28 मई 2015

विज्ञापन और अक्ल-हिन्दी कविता(vigyapan aur akla-hindi poem)


हमेशा मिट्टी के बूत
चौराहों पर खड़े होते
कभी कभी मांस से बने
 बाज़ार में भी सजाये जाते हैं।

इशारे मिलते हैं
अपने स्वामियों के
वैसे ही उनके स्वर में
शब्द भी बजाये जाते हैं।

कहें दीपक बापू चक्षुओं की दृष्टि
पहचान नहीं पाती
कौन स्वामी कौन बुत
चेहरे सभी के आकर्षक
विज्ञापन से आम इंसानों की
अक्ल भजाये जाते हैं।
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दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 

22 मई 2015

मतलबपरस्ती की खान-हिन्दी कविता(matalabparasti ki khan-hindi poem)

आकाश में उड़ते
राज दरबारों से जुड़ते
ज़माने में उनकी शान हैं।

घेरे हैं चारों तरफ से
शस्त्रधारी पहरेदार
शायद खतरे में उनकी जान है।

कहें दीपक बापू फकीरी से
जिंदगी गुजरती नहीं,
अमीरी के शिखर पर भी
इंसान की सोच सुधरती नहीं,
धूप में चलते मजदूर
वीर नहीं कहलाते
महानता के खिताब
दौलत और शौहरत वाले पाते,
जिनके दिल दिमाग में
मतलबपरस्ती की खान है।

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दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 

15 मई 2015

दिल में बसा धूप का भय-हिन्दी कविता(dil mein basa dhoop ka bhay-hindi poem)


अपने घर में पेड़ पोद्ये
कुचलकर गैरों से
बहार लाने की आशा करते हैं।

बढ़ाते नहीं मनोबल
अपने ही साथियों का
गिरते हैं जमीन पर
उनसे उठाने की आशा करते हैं।

कहें दीपक बापू अक्ल के अंधे
कम नहीं है धरती पर
रात में रंगीन चश्म लगाकर
दिल में बसे धूप के भय से
बचने की आशा करते हैं।

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दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 

8 मई 2015

हमदर्द का अभिनय -हिन्दी कविता(hamdard ka abhinay-hindi poem)


मजदूरों का खून पसीना बनकर
परिश्रम में बहुत
बहुत बह जाता है।

हादसे पर नहीं बहा सकता
वह सूखी आंखों से आंसु
उसका मौन ही
बहुत कह जाता है।

कहें दीपक बापू लूट के धन से
जिदंगी गुजारने वाले
कभी समाज के वफादार
नहीं हो सकते,
गरीब की कहानी पसंद करते सभी
पर उसके दर्द का बोझ
कभी ढो नहीं सकते,
हमदर्द का अभिनय करते हुए
संवेदनहीन हो जाते लोग
महलों में उनका विलासी जीवन
बहुत कुछ कह जाता है।
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दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 

2 मई 2015

राजमहल हो या आश्रम-हिन्दी कविता(janta ki jaroorat-hindi kavita)

जनता की जरूरत
किसी को राजा
किसी को दलाल बनाती है।

चरवाहे के डंडे से
जनता चलती भेड़ की तरह
पर उसे अपनी ढाल बताती है।

कहें दीपक बापू मन के वैरागी
कभी बाज़ार नहीं सजाते,
प्रचार के विज्ञापन देने
कहीं नहीं जाते,
राजमहल हो या आश्रम
दलालों के सामने
आम इंसान भेड़ है
यह उसकी चाल भी बताती है।
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दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 

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