विश्वास तो करते हैं
पर साथ में धोखे की
गुंजायश भी रखते हैं।
वफा का आसरा करते हमेशा
पर घाव की मरहम भी साथ रखते हैं।
टूटे और बिखरे हैं कई बार
फिर भी कभी इरादा नहीं बदला
कोई हम पर धोखे और बेवफाई का इल्जाम लगाए
इस बात से डरते हैं।
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अपने गुस्से और घमंड से
लोगों को जिंदगी में हारते देखा है,
लूट के सामान से सजाया जिन्होंने घर अपना
बंद अंधेरी कोठरी में उनको रोते देखा है।
मेहनतकशों और ईमानदारों का
पसीना गिरते देखा जमीन पर
मगर आंसु बहाते किसी को नहीं देखा है।
कवि, लेखक और संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
http://anant-shabd.blogspot.com
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*एकांत में तस्वीरों से ही दिल बहलायें, भीड़ में तस्वीर जैसा इंसान कहां
पायें।*
*‘दीपकबापू’ जीवन की चाल टेढ़ी कभी सपाट, राह दुर्गम भाग्य जो सुगम पायें।।*
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4 वर्ष पहले
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