवचन-लघु हिन्दी व्यंग्य
-------
 अगर आप अपना कर्तव्य पूरा करना नहीं चाहते या आलस्य ने घेर लिया है तो आत्मप्रचार में लग जाईये। अपने ऐसे कामों का बखान करें जो किये ही नहीं या फिर ऐसी सफलताओं का बखान करें जो मिली ही नहीं। लोगों बधाईयां देने लग जायेंगे। इससे दिन भर अच्छा पास होगा और कर्तव्यविमुखता का आरोप झेलने से बच जायेंगे।
---------
          नोट-लिखने के लिये कोई विचार नहीं मिल रहा है इसलिये यह प्रवचन बिना किसी को लक्ष्य किये लिखा गया है। अगर किसी पर फिट बैठता है तो वह उसकी जिम्मेदारी होगी। हमारे लिये फेसबुक पर लिखना समय पास करना है-लोग तो बरसों ही कार्य किये बिना व्यस्तता का दिखावा करते हुए निकाल देते हैं।


31 अगस्त 2016

मत पूछना हमारा पता-हिन्दी कविता (Mat Poochna hamara pata-Hindi Kaivita)


अपने कंधों पर
स्वार्थों की अर्थी
ढोना आसान नहीं होता।

जब तक चलती सांस
दौलत से रिश्ता तोड़ना
आसान नहीं होता।

कहें दीपकबापू सब मित्रों से
मत पूछना कभी हमारा पता
अपनी लतों के
पीछे भागती भीड़ से
गुम होना आसान नहीं होता।
--------------

2 अगस्त 2016

सम्मान का रस-हिन्दी कविता(Samman Ka Ras-Hindi Kavita)


अच्छा ही हुआ कुदरत ने
इंसान की देह फूलों जैसी
सुुगंधित नहीं बनायी
वरना दुर्गंध बरसाने के लिये
तरसा होता।
जब लगाते होठों से जाम
गला तर करने के लिये
कोई पिलाता नहीं।

जब मांगते रोटी
पेट भरने के लिये
कोई खिलाता नहीं।

कहें दीपकबापू हाथ उठाकर
मांगने वाले कभी बड़े नहीं होते
बिना स्वार्थ के कोई
सम्मान में गर्दन हिलाता नहीं है।
---------

17 जुलाई 2016

विज्ञापन का झंडा- हिन्दी क्षणिकायें (Vigyapan ka Jahnda-Hindi Short Poem)


खामोश
उसके पीछे क्रांति आ रही है।
पता नहीं क्यों
बूढ़ी तस्वीर के
नई होने की भ्रांति छा रही है।
----------

उछलकूद करते हुए
पर्दे पर छाये
भ्रम यह कि हम नायक हैं।

पता नहीं उन्हें
वह तो विज्ञापन का
झंडा ढोले वाले सहायक हैं।
-----------
तुम ख्वाब हो
हमेशा बने ही रहना।
मत करना यकीन
कभी हम पर
सच की धारा में
नहीं आता बहना।
----------------
एक दूसरे की नीयत पर
सभी शक करते।
फिर भी अपने नाम
उम्मीद का हक भरते।
लोग वफा बोते नहीं
दूसरा उगाये
डूबने तक इंतजार करते
--------
अपनी जिद्द से
कभी दुनियां नहीं
बदल पाती।
जिद्द बदलकर देखो
दुनियां की चाल
बदली नज़र आती।
---------
भूखे का दर्द भूखा
प्यासे का दर्द प्यासा ही
समझ पाता है।

जिसे नहीं अहसास
वह मधुर स्वर में
दर्दीले गीत गाता है।
--------
अपना सबकुछ लुटाकर भी
किसी इंसान को
खुश नहीं कर पाये।

तब समझना अपनी औकात
उसकी जरूरत के
बराबर नहीं कर पाये।
-----------

8 जुलाई 2016

प्रशंसा पाने की इच्छा-हिन्दी व्यंग्य कविता (Prashansa pane ki iChchha-HindiSatirePoem)


इंसान के हृदय में
प्रशंसा पाने की इच्छा
मसखरा बना देती है।

ज्ञानी दिखने की सोच
किताबों का कीड़ा
बना देती है।

कहें दीपकबापू साधना में
मौन से मिले आनंद
संपति संग्रह की कामना
बकरा बना देती है।
-------------

22 जून 2016

भेड़िये की खाल में शेर-हिन्दी व्यंग्य कविता (Bhed ki Khal meih sher-Hindi Satire Poem)

अपने घर में शेर
शिकार पर बाहर निकले
ढेर हो गये।

पढ़ी चंद किताबे
वह अब मानने लगे कि
सवा सेर हो गये।

कहें दीपकबापू भाग्य का खेल
कहने से गुरेज क्यों करें
काबलियत के पैमाने
भूल गया ज़माना
भेड़िये की खाल में भी
कई शेर हो गये।
-----------

11 जून 2016

किताब और अक्ल-हिन्दी व्यंग्य कविता (Kitab Aur Akla-Hindi Satire poem)

सड़क पर चलना
सीख नहीं पाये
चौपाये पर सवारी कर ली।

सोचना कभी आया नहीं
किताबें पढ़कर ही
अक्ल से यारी कर ली

कहें दीपकबापू अपना भार
जो कभी उठा नहीं सके
 ज़माने के उठाये बोझ से
गर्दन भारी कर ली।
----------

दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 

1 जून 2016

हर पल आदमी की नस्ल बदल जाती-दीपकबापूवाणी (aadmi ki Nasla-DeepakbapuWani)

कर्मकांड की गठरी सिर पर रखे हैं, धर्म के पाखंड में हर मिठाई चखे हैं।
‘दीपकबापू’ सर्वशक्तिमान का गायें भजन, मन में स्वाद के कांटे रखे हैं।।
-----------------
अपने हिस्से की खुशी उठा लेते हैं, फिर भी आगे के लिये जुटा लेते हैं।
‘दीपकबापू’ मुफ्त का चिराग ढूंढ रहे, अंधेरों में जो सब लुटा देते हैं।।
-------------
मन विज्ञान न जाने भ्रम में अटके हैं, माया ज्ञान बिना लालच में भटके हैं।
‘दीपकबापू’ जुबान में भर लिये शब्द, अर्थ से बेखबर अपमान में लटके हैं।।
------------
मौके के मेलों में लोगों की भीड़ लगे, मन के बहलने में सब जाते ठगे।
‘दीपकबापू’ एकांत साधना करें नहीं, शोर में करें आशा शायद चेतना जगे।।
-----------------
हर पल आदमी की नस्ल बदल जाती, छोटी सोच से याद साथ नहीं आती।
ताकतवर डालें अपने पाप पर परदा, ‘दीपकबापू’ गरीब जुबां बोल नहीं पाती।।
----------------
कोई काम न हो भलाई का व्यापार करें, सेवा का नाम लेकर घर में माल भरें।
‘दीपकबापू’ सजायें बाज़ार में अपनी छवि, विज्ञापन से चमके नाम चिंता न करें।।
------------------
अपने ही मसलों के हल उन्हें नहीं सूझते, बेबसों के लिये वह कहीं भी जूझते।
‘दीपकबापू’ तख्त पाया गज़ब ढाया, अचंभित लोग विकास की पहेली नहीं बूझते।।
---------------
बिना कालापीला किये अमीर नहीं बनते, धरा पर वार बिना शामियाने नहीं तनते।
‘दीपकबापू’ सभी को मान लेते ईमानदार, पकड़े गये चोर नहीं तो साहुकार बनते।।
-----------------
बड़े भाग्य माने अगर कोई पूछता नहीं, मुकुटहीन सिर से कोई विरोधी जूझता नहीं।
भीड़ से बेहतर लगे जिंदगी में एकांत, ‘दीपकबापू शोर में श्रेष्ठ विचार सूझता नहीं।।
-----------------
पुजते वही छवि जिनकी साफ दिखती, किसी की सोच पर नीयत नहीं टिकती।
‘दीपकबापू’ दौलत के गुलामों की मंडी में, औकात काबलियत से नहीं बिकती।।
-------------------------
अपना कर्तव्य भूल अधिकार की बात करें, फल चाहें पर दायित्व लेने से डरें।
‘दीपकबापू’ मुख से शब्द बरसायें बेमौसम, दिल में कीचड़ जैसी नीयत धरें।।
-----------------

दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 

16 मई 2016

उनका वचन है-हिन्दी कविता (His Promissh-Poem)

खाली बर्तन में
अन्न भरने का
उनका वचन है।

खाली खजाने में
धन भरने का भी
उनका वचन है।

कहें दीपकबापू वचन से
कभी अमृत 
कभी विष बनता है
स्वार्थ की दृष्टि से
करते उगाही जहां निभाने का
उनका वचन है।
--------------
दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 

2 मई 2016

सच्चाई नहीं बदल पाती-हिन्दी कविता (Truth Not Chenge-Hindi Poem)

रोज  बदलते
हम अपने रास्ते
कभी मंजिल नहीं बदल पाती है।

हम देखते जागते हुए
रोज नये सपने
सच्चाई नहीं बदल पाती है।

कहें दीपकबापू जिंदगी से
कोई शिकायत न करना
बहुत सोचते तो लोग 
मगर चाल नहीं बदल पाती है।
------------------

दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 

26 अप्रैल 2016

जाम का नाम बदनाम है-हिन्दी कविता(Jam ka Nam Badnam hai-Hindi Kavita)

पीने पिलाने के दौर भी
खास मौके पर
समाज में चलते हैं।

किसी के लीवर उठाते बोझ
तभी किसी के घर में
चूल्हे जलते हैं।

कहें दीपकबापू शराब पीकर
फरिश्ते भी शैतान बन जाते
दूसरों से ज्यादा अपना खून जलाते
जाम का नाम तो बदनाम है
वरना पीने वाले गलों से
कई पेट भी पलते हैं।
----------
दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 

15 अप्रैल 2016

अपने अपने आशियाने-हिन्दी कविता (Apane Apane Ashiyane-Hindi Poem)

अपने अपने आशियाने
सजाने में सभी लगे हैं।

अपने महंगे महलों में
अमीर सो नहीं पाते
गरीब भी झौंपड़ी में जगे हैं।

कहें दीपकबापू द्वंद्वों पर
चल रहा पूरा समाज
जिनके सपने साकार हुए
वह चल पड़े
दूसरे के पीछे
जो नाकाम हुए
वह ख्याली पुलाव पकाने में
अब भी लगे हैं।
---------------
दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 

4 अप्रैल 2016

अमीर दिखने से डरते हैं-हिन्दी कविता (AmirDikhne se Darte hain-HindiPoem)

ऊंचाई पर पहुंचे लोग
नीचे गिरने से
बहुत डरते हैं।

नीचे की असलियत
ऊपर आकर न सताये
चिंता में मरते हैं।

कहें दीपकबापू मत पूछो
खातों का हिसाब
जहान के पहरेदारों से
गरीबों के रहनुमा
अमीर दिखने से डरते हैं।
------------
दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 

17 मार्च 2016

परायी खुशी से जलन-हिन्दी कविता(Parayi khushi se jalan-Hindi kavita)


मदहोशी में किये वादे का
होश आने पर 
भूलने का प्रचलन है।

अपनी चिंताओं में 
डूबे इंसानों को
परायी खुशी से जलन है।

कहें दीपकबापू हंसी से
घबड़ाता बीमार मन
ढूंढता आंसुओं से भर वन
कूंऐं का मेंढक का
अंधेरे में रहने का ही चलन है।
--------------

दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 

9 मार्च 2016

तयशुदा झूठ का वादा-हिन्दी कविता(Tatshuda Jhooth ka vada-Hindi Kavita)

आदर्श की बातें करते
नायक का मुखौटा
मतलब के लिये
उतार देते हैं।

करते सभी के उद्धार की बात
सिंहासन पर चढ़ने के लिये
कमजोर का कंधा भी
उधार लेते हैं।

कहें दीपकबापू यकीन से
अब इतना ही रहा
हमारा वास्ता
तयाशुदा झूठे वादे पर भी
उतार देते हैं।
--------------

दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 

28 फ़रवरी 2016

शह और मात-हिन्दी कविता(Shah aur Maat-Hindi Kavita)

वह नाश के नारे
लगाते हुए
विकास की बात करते हैं

बने न किसी के मददगार
नायक दिखाने के लिये
बेदम पर घात करते हैं।

कहें दीपकबापू पढ़कर
किताबों के शीर्षक
शब्दों के अर्थ तय कर लेते
अपनी ही सोच से
शह और मात भरते हैं।
-----------

दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 

17 फ़रवरी 2016

शहर में अमन का नाश-हिन्दी कविता(shahar mein aman ka nash-Hindi kavita)


ख्वाबों के पंख लगाकर
ज़मीन पर स्वर्ग
तलाश करते हैं।

अपने घर से लापता
शहर में अमन का
नाश करते हैं।

कहें दीपकबापू किताब पढ़कर 
कोई शब्दों का
कद्रदान नहीं बनता
अक्ल की कमी वाले
अर्थ का भी नाश करते हैं।
----------

दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 

25 जनवरी 2016

करें प्रार्थना-हिन्दी कविता(Karen prarthana-HindiPoem)

डंडा लगाने से
सभी का झंडा
ऊंचा हो ही जाता है।

पैसे का फंडा लगाने से
हर इंसान का चरित्र
ऊंचा हो ही जाता है।

कहें दीपकबापू करें प्रार्थना
सर्वशक्तिमान से
बंदों से बेपरवाह होकर
अपने ही शब्दों से
मुख का स्वर
ऊंचा हो ही जाता है।
--------
दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 

12 जनवरी 2016

भक्ति के दलाल-हिन्दी कविता(Bhakti ke Dalal-Hindi Kavita)

सर्वशक्तिमान के नाम का
व्यापार भी खूब चले
भक्ति के दलाल कमायें।

स्वर्ग का सपना
मोक्ष का विचार
बेचकर कमायें।

कहें दीपकबापू इंसान से
नाता रखते दिखें सभी
बड़े बोल सुनाकर
दौलत के साथ
शौहरत भी कमायें।
---------------
दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 

समस्त ब्लॉग/पत्रिका का संकलन यहाँ पढ़ें-

पाठकों ने सतत अपनी टिप्पणियों में यह बात लिखी है कि आपके अनेक पत्रिका/ब्लॉग हैं, इसलिए आपका नया पाठ ढूँढने में कठिनाई होती है. उनकी परेशानी को दृष्टिगत रखते हुए इस लेखक द्वारा अपने समस्त ब्लॉग/पत्रिकाओं का एक निजी संग्रहक बनाया गया है हिंद केसरी पत्रिका. अत: नियमित पाठक चाहें तो इस ब्लॉग संग्रहक का पता नोट कर लें. यहाँ नए पाठ वाला ब्लॉग सबसे ऊपर दिखाई देगा. इसके अलावा समस्त ब्लॉग/पत्रिका यहाँ एक साथ दिखाई देंगी.
दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका


हिंदी मित्र पत्रिका

यह ब्लाग/पत्रिका हिंदी मित्र पत्रिका अनेक ब्लाग का संकलक/संग्रहक है। जिन पाठकों को एक साथ अनेक विषयों पर पढ़ने की इच्छा है, वह यहां क्लिक करें। इसके अलावा जिन मित्रों को अपने ब्लाग यहां दिखाने हैं वह अपने ब्लाग यहां जोड़ सकते हैं। लेखक संपादक दीपक भारतदीप, ग्वालियर

संबद्ध विशिष्ट पत्रिकायें

लोकप्रिय पत्रिकाएँ

वर्डप्रेस की संबद्ध अन्य पत्रिकायें