23 मार्च 2012

मैच फिक्सिंग की खबरें भी फिक्स-हिन्दी व्यंग्य (crickt match fixing ki khabre bhi fix-hindi vyangya or satire)

            अब तो यह लगता है कि क्रिकेट मैचों की फिक्सिंग की खबरें भी फिक्स हो सकती हैं। वजह साफ है कि जिस तरह फिक्स करने वाले और कराने वालों की बदनामी नहीं बल्कि प्रचार माध्यमों में इतनी प्रसिद्धि होती है कि वह हर जगह अपनी नाक फंसाकर नाम और नामा कमाने लगते हैं।
               अभी हाल ही में एक भारतीय अभिनेत्री पर पहले पाकिस्तानी और अब फिर श्रीलंका के क्रिकेट खिलाड़ियों से    संबंध बनाकर उनसे मैच फिक्स कराने का आरोप लगा। इसके बाद लगा कि जैसे वह बदनाम होकर मुंह छिपा लेगी पर हुआ उल्टा ही। वह तो रोज टीवी चैनलों पर साक्षात्कार देती नजर आ रही है। पहले तो उसने किसी भी देश के क्रिकेट खिलाड़ी को पहचानने से इंकार कर अपने को पाक साफ बताया। जिस मैच को फिक्स करने का आरोप उस पर लगा था जब उसे ही उसे ही क्रिकेट के भाग्यविधताओं ने पवित्र ढंग से खेला गया घोषित किया गया तो फिर दूसरे मैच की बात सामने आई। वह अभिनेत्री समझ गयी कि इस तरह की फिक्सिंग के सबूत मिलना संभव नहीं है। इधर प्रचार माध्यमों को अपने विज्ञापन कार्यक्रमों के लिये समाचार सामग्री प्रसारित करने के लिये एक नया चेहरा मिल गया। उसकी हिम्मत बढ़ी और वह दनादन बयान दे रही है। एक श्रीलंकाई खिलाड़ी से उसने डेट पर जाने की बात स्वीकारी है। इस तरह वह प्रचार पा रही है। संभव है कुछ दिनों में उसे कोई बड़ी फिल्म मिल जाये। यह भी संभव है कि उसे कोई फिल्म दी जाने वाली हो और उसके सफलता के लिये पहले इस अभिनेत्री का नाम चमकाया जा रहा हो। संभव है कि बिग बॉस के छठे संस्करण की यह तैयारी हो।
             उस अभिनेत्री ने मात्र एक असफल फिल्म की है। उसके नाम का यह हाल है कि नियमित फिल्म देखने वालों को भी उसका नाम याद नहीं है। बहरहाल मैच फिक्स की खबरों को फिक्स मानने के पीछे सबसे बड़ा कारण यह है कि कम से कम हमारे देश में किसी को भी मैच फिक्स करने के आरोप में कोई सजा नहीं मिली। इसके विपरीत कईयों को इतनी प्रसिद्धि मिली कि वह उसे नकद में भुनाने लगे। कुछ समय पहले एक पाकिस्तानी फिल्म अभिनेत्री पर भी पाकिस्तानी क्रिकेटरों से संपर्क कर मैच फिक्सिंग से जुड़े होने के आरोप लगे। उसके तो जैसे भाग्य खुले। भारत में उसको भारी शौहरत मिली। वह बिग बॉस में आयी और अब उसका नाम फीका पड़ने लगा। अब यह तो भारत की अभिनेत्री है। हम यह मानते हैं कि क्रिकेट अब बाज़ार के सौदागरों का विषय है। इसमें सट्टा वगैरह भी लगता है। संभव है कि मैच फिक्स भी होता हो। बाज़ार से प्रायोजित प्रचार समूह गाहे बगाहे मैच फिक्सिंग के समाचार देता है। उन पर बहस होती है। विशेषज्ञ आते हैं। इससे विज्ञापनों के लिये अच्छा खासा समय मिल जाता है। क्रिकेट का खेल यथावत चलता है। रोज रोज मैच हो रहे हैं। बाज़ार के सौदागर और प्रचार प्रबंधक दोनों हाथों से पैसा कमा रहे हैं। प्रचार माध्यमों के लिये खेल की खबरें जहां दिल बहलाने वालों का ध्यान पकड़े रहती हैं वहीं उनका विज्ञापन प्रसारण बेहतर ढंग से पास हो जाता है। जिनको केवल सनसनी से मतलब है उनके लिये मैच फिक्सिंग की खबरें हैं। एक समय हम क्रिकेट के दीवाने थे, पर जब फिक्सिंग की बात सामने आयी तो विरक्त हो गये। इधर ब्लॉग पर लिखना शुरु किया तो फिर क्रिकेट में फिक्सिंग पर भी बहुत लिखा। हमें हैरानी होती थी कि इस तरह मैच फिक्सिंग की खबरें देकर प्रचार प्रबंधक अपने पैरों पर कुल्हारी क्यों मारते हैं? जिस तरह मैच फिक्सिंग के आरोपों से घिरे लोग प्रतिष्ठत होकर प्रचार माध्यमों में नाम और नामा कमाने के साथ ही अपनी नाक की प्रतिष्ठा भी बढ़ा रहे हैं उससे तो लगता है कि यह खबरें भी फिक्स ही रही होंगी  ताकि क्रिकेट से बोर हो चुके लोग को सनसनी के रंग में रंगा जाये।
            ऐसे में तो हमें लगता है कि क्रिकेट मैच में न तो कोई फिक्सर है न मैच फिक्स होते हैं। अब तो स्थिति यह है कि कोई क्रिकेट खिलाड़ी अगर हमारे सामने आकर यह दावा करे कि वह मैच फिक्स करता है तो हम उसे फटकार देंगे। कह देंगे-‘भाग यहां से तू झूट बोलता है। तुझे किसी टीवी सीरीयल में काम चाहिये या फिल्म में, इसलिये इस तरह की बकवास कर रहा है।’
            फिर इधर बिग बॉस का कार्यक्रम भी अपने यहां चलता है। पिछला फ्लाप हो गया था। लगता है कि अब नये की तैयारी है। ऐसा लगता है कि उसमें शामिल होने के लिये जहां कुछ लोग ऐसे आरोप अपने सिर लेना चाहते हैं। जिनको उसमें शामिल करना है उनके लिये प्रचार प्रबंधक पहले से ही भूमिका बनाते हैं जिसमें उस पर मैच फिक्सिंग करने का आरोप लगाना अधिक सरल होता है। इसमें न तो किसी कानून का डर है न जनता का। इसलिये हमें नहीं लगता कि जितनी फिक्सिंग की खबरें आती हैं वह मैच फिक्स भी होते हैं।
लेखक और संपादक-दीपक "भारतदीप",ग्वालियर 
poet, writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior

writer aur editor-Deepak 'Bharatdeep' Gwalior

2 मार्च 2012

अजब गजब ज़माना-हिन्दी शायरी (ajab gazab zamana-hindi shayari)

क्या अजब हो गया यह ज़माना,
वातानुकूलित कारों में देह सड़ा रहा है,
अपने रसोईघर से गैस के बादल
आसमान में चढ़ा रहा है,
हरियाली को जलाकर
अस्पताल में ढूँढता आरोग्य का खज़ाना।
कहें दीपक बापू
ज़िंदगी है चलने का नाम,
डुबो देता है आराम,
आदमी दौड़ रहा है इधर उधर
पाने के लिए फायदे,
मगर बदलती नहीं
प्रकृति अपने कायदे,
विषैले विषय बहुत सुविधाजनक हैं
पर ज़िंदगी में अमन नहीं दे सकते
दुनिया में ज़िंदा रहने के लिए
जरूरी है शरीर के हर अंग से लो जमकर काम
आदमी तो बस कहीं खड़े होकर
कहीं बैठकर
बेजान चीजों में आँखें गड़ा रहा है।
लेखक और संपादक-दीपक "भारतदीप",ग्वालियर 
poet, writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior

writer aur editor-Deepak 'Bharatdeep' Gwalior

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