26 अगस्त 2012

भलाई सौदा हो गया है-हिंदी कविता (bhalai sauda ho gaya hai-hindi kavita)

करें जो लोग भलाई का व्यापार,
नाम पायें तो जोड़े नामे का भंडार।
चंदा मांगते बच्चे बूढ़े ओर नारी वास्ते
हवा में उड़कर हो जाते देश से पार।
 नाम रख दिया अपना समाज सेवक
बांटे न एक दाना, बनते मेवा के हकदार
कहें दीपक बापू सेवा भी बनी है सौदा
दान लेकर  चलाते लोग अपना घरबार।
अपनी सेवा से खाकर मेवा लोग इतराते,
कुछ बावले अपने देवत्तव का करते प्रचार।
हमने सीखी यह बात कि पाखंडी बुनते जाल
दिल में है जिनके सेवा, न मांगे कभी प्रचार।
बड़े लोगों की पूंछ में लटककर
कब तक जिंदगी पार लगाओगे,
लड़खड़ा गिरेंगे जमीन पर जब वह
पहले तुम दब जाओगे।
कहें दीपक बापू
उनका इलाज कोई बड़ा कर देगा
तुम खाओगे ठोकरें
उनको मिलेगी मलाई
तुम सूखी रोटी के लिये तरस जाओगे,
उनके महल रहेंगे हमेशा सलामत
तुम अपने उजड़े आशियाने के लिये
तिनके तिनके जोड़ते रह जाओगे।
-------------------------------दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
लेखक और संपादक-दीपक "भारतदीप",ग्वालियर
poet, writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior




16 अगस्त 2012

धोखे का सौदा-हिंदी कविता (dhokhe ka sauda -hindi poem or kavita)

दौलत के ढेर पर बैठे हैं जो लोग
शौहरत भी उनके पास है,
मतलबपरस्तों ने पा लिये बड़े ओहदे
दरियादिली दिखाने की उनसे बेकार आस है,
चर्चे आम है कातिलों के,
प्यार के सौदागर बादशाह बने दिलों के,
मजे के दीवाने जमाने की चाहत है
गंगा उल्टी तरफ बहती नजर आये।
कहें दीपक बापू
ख्वाबों को हकीकत में लाना आसान नहीं,
सपनों की सच में कोई शान नहीं,
कसूरवार किसे कहें
सभी बेकसूरी के दावे करते नजर आये।
धोखे का सौदा
दुकानदार और ग्राहक दोनों को ललचाये।
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लेखक एवं कवि- दीपक राज कुकरेजा,‘‘भारतदीप’’, ग्वालियर
लेखक और संपादक-दीपक "भारतदीप",ग्वालियर 
poet, writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior

writer aur editor-Deepak 'Bharatdeep' Gwalior



15 अगस्त 2012

१५ अगस्त स्वतंत्रता दिवस पर कविता -आजाद तो पंछी हैं (azad to panchhi hain-a hindi poem kavita on 15 ogust swatantrata diwas par or 15 agust independent day)

आजाद तो पंछी हैं
चाहे जहां उड़ जाते हैं,
इंसान का मन उड़ता है
पर लाचार देह में पंख कहां
जुड़ पाते हैं।
कहें दीपक बापू
औकात से ज्यादा
कामयाबी पाने की ख्वाहिश
मतलबपरस्ती के साथ जीने की आदत
सपना इज्जतदार कहलाने का
हर आदमी इंसान गुलाम अपने दिल का
जुबां से उगलते लफ्ज जहर की तरह
प्यारे बोल का अब गुड़ कहां पाते हैं। 
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लेखक एवं कवि- दीपक राज कुकरेजा,‘‘भारतदीप’’, ग्वालियर
लेखक और संपादक-दीपक "भारतदीप",ग्वालियर 
poet, writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior

writer aur editor-Deepak 'Bharatdeep' Gwalior



10 अगस्त 2012

तत्वज्ञान के संदर्भ में महिला महामंडलेश्वर विवाद-हिन्दी लेख (tatvagyan sa sandarbh mein mahila mandleshwar wowen sant-hindi article)

      जब धर्म केवल कर्मकांडों तक सिमटता है तब वहां ज्ञान की बात करना निरर्थक है। मूलतः धर्म का आधार अध्यात्म है पर अध्यात्मिक दर्शन और धर्म के बीच कोई स्पष्ट रेखा हमारे यहां खींची नहीं गयी है इसी कारण कर्मकांडों के विद्वान आमजन की संवेदनसओं का दोहन करने में सफल हो जाते हैं।  प्रसंग है एक कथित महिला को महामंडलेश्वर बनाने का जिसका चहुं ओर विरोध हुआ तो उसे वहां से निलंबित कर दिया गया।  
     उस महिला के अनेक दृश्य टीवी चैनलों पर दिखाई दिये। जिसमें नृत्य और भजन थे।  तत्वज्ञान की बात करते हुए तो उसे देखा ही नहीं गया।  वह महिला धर्म के व्यापार में ढेर सारी माया अपने चरणों में स्थापित कर चुकी है। उसका श्रृंगार देखकर कोई भी इस बात को नहीं मानेगा कि उसके पास अध्यात्मिक ज्ञन का ‘अ’ भी होगा। आरोप लगाने वालों ने  ने इस पदवी में धन के लेनदेन का आरोप भी लगाया है। सच क्या है पता नहीं पर हम यहां बात कर रहे हैं महामंडलेश्वर की उस उपाधि की जिसकी जानकारी अनेक लोगों के  लिये नयी नहीं है पर उसको प्रदाने करने की कोई प्रक्रिया है यह बात पहली बार इतने प्रचार के  साथ सामने आयी ।  आदि गुरु शंकराचार्य ने धर्म प्रचार के लिये चार मठ बनाये जिनके सर्वेसर्वा अब शंकराचार्य कहलाते हैं।  इनका भारतीय समाज में स्थान कितना है यह अलग से विचार का विषय हो सकता है पर भारतीय अध्यात्म की जो धारा सदियों से बह रही है उसके प्रवाह में इनका योगदान अधिक नहीं है यह  वर्तमान लोगों की जानकारी देखकर लगता है।  हिन्दू धर्म तथा भारतीय अध्यात्म के इतिहास तथा तत्वज्ञान का अध्ययन करने वाले हर शख्स का आदि शंकराचार्य का पता है पर वर्तमान शंकराचार्यों के प्रति उनके मन में मामूली श्रद्धा है जो कि हमारे देश की धरती पर उपजते सहज मानवीय  स्वभाव के ही कारण है।  वह यह कि सभी संतों का सम्मान करना चाहिए। न भी करें तो उनकी निंदा करने से बचना चाहिए।
एक बात तय है कि बिना तत्वज्ञान के भारतीय जनमानस में सम्मान प्राप्त नहीं कर सकता।  वैसे तो कई संत हैं जो नृत्य और भजन कर भक्तों को प्रसन्न करते हैं। ऐसे संत तत्वज्ञानियों से अधिक धनवान होते हैं। जिनकी ज्ञान में रुचि नहीं है वह भक्त भी सांसरिक विषयों से ऊबकर इन संतों के सानिध्य में भक्ति और मनोरंजन के मिश्रित सत्संग का आनंद उठाते हैं।  वह इनको दान, चंदे या गुरुदक्षिणा देकर भगवान को प्रसन्न हुआ मानते हैं। इस तरह बिताया गया समय  क्षणिक रूप से उनको लाभ द्रेता है पर जब अध्यात्मिक शांति की बात मन में आती है तो उनको अपना मन खाली दिखता है।
      बहरहाल अब समय बदल गया है पर भारतीय अध्यात्मिक दर्शन सत्य पर आधारित है इसलिये उसके संदर्भ आज भी प्रासांगिक हैं।  नृत्य और गीत के सहारे भक्तों को सत्संग प्रदान करने वाली जिस महिला को विवादास्पद ढंग से महामंडलेश्वर बनाया गया उस पर बवाल उठा तब उसका नाम प्रचार में आया। अगर यह विवाद प्रचार माध्यमों में नहीं आता तो शायद अनेक  लोग यह समझ ही नहीं पाते कि महामंडलेश्वर होता क्या है? संभव है पैसे का लेनदेन हुआ हो। हमारे यह धार्मिक संगठनों में भी अब माया ने इस कदर अपनी पैठ बना ली है कि वहा उच्च पदों पर बैठे लोगों से सात्विक प्रवृत्ति की हमेशा आशा नहीं की जा सकती।  जिसने उपािध ली और जिन्होंने दी उन पर क्या आक्षेप किया जा सकता है? जब समाज ने क्रिकेट खिलाड़ियों में भगवान और फिल्मों अभिनेताओं में देवता होने की अवधाराणा को मान लिया है तब पेशेवर धार्मिक संगठनों या उनके पदाधिकारियों से-जिनको बिना किसी विद्यालय में गये ज्ञानी और धर्म का प्रतीक होने का प्रमाणपत्र मिला हुआ है-यह अपेक्षा करना व्यर्थ है कि वह अपनी उपाधियां उन नर्तकों और गायकों को न दें जो मनोरंजन को भक्ति के रूप में बदलने की कला में माहिर हों।
   जहां तक तत्वज्ञान का प्रश्न है तो वेदों और शास्त्रों के जानकार होने का दावा करने वाले अनेक संत जब श्रीमद्भागवत गीता पर बोलते हैं तो यह देखकर आश्चर्य होता है कि वह उस ज्ञान से स्वयं ही दूर हैं।  ऐसी घटनाओं से अधिक आश्चर्य इसलिये भी नहीं करना चाहिए क्योंकि भारतीय समाज में ऐसे तत्व हमेशा ही मौजूद रहेंगे जो धर्म के नाम कर्मकांड और भक्ति के नाम पर मनोरंजन का व्यवसाय करते हैं।
लेखक और संपादक-दीपक "भारतदीप",ग्वालियर 
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