30 सितंबर 2017

असल हो या सपना है, जिंदगी का हर पल अपना है-दीपकबापूवाणी (asal ho ya sapn hai zindagi ka har pal apna nai-DeepakBapuwani)

बस कुछ ख्वाहिशें ही तो थीं
जिन्हें हमने मरने दिया,
अपनी जिंदगी में
आजादी से यूं ही चलने दिया।
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असल हो या सपना है,
जिंदगी का हर पल अपना है।
हर दर्द मिटाकर ‘दीपकबापू
हसीन पल दिल पर छपना है।
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देशभक्ति का पेशा कर लेते हैं,
भावना से अपनी जेब भर देते हैं।
‘दीपकबापू’ राम पर ही रखें भरोसा
स्वार्थी इंसान नाम भक्त धर लेते हैं।
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अपने हिस्से के पल सभी जी लेते हैं,
खुशी चखते गम भी पी लेते हैं।
‘दीपकबापू’ हिसाब लगाते बेकार
सच के डर से झूठा मूंह सी लेते हैं।
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आपने दिल में चाहत की आग जगाते,
मजबूरियों के स्वयं पर दाग लगाते।
‘दीपकबापू’ रंग लगा कचड़ा घर में
सजाकर शान से प्रशस्ति राग गाते।
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धोखा किसी से नहीं किया
इसलिये मशहूर भी नहीं हुए।
‘दीपकबापू’ हाथ पाप की तरफ बढ़ा नहीं
जिंदगी से दूर भी नहीं हुए।
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19 सितंबर 2017

गुनाहगारों के घर पर अब पहरेदार खड़े हैं-दीपकबापूवाणी (gunahagaron ke ghar par ab Pahredar Khade Hain-DeepakBapuWani)

गुनाहगारों के घर पर अब पहरेदार खड़े हैं, बदनाम होने से उनके नाम भी बड़े हैं।
‘दीपकबापू’ जितनी भी दूर तक डालते नज़र, अब नहीं टूटते जो भरे पाप के घड़े हैं।।
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चंदन का टीका सिर पर लगा लिया, पैसे प्रतिष्ठा के लिये ज्ञान से दगा किया।
‘दीपकबापू’ पाप की चमक में खोये रहे, दंड में मिली हथकड़ी ने जगा दिया।।
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वादे लेकर बाज़ार में वह हमेशा आते, हर बार बेबसों में लालच का यकीन जगाते।
‘दीपकबापू’ अमल करने की शक्ति नहीं, बाज़ार में पुराने इरादे में नये नारे सजाते।।
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रोज उधार का घी पिये जा रहे हैं, ब्याज की सांसों से जिये जा रहे हैं।
‘दीपकबापू’ बहीखाते जांचने से डरते, मौन आंकड़े हैरान किये जा रहे हैं।।
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नारों के साथ अब ऊबने लगे हैं, बद से बदतर हालातों में डूबने लगे हैं।
‘दीपकबापू’ थके कान रखना समझें अच्छा, भक्तिरस में हम कूदने लगे हैं।।
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कर लगाकर महंगा हर सामान करेंगे, पीड़हरण के लिये देशभक्ति गान करेंगे।
‘दीपकबापू’ अर्थशास्त्र कभी पढ़े नहीं, परायी जेब काटकर अपनी जेब ही भरेंगे।।
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भलाई के व्यापारी किसी के नहीं सगे, ग्राहक को हर बार नये ढंग से ठगे।
‘दीपकबापू’ पहरेदारी का जिम्मा लेकर खड़े, चोरों से साझेदारी करने लगे।।
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