15 फ़रवरी 2010

अब वैसी नहीं रही मधुशाला-हिन्दी व्यंग्य कवितायें (madhu shala-hindi comic poem)

बात हो गयी पुरानी,

नहीं लगती अब दिल को सुहानी,

कि मंदिर, मस्जिद और गुरुद्वारे

कराते आपस में बैर

जबकि मिलाती है मधुशाला।

अब तो मंदिर, मस्जिद और गुरुदारों की

जंगों के लिये योजनायें

बनाने के लिये सजती है मधुशाला।

पीने वाले भले ही

एकता के नारे लगाते हों

जमाने के जगाने के लिये

फिर वही जंग कराते हैं,

जिनको लोग भूल जाते हैं,

भला क्या लोगों को आपस में मिलायेंगी

अब वैसी नहीं रही मधुशाला।

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जमाने में ईमानदारी को लग गया जंग

वफादारी का रास्ता हो गया तंग

रिश्तों पर लग चुका दौलत का ताला।

महंगी गयी हो गयी मधु,

क्या ईमान जगायेगी,

कैसे वफादारी निभायेगी

हर साल ठेके पर टिकी

महंगे भाव बिकी

रोज मालिक बदलती, मधुशाला।

कवि, लेखक और संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
http://anant-shabd.blogspot.com

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