24 जून 2014

उम्मीद का बोझ-हिन्दी शायरियां(ummid ka bojh-hindi shayriyan)



मुट्ठी में अगर आता सुख तो हम कई किलो भर लेते,
खरीदे गये सामान से मिलता मजा तो ढेर घर में भर लेते।
कहें दीपक बापू सोए तो आलस चले तो थकान ने घेरा
रोज पैदा होती नयी चाहत पर कामयाबी से मन भरता नहीं
वरना हम उम्मीदों का भारी बोझ अपने कंधे पर धर लेते।
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टकटकी लगाये हम उनकी नज़रों में आने का इंतजार करते हैं,
वह उदासीन हैं फिर भी हम उस यार पर मरते हैं।
कहें दीपक बापू कोई हमदर्द बने यह चाहत नहीं हमारी
दिल से घुटते लोग सीना तानते पर तन्हाई से डरते है।ं
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रिश्ते बनते जरूर कुदरत से मगर निभाये मतलब से जाते हैं,
कहीं काम से दाम मिलते कहंी दाम से काम बनाये जाते हैं।
नीयत के खेल में खोटे लोग भी खरे सिक्के जैसे सजते
वफा की चाहत में बदहवास लोग शिकार बनाये जाते हैं।
कहें दीपक बापू दिल के सौदागर जिस्मफरोशी नहीं करते
मोहब्बत के जाल में कमजोर दिमाग लोग फंसाये जाते हैं।
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poet-Deepak raj kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
लेखक और संपादक-दीपक "भारतदीप",ग्वालियर
poet, writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
‘दीपक भारतदीप की हिन्दी-पत्रिका’ पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
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10 जून 2014

जिंदगी का बखान क्या करें-छोटी हिन्दी कवितायें(zindagi ka bakhan kya karen-short hindi poem's)



पूरी जिंदगी का बखान क्या करें
यहां तो पल ही में माहौल बदल जाता है,
इंसान सुबह जाता है शवयात्रा में
शाम का बारात में जाने का आनंद पाता है।
कहें दीपक बापू किस पर खफा हों किसे करें सलाम,
रिश्ते मुंह फेर जाते अनजान लोग कर जाते काम
एक मंजिल के लिये जोड़ा कई लोगों ने वास्ता,
नये चेहरे आ जाते उधर पुराने बदल जाते हैं रास्ता,
कई लोगों ने फिर मिलने का वादा किया
क्या पहुंचते उनके पास जिनका पता बदल जाता है।
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शरीक के जख्म तो जाते हैं कभी न कभी,
दिल का दर्द ऐसा लगता जैसे चोट हुई हो अभी अभी।
कहें दीपक बापू लोग अपने जज़्बात नहीं समझते
दूसरों के क्या  समझेंगे
एक दूसरे को नीचे गिराने में लगे हैं सभी
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
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2 जून 2014

महलों में रहने वाले-हिन्दी कवितायें(mahalon mein rahane wale-hindi poem's)



ख्वाहिश तो कर्जा लेकर भी पूरी हो जाती हैं,

फिर पूरी जिंदगी किश्तों में खो जाती है।

कहें दीपक बापू सामान लेने के सपने रोज आते हैं,

उधार लेकर भले पूरे कर लो ब्याज की पूंछ भी लग जाती है।

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जिन्होंने महलों में रहकर गुजारी जिंदगी

क्या वह समझेंगे वीरों के जंग की कहानी।

कहें दीपक बापू वातानुकूलन कक्ष में जो सोते हैं

मौसम से जूझने वाले मजदूर की उनको क्या व्यथा समझानी।

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नायक के बखान के लिये खलनायक होना चाहिये,

शब्दों को गीत बनाने वाला गायक मिलना चाहिये।

कहें दीपक बापू कहानियों से बहल जाते लोग

झूठी हो या सच्ची किसी की गाथा में मसाला जरूर लगाईये।

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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
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